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व्यंजना


अतिथि संपादक की क़लम से


Surya_Prasad_Dixit

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सह अस्तित्व की त्रासदी


भारतीय संस्कृति अपने मूल में बहुलतावादी है. 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' 'संगच्छध्वं' 'वसुधैव कुटुंबकम' उसके मूल स्वर सुपरिचित हैं. यहाँ आर्य-द्रविड़,हिन्दू-मुस्लिम आदि अनेक वर्ग साथ-साथ रहते आए हैं. हज़ार वर्षों की गुलामी के बीच मुगलों और अंग्रेज़ों ने हमें जातियों में बांटा और राज किया. आज तक हम उनके षड्यंत्र से पूरी तरह नहीं मुक्त हो पाए. आज़ाद भारत में अल्पसंख्यक वर्गों को हमारे संविधान ने सुरक्षा की गारंटी दी है. उसके बावजूद हिन्दू-मुस्लिम के बीच अविश्वास का संकट मड़राता रहा. इसी आशंकावश उन्होंने देश का बंटवारा करवाया.कई मुस्लिम नेताओं के सामंती दिलोदिमाग में यह शंका बरकरार रही कि इस धर्मनिरपेक्ष प्रजातान्त्रिक प्रणाली में हम अल्पमत वालों की कौन सुनेगा.सर सैय्यद,अल्लामा इक़बाल जैसे पाकिस्तान परस्त लोगों ने यह नारा दिया कि हमने,यानी हमारे पूर्वजों ने वर्षों तक शान से इस मुल्क पर राज किया है,अब हम इनके मातहत नहीं रहेंगे.ये बदले की कार्रवाई जरूर करेंगे.मुस्लिम लीग तो कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन से ही कहती रही है कि कांग्रेस हिन्दू पार्टी है.उसके साथ हम धर्मनिरपेक्ष होकर नहीं रह सकते. इसी दृष्टि से जिन्ना ने इस्लामिक कंट्री पाकिस्तान की रचना की. रोते-चीखते सबको बंटवारा क़ुबूल करना पड़ा. दुर्भाग्य से यह विभाजन भी रक्तरंजित हो गया. हिंसा न होने पाए इस ध्येय से हमने अंग्रेज़ों के साथ नब्बे साल की लम्बी अहिंसात्मक लड़ाई लड़ी,पर आखिरकार १५ अगस्त के आसपास आज़ादी की बलिवेदी पर लगभग दस लाख निर्दोष लोगों की बलि हमें देनी पड़ी. उनकी हर ज़िद हिन्दू नेताओं ने मानी. उनके दबाव में आकर खिलाफत आंदोलन (विदेशी संघर्ष ) में भी हमने खलीफा का साथ दिया. जिन्ना को प्रधानमंत्री तक बनाने को तैयार रहे. बंटवारे के बाद पाकिस्तान जा रहे मुस्लिम भाइयों को जोर देकर यहाँ रोका.प्रशासन में उन्हें उच्च स्थान दिया.जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान ने कबिलाइयों के वेश में अपनी फौजें भेज कर काफी कुछ क्षेत्र हथिया लिए,तो भी 'डायरेक्ट ऐक्शन' के बजाय हमने यू. एन. ओ .की शरण ली. कारण,' हिन्दू हिंसा न दूषियति. हमें किसी की भी हत्या देखकर रोमांच हो जाता है. इस अहिंसक मनः स्थिति को भांप कर पाकिस्तान ने छल बल पूर्वक तीन चार हमले किये. तब हमें बरबस शक्ति-प्रयोग करना पड़ा.पूर्वी पाकिस्तान के युद्ध में पाक सेना ने सम्पूर्ण आत्मसमर्पण कर दिया था. भारत चाहता तो पूरे कश्मीर को लेकर ही समझौता करता. कारगिल की लड़ाई के पूर्व भारत के प्रधानमन्त्री सद्भावना यात्रा लेकर वहां गए थे. इसका उतर पाकिस्तान ने कपटपूर्वक दिया. वे बराबर भारतियों को कोसते रहे. ऐटम बम की धमकी देते रहे, इस्लामिक यूनियन का खौफ दिखाते रहे और भारत में बसे मुस्लिम युवाओं को आतंकी बनाते रहे. आज उनके अधिकतर मदरसे षड्यंत्र के केंद्र बने हुए हैं. उन्होंने माफियागिरी एवं 'वक्फ' के नाम पर आज भी देश के एक चौथाई भू-भाग पर कब्जा कर रखा है. यह गारंटी बनवा ली है कि जिस किसी जायदाद पर वक्फ बोर्ड उंगली रख देगा, उस पर हमारी न्यायपालिका भी विचार तक नहीं कर सकेगी. यह भी लिखवा लिया है कि जिन-जिन मंदिरों को अपवित्र कर,तोड़कर मस्जिदें,बनवा ली गई हैं, अब उस प्रश्न को कभी छेड़ा नहीं जा सकता है. हमारे संविधान में गो-वध निषिद्ध है,पर मुस्लिमों के लिए वह बकरीद है. भारत सरकार रोके तो वह मॉबलिचिंग (अन्याय) है. वे दिनरात भोपड़े बजाएं,नमाज के बहाने सड़कों पर कब्जा कर लें, गंदगी एवं आबादी बढाते जाएँ,आतंकवादियों को पूरी सहायता देते रहें पर हम यह कहने की जुर्रत न करें कि 'सब धर्म समान हैं.' उनके अनुसार इस्लाम से बराबरी का दावा करना कुरआन शरीफ की शान में बदसलूकी है.


भारतीय राजनीति में चुनावी गतिविधि को देखते हुए मुस्लिम समाज ने भाजपा को अपना स्थाई शत्रु घोषित प्रचारित कर दिया और यह नीति बना ली है कि हर चुनाव क्षेत्र में भाजपा को हराने वाली पार्टी या व्यक्ति को एकजुट होकर समर्थन दिया जाए. मुसलमानों ने केरल में अपने चिर प्रतिद्वंद्वी कम्युनिस्टों से संधि कर रखी है. यूपी में सपा से, बिहार में राजद से, दिल्ली में आप से, बंगाल में तृणमूल कांग्रेस से और कई राज्यों में कांग्रेस से संधि है. भारत सरकार ने उनकी शिक्षा, चिकित्सा, अन्न वितरण, आवास, जल, जनधन, उज्ज्वला, मानधन , कौशल विकास आदि योजनाओं में किसी भेदभाव के बिना उन्हें आगे निरंतर बढ़ाने की पूरी कोशिश की है. यह समझाने की कोशिश की है कि हम सब भारतीय हैं, पर उन्हें 75 साल बाद भी भारत भूमि रास नहीं आई. यहां का झंडा, राष्ट्रगान, संविधान तक नहीं. हम तो मजबूरन रहीम, रसखान, आजाद, हमीद, कलाम आदि के नाम दोहराते हुए उन्हें गले लगाना चाहते हैं वे भी मन ही मन यह महसूस करते हैं कि अन्य देशों के प्रवासी मुसलमानों की तुलना में भारतीय मुसलमान बेहतर स्थिति में हैं, पर मौके का फायदा उठाते हुए वे ये नारे लगाते रहते हैं कि


धारा 370 को फिर से बहाल करेंगे, तीन तलाक और हिजाब का निषेध नहीं मानेंगे, समान आचार संहिता को नहीं स्वीकार करेंगे और किसी राष्ट्रवादी पार्टी को राज्य, केंद्र की सत्ता पर भरसक नहीं पहुंचने देंगे. भाजपा के बजाय सारे राजनीतिक मुसलमानों की तुष्टिकरण में लगे हुए हैं. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ऑटोनॉमी के नाम पर ताल ठोंकती रहती है, केरल और बंगाल की सरकारें इनके आगे घुटने ठेके हुए हैं. इन्होंने दूरवर्ती योजनाओं के तहत बांग्लादेश के रोहिंग्या मुसलमानों को बंगाल से जम्मू तक इस तरह सेट कर दिया है कि चुनाव क्षेत्र की डेमोग्राफी ही बदल गई है और हिंदू अल्पमत में हैं. वहां आज भी यह कहर बरपाते रहते हैं. संभल में कायम मस्जिद भारत सरकार के संस्कृति पुरातत्व विभाग के अधीन है. इधर चर्चा छिड़ी कि उसके नीचे कोई मंदिर दबा पड़ा है. इन्होंने पुरातत्व के अधिकारियों को खदेड़ कर उस पर कब्जा कर लिया और हिंसा का तांडव करते हुए यह प्रचार किया कि भारत उनके सांस्कृतिक अस्तित्व को नेस्तनाबूद करने पर आमादा है.ऐसे जुनूनी नारों से हमारी न्यायपालिका तक घबरा जाती है,सरकारें मान मनौती में लग जाती हैं कि हम लव-जिहाद, धर्मान्तरण पर कोई करवाई नहीं करेंगे.कोविड के बीच मुस्लिम भाइयों ने फतवा दिया कि कोई वैक्सीन नहीं लगवायेगा.किसी विकास कार्य में सहयोग न करके,जकात केवल मुस्लिम धार्मिक संगठनों को ही दी जाएगी. हम अरबी,फ़ारसी छोड़कर संस्कृत-हिंदी नहीं अपनाएंगे. उर्दू को हिन्दुस्तानी रूप में मिलजुली भाषा नहीं मानेंगे. हमारे ख़ानसामा थूक-थूक कर हिन्दू खान-पान को भ्रष्ट करते रहें तो हमारा बदला पूरा हो जाएगा.विडंबना देखिये की जिस पूर्वी पाकिस्तान को मुक्ति सेना के साथ मिलकर हमने उनके बांग्लादेश को बनाने में मदद की वही देश हिन्दू मंदिरों और बस्तियों को नष्ट भ्रष्ट करने में जुटा हुआ है.


भारत के एक प्रधानमंत्री ने तो यहाँ तक की घोषणा कर रखी है कि देश के विकास के लिए आवंटित बजट में सबसे बड़ा हिस्सा मुसलमानों का होगा.शायद उन्हें अल्पसंख्यक समझ कर जबकि कई क्षेत्रों में आज वे बहुमत में हैं. हिन्दू, सिक्ख तो उनके पिछले अन्याय लगभग भूल गए हैं,और मैत्री का हाथ बढ़ा रहे हैं पर वे ऐसा कहकर हमारे जख्मों को ताज़ा करते जा रहे हैं कि सिर्फ पंद्रह मिनट के लिए पुलिस को रोककर हमें सत्ता की बागडोर दे दो तो हिंद्स्तान से हम आपका वजूद मिटा देंगे. प्रश्न है कि सहिष्णुता,राम रहीम,धर्मनिरपेक्षता के क्षद्म नारों के बहाने यह जुल्मोंसितम हिन्दोस्तान कब तक सहेगा.उत्तेजित हुए बिना आइये इस समस्या का हल जमीन से ढूंढ निकालें .जयहिंद .


हार्दिक शुभकामनाएं


प्रोफ़ेसर सूर्यप्रसाद दीक्षित


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