काजी जी ने फ़ाइल खोल कर फरियादी का नाम और जिसके खिलाफ शिकायत थी, उसका नाम देखा। सामने वाला वकील आ गया। काजी जी ने कुछ अदालत। पेशकार ने नाम पुकारा तो फरियादी का वकील आ खड़ा हुआ। पेशकार ने फाइल पेश की। काजी जी ने फाइल पन्ने पलटे और फिर फरियादी के वकील की ओर मुखातिब हो कर फर्माया, हां, बोलिए।
अर्ज है हूजूर कि मेरे मुवक्किल की बीवी पेट से थी। बड़ी मन्नतों के बाद आस बंधी थी। शूरू से ही निजी अस्पताल की सबसे बड़ी डाक्टर को दिखाया। बड़ा नाम है उनका। फीस भी ऊंची। जितनी बार कहा, उन्हें दिखाया। फीस दी। जांचे जों लिखी, करवाईं। सोनोग्राफी भी करवाई। जो दवाइयां लिखीं, वे सब दी। हर बार एन्टीनेटल चैकअप के बाद बाताया, सब ठीक है। मां - बच्चा दोनों ठीक हैं। पेट में बच्चा ठीक बढ रहा है। पूरे महीने होने पर जच्चगी के लिए उन्हीं डाक्टर साहिबा के पास निजी अस्पताल में भर्ती करवाया। डिलीवरी उन्होंने ही करवाई। सांसें थामे मेरे मुवक्किल और उनके घर के लोग बाहर इन्तजार कर रहे थे। उन्हें आ कर बाताया कि लड़का हुआ है, लेकिन बच्चा डिलीवरी के बाद रोया नहीं। सांस नहीं ले पा रहा था। इसलिए उसे बच्चों के आई सी यू में भर्ती किया है। बच्चों के विशेषज्ञ देख रहे हैं। जच्चा ठीक है। हूजूर, जच्चगी का तो अच्छा खासा बिल था ही, आई सी यू का उससे बड़ा बिल बना।
बिजली तब गिरी जब बच्चो के डाक्टर ने हमें बताया कि बच्चे को नियोनेटल एस्फिक्सिया और हाईपोऑक्सिक - इस्किमिक - सेरीब्रल - एनसेफेलोपेथी है। भारी भरकम तकनीकी नाम। बच्चे को अस्पताल के दिमाग के विषेषज्ञ, पेडियाट्रिक न्यूरोलोजिस्ट, देख रहे थे। उन्होंने हमें बताया कि आक्सीजन की कमी होने से बच्चे के दिमाग को नुक्सान हुआ है। बच्चे में दिमागी व जिस्मानी कमियां रहने की संभावना है। इलाज चल रहा है। कितनी विकलांगता रहेगी, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। इतना सपाट बयान। ऐसे कह रहे थे जैसे गलती हामारी थी, वे तो इलाज कर हम पर एहसान कर रहे थे। मेंरे मुवक्किल ने जब पूछा, भर्ती के समय तो बताया था, बच्चा बिलकुल ठीक है। फिर आक्सीजन की कमी कब हो गई, कैसे हो गई? तो उन्होंने इसका कोई जवाब नहीं दिया। बस, इतना कहा कि जन्म होते ही जब बच्चा उन्हें सोंपा गया तब उसे बर्थ एस्फिक्सिया (सांस घुटन) था। लेडी डाक्टर से पूछा तो उन्होंने कहा डिलीवरी नार्मल थी। डिलीवरी में कोई काँप्लीकेशन नहीं हुई। बर्थ एस्फिक्सिया, बर्थ के दौरान नहीं हुआ तो कब हुआ?
यह देखिये हूजूर, जच्चगी के पहले की सोनोग्राफी रिपोर्ट जो लेडी डाक्टर ने करवाई थी। लिखा है ‘कोर्ड राउन्ड दी नेक’ यानी बच्चे के गले में नाल का फंदा। यह देखिये उनकी टेक्स्ट बुक से कोर्ड राउन्ड दी नेक की तसवीर। नाजुक बच्चे के गले मे मोटी रस्सी का फंदा। डाक्टर ने इसके लिए कुछ नहीं किया। जन्म के समय भी उसके गले में यह फंदा था, लेबर नोट में लिखा है। गले में फंदा था तो डिलीवरी में दम घुटना ही था। वही हुआ। बच्चे के दिमाग में ऑक्सीजन नहीं पहुंची। दिमाग का काफी हिस्सा डेमेज हो गया। बच्चा ताउम्र के लिए अपंग और विकलांग हो गया। उसे सेरीब्रल पाल्सी हो गई। दिमाग और जिस्म से विकलांग, आधा अधूरा, लाचार बच्चा। हूजूर, उन मां बाप की सोचिए जिन्हें इस विकलांग बच्चे की परवरिश करनी है।
अस्पताल और लेडी डाक्टर के वकील ने नजीर पेश कर बताया कि कोर्ड राउन्ड दी नेक - नाल के फंदे से दम नहीं घुटता। अदालत ने वकील को बच्चे के गले में फंदे की तस्वीर दिखाई और पूछा, इससे गला नहीं घुटेगा? बच्चे का दम नहीं घुटेगा? वकील ने बताया, बच्चा सांस ही नहीं ले रहा तो उस का दम क्या घुटेगा? वकील ने नजीर पेश की जिसमें बताया गया था कि डिलिवरी पर कोर्ड राउन्ड दी नेक तो काफी बच्चों में मिलता है, लकिन आक्सीजन की कमी से दिमाग को डेमेज बहुत कम में होता है। अदालत ने फर्माया, जिनकी किस्मत अच्छी होती है वे बच जाते होंगे। वकील, जिनके गले में फंदा नहीं होता उनमें भी आक्सीजन की कमी से डेमेंज मिलता है। कोर्ट, आप बाकी के केस छोड़िये, यह बताइये इस बच्चे में गले के फंदे से नहीं तो आक्सीजन सप्लाई कैसे कटी? बच्चा डिलीवरी के पहले बिलकुल ठीक था। वकील, बच्चा डिलीवरी के दौरान भी ठीक था। कोई साक्ष्य नहीं है कि डिलिवरी के दौरान ऐसा हुआ। कोर्ट, ऐसा हुआ है, क्या यह साक्ष्य नहीं हैं? वकील, नहीं ये मेंडिकल साक्ष्य नहीं है। उसने नजीर पेश की कि प्रसव और डिलीवरी के दौरान बच्चे में आक्सीजन की कमी होने पर बच्चे के दिल की धड़कन गड़बड़ा जाती है, बच्चे के आंत का मल एम्नियोटिक फ्ल्यूइड - गर्भ जल में आ जाता है और उसके बहने पर साफ दिखाई देता है।
इसे फीटल डिस्ट्रेस कहते हैं। बच्चे की डिलीवरी के दौरान ऐसा कुछ नहीं हुआ। कोर्ट, चलिए, एक बार आपकी बात मान लेते हैं। आप बताइये, बच्चे का दम कैसे घुटा? वकील, यह बड़ा पेचीदा मामला है, एक्सपर्ट ही बता सकते हैं। अब इसमें एक्सपर्ट क्या बतायेंगे? डिलीवरी के पहले मालूम हो गया था कि बच्चे के गले में नाल का फंदा है। डाक्टर ने इसको कोई तवज्जो नहीं दी। डिलीवरी करवाई। फंदा कसने से बच्चे का दम घुटा और उसके दिमाग में आक्सीजन की कमी से न ठीक होने वाली क्षति हो गई। वकील ने समझाने की कोशीश की कि आक्सीजन की कमी कोर्ड राउन्ड दी नेक से गला घुटने से नहीं, कार्ड कम्ंप्रेशन से बच्चे को रक्त सप्लाई अवरुद्ध होने से होती है। अदालत, हुआ तो कोर्ड के कारण ही न? वकील, कोर्ड राउन्ड दी नेक में कोर्ड कम्प्रेशन नहीं होता। कोर्ट, आप तो यह बताइये कि जब आप को मालूम हो गया था कि बच्चे के गले में नाल का फंदा है, और दम धुटने की संभावना है, तो उसे रोकने के लिए आपने क्या किया? आपने कुछ नहीं किया।
अदालत का फर्मान, हर्जे-खर्चे, मानसिक पीड़ा और बच्चे के ताउम्र परवरिश में आने वाले खर्चे, सब के पेटे मिला कर 30 लाख रुपये फरयाद की तारीख से मय 9 प्रतिशत ब्याज के फरियादी को दिए जायें।
लेडी डाक्टर को जब कोर्ट आर्डर मिला तो उन्होंने वकील से पूछा, इस आर्डर के माने क्या यह है कि सोनोग्राफी में जब भी कोर्ड राउन्ड दी नेक मिले, तुरंत सीजेरियन कर दिया जाये? वकील ने कोई जवाब नहीं दिया। लेडी डाक्टर, कोर्ड राउन्ड दी नेक तो रोजाना का मामला है। अब केस आया तो आपके पास भेज दूंगी। जज साहब से पूछ लेना क्या करना है, सिजेरियन या नार्मल डिलीवरी?
वकील, मैडम आप तो मेरे गले में फंदा डाल रहीं हैं।
डॉ. श्रीगोपाल काबरा
15, विजय नगर, डी-ब्लॉक, मालवीय नगर, जयपुर-302017
मो. 8003516198