अर्थात जब तक ये पर्वत ये सरिताएं पृथ्वी पर रहेंगी तब तक यह राम कथा भी। आज यह राम कथा एक सौ छियालिस देशों में व्याप्त है। कुल बांसठ देशों में रामलीला भी परिव्याप्त है। विश्व में लगभग पंद्रह लाख राम मंदिर और लगभग पांच हज़ार वर्षों से रामोपासना भी प्रचलित है। ये श्री राम परब्रह्म के पर्याय भी हैं। यह निर्गुण सगुण लोक-शास्त्र रहस्य दर्शन एवं काव्य कला सब में विद्यमान हैं। राम कथा वेदोपनिषद, पुराण, संपूर्ण वांग्मय, शैव, वैष्णव मत, तंत्र-मंत्र, श्रमण, बौद्ध, आलवार-नालवार सम्प्रदाय यहां तक कि मुसलमान और ईसाई समाज से भी सम्बद्ध है। भारत की दो दर्जन बड़ी साहित्यिक भाषाओं में और सैकड़ों जनपदीय बोलियों में हमारी आकर भाषाओं ( जैसे संस्कृत,पालि, प्राकृत अपभ्रंश में ) और कई विदेशी भाषाओं ( मुख्यतः फ्रेंच,अंग्रेज़ी, जर्मन, इटैलिक, रूसी, जापानी, अरबी, फारसी आदि ) में कई विचित्र वृत्तांतों, पाठांतरों के साथ दृष्टव्य है। वाल्मीकि रामायण की परम्परा में तुलसीदास कृत रामचरितमानस काफी कुछ नई राम कथा को लेकर विश्व के कोने-कोने में पहुंची है। कई भाषाओं में उसके अनुवाद हुए हैं। कहीं गद्यात्मक कहीं पद्यात्मक अब तक मानस की लगभग तीन सौ पाण्डुलिपियां ( पाठ प्रतियां) मिली हैं। लोगों को जो प्रतियां सुलभ हुईं या रुचिकर लगीं, उन्होंने उसी को अपना स्रोत ग्रंथ बनाया और अपनी लक्ष्य भाषा के रूप में उसका भाषांतरण किया है। किसी ने सातों कांण्डों का अनुवाद किया, किसी ने आंशिक अनुवाद किया। कुछ विद्वानों ने मानस के सारांश (सारानुवादों) अपनी भाषा में लिखे और कुछ ने तो टीका भाष्य रचे। बहुत दिनों तक यह भ्रांति रही कि यह कृति वाल्मीकि रामायण का भाषानुवाद है। इस भ्रम से प्रथम बार मुक्ति दिलाई इटली के विद्वान तेस्सोतरी ने, रामायण और मानस का तुलनात्मक अध्ययन करके 1887 ईस्वी में। डॉ. तेस्सोतरी अर्से तक भारत में रहे थे। वह हिंदी के अच्छे विद्वान थे। उन्होंने पहली बार दावे के साथ कहा था कि यह कृति पूर्णतः एक स्वतंत्र रचना है। यह उल्लेखनीय है कि मानस विषयक आरंभिक शोध-समीक्षा परक लेखन पाठ सम्पादन और प्रकाशन विदेशी विद्वानों द्वारा किए गए हैं। इसे इपिक आफ एशिया मानते हुए। कारपेंटर ने अपने पी.एच.डी. शोध प्रबंध का विषय बनाया। और लंदन विश्वविद्यालय में 1918 में थियोलॉजी तुलसीदास नामक शोध ग्रंथ लिखा। इस राम कथा की पहली समीक्षा की एच.एन. विल्सन ने। रिलीजियस सेक्स्ट्स आफ हिंदूज नामक कृति में की। विश्व स्तर पर इसे पहुंचाने का प्रथम प्रयास किया जॉर्ज ग्रियर्सन ने, उन्होंने 1899 में ' नोट्स ऑन तुलसीदास ' नामक पुस्तक में यह घोषणा की थी कि शील का इससे बेहतर चित्रण और कहीं नहीं मिलेगा। यह भी कि भाषा का ऐसा सुविचारित प्रयोग और कहीं नहीं दिखेगा। ग्रियर्सन ने प्राच्य सम्मेलन के मंच पर मानस का सर्वाधिक गौरव गायन कर पहली बार पहले विश्व के विश्रुत विद्वानों का ध्यानाकर्षण किया। अपने साहित्येतिहास ग्रंथ में ग्रियर्सन से भी पहले गार्सा द तासी ने तुलसीदास को उपयुक्त स्थान दिया। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में ग्रियर्सन ने ही उनकी प्रविष्टि कराई। उन्होंने ही कुछ भारतीय मानस मर्मज्ञों के सहारे मानस का पाठ शोधन करते हुए उसे पहली बार विलास प्रेस बांकीपुर (पटना) से प्रकाशित कराया। फलतः कई विदेशी विद्वानों का ध्यानाकर्षण हुआ। इसे पढ़ कर प्रोफेसर डगलस ने इसे हाईएस्ट आर्टिस्टिक वर्क घोषित किया। एफ. ई. की. ने इसको उत्कृष्ट काव्य कहा। टामसन ने आइडियल मॉरल बुक कहा। क्रॉस ने इसका गद्यानुवाद 1880 करते हुए लिखा कि यह बाइबल से ज्यादा लोकप्रिय है और भारत में महलों से लेकर झोपड़ियों तक में विद्यमान है। इन सबसे पहले फ्रेंच विद्वान गार्सा द तासी हिंदी भाषा साहित्य का इतिहास लिखते हुए तुलसीदास को स्थान दे चुके थे और मानस के कुछ काण्डों का फ्रेंच में अनुवाद भी कर चुके थे। पश्चिम में मानस के लगभग डेढ़ दर्जन अनुवाद हुए हैं। फ्रेंच, रूसी, इटली, चीनी, जापानी, पोलिस आदि भाषाओं में भी इसके कई कई अनुवाद हुए हैं। मानस का पहला अंग्रेजी अनुवाद किया एफ. एस. ग्राउस ने 1876 में। यह एशियाटिक सोसाइटी जनरल में 1934-38 के बीच प्रकाशित हुआ था। फिर यहां दो खण्डों में पुस्तकाकार छपा। ' दि प्रोलाग टु दी रामायन ऑफ़ तुलसीदास: ए स्पेसिमेन आफ ट्रांस्लेशन ' नाम से। यह अनुवाद सफल गद्यानुवाद तो है किंतु सांस्कृतिक पारिभाषिक शब्दावली में जगह-जगह भूल चूक करता दिखता है। जैसे दीन जनेऊ गुरु पितु माता पंक्ति में जनेऊ अर्थ ज्ञान दिया गया है।
अंग्रेजी का एक महत्वपूर्ण अनुवाद विल्सन द्वारा किया गया है - ' रिलीजियस सेक्ट्स ऑफ़ राम ' नाम से। सन 1839 ईस्वी में डगलस पे हिल्स ने अपने अनुवाद को नाम दिया ' द होली लेक आफ ऐक्ट्स आफ राम ' यह गद्यानुवाद ऑक्सफोर्ड प्रेस से 1951 में प्रकाशित हुआ था। इसी से प्रभावित या प्रतिस्पर्धा प्रेरित होकर सी. एल. ढोली ने ' द स्प्रीचुवल लेक आफ दि ऐक्ट्स आफ राम ' नामक अनुवाद प्रस्तुत किया। इसी क्रम में ग्रीव्स एडविन ने ' रामायन ऑफ़ तुलसीदास 1895 में। मानस एक पद्यानुवाद करने का श्रेय एटकिंस को है। उन्होंने 1954 में यह प्रयास किया था। इनके बहुत पहले 1890 में रूस के विद्वान वारान्निकोव ने 7 वर्षों तक अकूत श्रम करके दोहा चौपाई जैसे कई छंद रूसी में बनाकर इसके काव्य अनुवाद का सुंदर नमूना पेश किया था। इस कृति की भूमिका में वारान्निकोव ने इसे विश्व का सबसे बड़ा प्रगतिशील और मानवतावादी काव्य कहा। इस मत की पुष्टि करते हुए अर्नेस्ट वर्ड ने दावा किया कि यह विश्व की परम मानवतावादी तथा नितांत आदर्शवादी एवं असाम्प्रदायिक रचना है। लंदन विश्वविद्यालय के हिंदी विद्वान रूपर्ट स्नेल ने मानस रीडर का संपादन कर इसे नीति शिक्षा का माध्यम बना दिया। क्रमशः मानस की लोकप्रियता बढ़ती रही और विभिन्न भाषाओं में इसके अनुवाद होते रहे। जैसे 1- पोलैंड के लेखक तात्याना द्वारा पोलिस भाषा में किया गया अनुवाद।
2- जापानी भाषा में इकदा द्वारा किया गया मानस अनुवाद।
3- चीन के प्रोफेसर जिन द्वारा चीनी भाषांतरण।
4- जर्मनी के लोठार लुत्से द्वारा लिखित कैटेलर मानस 1977 व्याकरण।
5- इटली के तुर्वियानी द्वारा दोहावली वैराग्य संदीपनी का अनुवाद और आल्विन का कवितावली अनुवाद।
इसी संदर्भ में दो भारतीय अंग्रेजी विद्वानों के अनुवाद भी विचारणीय हैं। एक है आर.सी. प्रसाद कृत गद्यानुवाद 1988 और दूसरा एस.पी. बहादुर कृत तुलसी साहित्य का संपूर्ण अनुवाद। स्फुट रूप से यू. एस. ए. के पिंकाट, चेक निवासी ओदोनल स्मेकल, मिलनर, कामिल बुल्के आदि के प्रयास भी काफी कारगर हुए। दक्षिण पूर्व एशिया में भारतवंशी देश में और अपने पड़ोसी देशों में मानस पर निरंतर परिचर्चा होती रही है। थाईलैंड में रामकियेन नामक राम कथा, इंडोनेशिया जावा की काकवीन रामायण, कंबोडिया की रामकेर, मलेशिया की हिकायत राम सेरत राम, सिंहली में लिखित जानकी हरणम और सिल्वा रामायण, लाओस की लाओ भाषा में 8000 ताड़ पत्रों पर लिखित श्री राम कथा, बर्मा (म्यांमार) यामा रामलीला, कोरिया सियोल और अयोध्या सिस्टर सिटी, तुर्की की खेतानी रामायण आदि यह इस कथन के स्वतः प्रमाण हैं कि विश्व के कोने-कोने में भांति-भांति की रामायणें अंतर्व्याप्त हैं। दक्षिण भारत की चारों भाषाओं में भाषांतरण के कई प्रयास हुए हैं। तमिल की अपनी प्रसिद्ध राम कथा है। रामावतार यानी कंबन रामायण। इसके अतिरिक्त दिव्य प्रबंधम (नालायरि) जैसे अनेक राम कथा पारक ग्रंथ भी उसमें हैं। इसीलिए श्रीनिवास जगन्नारायण ने 1971-72 के बीच पांच खण्डों में मानस का गद्यानुवाद किया है। इसमें २४२० पृष्ठ हैं, 6000 पद हैं और इसे शिक्षा मंत्रालय ने प्रकाशित किया है।
2- कन्नड़ में लगभग अर्धशत राम काव्य मिलते हैं। इनमें 30 जैनी राम कथाएं हैं। नागचंद्र रचित पंप रामायण, पोन्न रचित रामाभ्युदयम तोफे रामायण, कुंवेपु रचित रामायण दर्शनम् आदि कई कृतियां महत्वपूर्ण हैं। यहां अधिकतर गद्यानुवाद किए गए हैं। जैसे बिंदु माधवाचार्य का अनुवाद। 2- एन.एस. दक्षिणमूर्ति कृति सुंदर काण्ड का अनुवाद।
3- भारती रमणाचार्य का गद्यात्मक कथासार।
1- शंभुनाथ भट्ट द्वारा मुक्त छंद में किया गया बालकाण्ड का अनुवाद।
2- दत्तात्रेय सुब्बाराव कृत हिंदी छंदों वाला अनुवाद जो कर्नाटक प्रचार सभा द्वारा 1965 में प्रकाशित हुआ। तेलुगु भाषा में वाल्मीकि रामायण के कई अनुवाद हुए हैं और उससे प्रेरित तेलुगु में कई श्रेष्ठ राम काव्य भी रचे गए हैं। जैसे1- रंगनाथ रामायण 2- भास्कर रामायण3- मोल्ल रामायण 4- अध्यात्म रामायण का भाषांतर आदि। रामचरितमानस के अनुवाद का प्रयास तेलुगु में करने वालों में प्रमुख हैं-
1- कृष्णमूर्ति शास्त्री जिन्होंने अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड और सुंदरकाण्ड का 1880 -84 के बीच दोहा चौपाई छंदों में तेलुगु अनुवाद किया।
2- नरसिंह शर्मा कृत बालकाण्ड का अनुवाद 1929
3- सूर्य नारायण मूर्ति कृत बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, उत्तर काण्ड भाषांतर 1956 -1980।
4- केशव तीर्थ कृत आरंभिक चार काण्डों का गद्यानुवाद 1963।
5- श्रीनिवासन कृत गद्यानुवाद 1927।
6- लक्ष्मी सरस्वती कृत भाषांतरण 1956।
7- इंदिरा देवी कृत व्याख्यानुवाद 1983।
8-कमल कुमारी कृत सारा अनुवाद।
9- स्वागम्यु राव द्वारा अनूदित बालकाण्ड का अनुवाद 1986। स्पष्ट है कि सांस्कृतिक भाषिक सान्निध्य के कारण इन तेलुगू अनुवादों को अपेक्षाकृत ज्यादा सफलता मिली है। मलयालम भाषा की मणिप्रवाल शैली में संस्कृत हिंदी के लगभग 80 पर्सेंट शब्द समाविष्ट हैं। यहां की राम काव्य परंपरा भी बहुत पुरानी है। एषुतच्छन्न ने अध्यात्म रामायण, शंकर कुरुप ने तुलसीदास की रामायण को प्रतिष्ठित करने का काफी यश प्राप्त किया। मलयालम में मानस के जो भाषांतरण हुए हैं उनमें एक काव्यानुवाद है टी के महतरी (1968) का। अधिकांश यह टीकानुवाद हैं जैसे रामन पिल्लै आसान कृत बालकाण्ड अनुवाद 1930 काफी लोकप्रिय है। चंद्रशेखर नायर का कई खण्डों में 1954-57 के बीच प्रकाशित अनुवाद भी पर्याप्त सफल सिद्ध हुआ है। अन्यान्य भारतीय भाषाओं के कुछ अनुवाद भी उल्लेखनीय हैं जैसे-मराठी में। यद्यपि मराठी में भावार्थ रामायण एकनाथ सेतुबंध प्रवर सेन जैसी अपनी कई श्रेष्ठ राम कथाएं हैं। फिर भी उसमें मानस के ये छह अनुवाद प्राप्त होते हैं। 1- मानस गद्यानुवाद यादव शंकर जामदा 1913। 2- सार्थ तुलसी रामायण नारायण भास्कर जोशी। 1970। 3-गीत तुलसी रामायण मटशूलकर 1977। 4- सुश्लोक मानस रामचरित चिंतामणि श्रीखण्डे 1953। 5- मानस विहार देवीदास लक्ष्मण महाजन 1955। 6- मराठी तुलसी रामायण सुलोचना खांडेकर 1956। हिंदी में प्राणनाथ कृत राम ग्रंथ बुलचंद आडवाणी का राम गीता आदि ग्रंथ चर्चित हैं। साथ ही मानस के कुछ अनुवाद भी उल्लेखनीय हैं। यथा गोविंद राम कृत बालकाण्ड 1947। 2- उत्तमचंद शास्त्री की तुलसी रामायण। 3- लोक राम का गद्यानुवाद। 4- लीलाराम का रामायण नाटक। बांग्ला में कृतिवास ओझा रचित कृति वासी रामायण। तुलसी मानस का कुछ पूर्ववर्ती है। बंगाल में कृति वासी रामायण के अतिरिक्त अद्भुत रामायण जगत राम चंद्रनाथ बसु, राम रसायन गौरी शंकर आदि भी लोकप्रिय हैं। बांग्ला में एकमात्र अनुवाद प्राप्त है सती नाथ भादुड़ी का। पंजाबी भाषा मध्यकाल में हिंदी से अभिन्न थी। उसमें गोविंद रामायण, अध्यात्म रामायण, अनूप रामायण, कीरति रामायण आदि 50 राम कथाएं समय-समय पर रची गईं। इसमें दशावतार गुरु गोविंद सिंह 1698 सर्वाधिक उल्लेखनीय है। पंजाबी भाषा में रामचरितमानस का एक काव्यानुवाद किया गुरु गोविंद सिंह ने तुलसी रमण नाम से। 1926 ईस्वी में दूसरा प्रयास रतन सिंह जग्गी ने इसका लिप्यांतरण करके और 1966 में गद्य टीका लिख करके। इसके अतिरिक्त दिलशाद कृत पंजाबी रामायण और ज्ञानी संत सिंह अमृतसरी रचित रामचरित मानस टीका भी स्मरणीय हैं। पूर्वांचली भाषाओं में असमिया का राम काव्य काफी महत्वपूर्ण है। उसमें वरेण्य हैं शंकर देव रचित राम विजय उत्तर काण्ड, माधव कंदली तथा अनंत कंदली की रामायणें। पंचानन पाताल रामायण, रघुनाथ कृत कथा रामायण, ज्योति रामायण रामाश्वमेध आदि काव्य भी महत्वपूर्ण हैं। मैथिली के हिंदी अनुवादक के रूप में विख्यात राजा कमलेश्वर सिंह राज्याश्रित कवि सूर्यविप्र ने तुलसीदासी रामायण की जो रचना 1945 में की वह स्तरीय मानी जाती है। इन्होंने लंका काण्ड और उत्तर काण्ड का अनुवाद क्रमशः 1926 और 1137 छंदों एवं 17911 पृष्ठों में किया है। एक उल्लेख कृष्ण नाथ शर्मा के मानस गद्दानुवाद 1980 का प्राप्त होता है। पूर्वांचल क्षेत्र में चूँकि शाक्त मत ज्यादा लोकप्रिय है इसलिए इन राम कथाओं पर इसका प्रत्यक्ष परोक्ष प्रभाव देखा जाता है। ओड़िया में मानस के पांच अनुवाद पाए जाते हैं। 1- मानस दो काण्ड राधानाथ राव 1894। 2- मानस काव्यानुवाद मुकुटधर पाण्डेय 3- मानस काव्यानुवाद राजकिशोर कानून गो 1920। 4- मानस अनुवाद स्वपनेश्वर दास क्षेपकों सहित 1921। यह उल्लेखनीय है कि उड़िया में सरला दास कृत बिलंका रामायण, बलराम दास की उड़िया रामायण एवं सदाशिव की उत्कली रामायण काफी लोकप्रिय हैं। गुजराती में भालण कृत रामायण गिरधर रामायण, कहान रामायण आदि काफी चर्चित हैं। चूंकि मध्यकालीन गुजराती में कृष्ण भक्ति अपेक्षाकृत ज्यादा प्रचलित रही है और चूंकि गुजराती हिंदी से अभिन्न थी इसलिए गुजराती में रामायण के कई समश्लोकी काव्यानुवाद दिखाई देते हैं।
भारत की कुछ अन्य भाषाओं में भी कई खण्डित स्फुट भाषांतर पाए जाते हैं जैसे कश्मीरी में दिवाकर रचित कश्मीरी रामायण 18 वीं सती एवं मास्टर जिंदा कौल के रामायण प्रसंग, मैथिली में राम लोचन शरण द्वारा किया गया मानस का अनुवाद, खड़ी बोली में राम निरंजन पाण्डेय का अनुवाद, बिलासपुरी रामायण, कुमाऊँनी में विशन दत्त जोशी का खण्डानुवाद, भोजपुरी में दुर्गा शंकर कृत भोजपुरी रामायण, हरियाणवी में रामेश्वर दयाल शास्त्री कृत अनुवाद, उर्दू में देवीदास रचित तुलसी रामायण, नेपाली में भानु शक्ति की रामायण और तुलसी मानस से प्रेरित नेपाली, अवधी भाषा में निर्मित सूर्यनाथ गोप की रामायण। इन गद्य पद्यात्मक अनुवादों में देश काल से जुड़ी न्यूनताएं दिखाई देती हैं, आज से 500 वर्ष पूर्व अवध क्षेत्र में जो अवधी शब्दावली और मुहावरेदानी प्रचलित थीं उसे बहिरवर्ती अनुवादक प्रायः नहीं पकड़ पाए हैं। गोस्वामी जी ने यूं तत्सम बहुल संस्कृतनिष्ठ अवधी लिखी है। पर यथा संदर्भ उन्हें देशज ठेठ शब्द भी अपनाने पड़े हैं। जैसे कोहबर, परिछन लहकंवरि, साथरी, गजओबरी, सुआरा, दियासे भाति आदि। उन्होंने भारतीय भाषाओं से भी कई शब्द लिए हैं। संज्ञा शब्दों में कई पर्यायवाची प्रयोग किए हैं। कई कहावतें आजमाई हैं, उनकी अवधी भाषा में से स ष व ब य ज डं ञ क्ष त्र ज्ञ एवं रेफ तथा हलंत वाले शब्दों के इतर प्रयोगों के कारण पाठ भेद और स्वर पात के कारण यत्र तत्र अर्थ काफी परिवर्तित हो जाता है, अतैव केवल शब्द कोषों और खड़ी बोली टिकाओं के सहारे सही अनुवाद कर पाना संभव नहीं है, फिर भी जो कार्य हुए हैं अभिनंदनीय हैं, सुधार की गुंजाइश बल्कि जरूरत तो है ही और अनवरत रहनी ही चाहिए।
हार्दिक शुभकामनाएं
प्रोफ़ेसर सूर्यप्रसाद दीक्षित