व्यंजना

2050

- दिव्या माथुर


ऋचा की आँखों में उच्च वर्ग का सा इस्पात उतर आया, एकबारगी उसे लगा कि वह भी इस्पात में ढल सकती है। गँवार लोग ही रोते हैं, उच्च वर्ग के लोगों के सपाट चेहरों पर कभी देखा है किसी ने कोई उल्लास या उदासी! ये लौह युग है, यंत्रों और तंत्रों से संचालित। यहाँ भावनाओं का क्या काम? कितने लोग बचे हैं जो ज़रा ज़रा सी बात पर उद्वेलित हो जाते हैं, जिनकी भावनाएं उछल-उछल कर छलक उठती हैं। ऋचा को अपनी भावुकता पर नियंत्रण रख्रना होगा किंतु अगले ही पल इस्पात तरल होकर बहने लगता। वह अपने को सम्भाल तक नहीं पाती।


‘मुझे एक बच्चा चाहिए। अपना बच्चा, जीता जागता, जिसे मैं छाती से लगा सकूँ, अपना दूध पिला सकूँ।’ कुछ दिनों से ऋचा के इन जज़्बाती दौरों से वेद तिलमिला गया था, उसे डर था कि यदि समाज सुरक्षा परिषद को ऋचा के दौरों की भनक भी लग गई तो उनकी अर्ज़ी पर एक बड़ा सा प्रश्न चिन्ह लग कर रह जाएगा।


’ऋचा, अपने को सम्भालो, तुम तो हमारे लिए एक और मुसीबत खड़ी कर दोगी। बच्चे की इजाज़त मिलना तो दूर, कहीं हम अपने वैवाहिक जीवन से भी न हाथ धो बैठें।’ वेद ने प्लास्टिक का बड़ा सा गुड्डा उसकी गोदी में डालते हुए कहा।


‘मैं क्या बच्चा हूँ वेद, जो तुम मुझे इस गुड्डे से बहला रहे हो?’ गुड्डे को वापिस वेद पर फेंकते हुए ऋचा चिल्लाई और बिस्तर में घुसकर उसने लिहाफ़ से अपने को अच्छे से लपेट लिया। परेशान और पशेमान वेद उसके सिरहाने बैठ गया।


‘तो तुम्हीं बताओ, कि हम क्या करें? क्या मेरा मन नहीं चाहता कि मैं भी पिता बनूँ, माँ इतनी बीमार हैं फिर भी उन्होंने दादी बनने की आशा नहीं छोड़ी है।’


‘मैं क्या करूँ वेद? मैं अपने ऊपर बिल्कुल अंकुश नहीं रख पा रही। इस इस्पात शहर में सारे लोग भी इस्पात के हो गए हैं, बस हम तुम ही अपने को इस्पात नहीं बन पा रहे।’ उसने लिहाफ़ में से सिर निकाल कर कहा।


‘तुम तो जानती हो ऋचा कि हमारे जैसे हज़ारों लोग हैं जिनके आवेदन पत्र कूड़ेदान में फ़ेंक दिये जाते हैं, कम से कम हमारा आवेदन रद्द नहीं किया गया है, हिम्मत रखो।’ भरे मन से वेद ने कहा। हालांकि वे दोनों जानते थे कि समाज सुरक्षा परिषद से उम्मीद करना बेकार था। वेद को फिर से पढ़ाई रटाई शुरु करना असम्भव लग रहा था। इस महँगाई में टयुशन के पैसे निकालना क्या आसान था। यदि वे परिषद के बचत खाते में से पैसे निकाल लें तो बच्चे के लिए उनका आवेदन रद्द किया जा सकता था।


‘मेरी बात ध्यान से सुनो ऋचा, हम जानते हैं कि एक बच्चा पैदा करने के लिए मेरा ही आई क्यू आड़े आ रहा है। अगर तुम एक बड़े आई क्यू वाले के साथ शादी कर लो तो तुम्हें झट इज़ाज़त मिल जाएगी।’ वेद बड़ी संजीदगी के साथ बोला। उसकी आवाज़ में दर्द था पर वह ऋचा की ख़ुशी के लिए कुछ भी करने को तैय्यार था।


ऋचा के बदन में मानो आग लग गई। वह थोड़ी देर तक चुप बैठी उसे ताकती रही और फिर एकाएक उसकी आँखें चमकने लगीं।


‘क्यों न हम दोनों किन्हीं ऐसे दो लोगों से शादी कर लें, जो टैस्ट पास कर चुके हों? हमारे जैसे कई जोड़े होंगे जिनमें से एक असफल रहा हो। बच्चे पैदा करके हम वापिस अपने-अपने घर आ जाएं। मज़े में दो जोड़ों की प्राबलम साल्व्ड! हमारे जैसे कितने ही जोड़े इस तरीक़े से बच्चा पैदा करने में कामयाब हो सकते हैं।’ वह बिस्तर पर ख़ुशी से उछलने लगी मानों उसे कोई ख़ज़ाना मिल गया हो।


‘ऋचा कुछ तो सोच के बोला करो।’


‘वेद, ये सम्भव है। इस तंत्र से लड़ने का बस ये ही एक लूप-होल है। यू आर मारवेलस वेद।’ ऋचा वेद को चूमते हुए बोली।


‘तुम्हारा मतलब है कि हम एक दूसरे से तलाक लें, अपने लिए ‘हाई आई क्यू’ वाले साथी ढूंढें, शादी करें, समाज सुरक्षा परिषद की इज़ाज़त मिल जाए तो बच्चे पैदा करें, तलाक लें और फिर से शादी करके वापिस अपने अपने घर आ जाएं।’


’ऐण्ड लिव हैपिली ऐवर आफ़्टर, सिम्पल।’ वह बिस्तर पर खड़ी होकर नाचने लगी। वेद ने उसे यूँ देखा कि जैसे वह पागल हो गई थी।


‘तुम्हें लगता है कि सुरक्षा परिषद चुपचाप बैठी तुम्हें ये सब करने देगी।’


’क्यों नहीं? माना कि हमें बहुत ही सावधानी बरतनी पड़ेगी। कानों कान किसी को ख़बर नहीं होनी चाहिए, माँ तक को नहीं!’ वह अपने होंठों पर उँगली रखते हुए बोली।


‘यू नो ऋचा, यू आर क्रेज़ी,’ हवा में हाथ लहराता वेद खड़ा हो गया।


‘हाँ, मैं बच्चे के लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ, तुम बोलो, हिम्मत है?’ आँखों में आँखे डालते हुए ऋचा ने उसको उकसाया। उसके चेहरे पर एक एक भाव पढ़ा जा सकता था। वह और सुरक्षा परिषद से टक्कर लेगी? एक मिनट में वे उसे ताड़ जाएंगे।


‘तुम सोच रहे हो कि हम सच पर पर्दा नहीं डाल पाएंगे। हैं ना?’


’तुम्ही कह रही थीं कि हम हाड़ माँस के लोग इस्पात के नहीं बन पाएंगे।


‘प्रैक्टिस से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। आँखे ख़ाली कर लो, चेहरे के भावों को छिपा लो, अब बताओ मैं क्या सोच रही हूँ?’ उसने अपने चेहरे को सपाट करते हुए वेद से पूछा।


‘यही कि तुम बहुत कुछ छिपाने की कोशिश कर रही हो, तुम्हारी आँखो में चित्र जल्दी जल्दी पलट रहे हैं, तुम्हारी ये भोली भाली अदा, ऋचा, वे झट ताड़ जाएंगे। हम दोनों ही नहीं, चारों के चारों जेल में बैठे होंगे।’


ग़ुस्से में एक बार फिर ऋचा बिस्तर में घुस गई और वेद उसे समझाने लगा कि उसकी योजना व्यावहारिक नहीं थी।


’ऋचा, हम सबके ‘डी एन ए’ परिषद के पास सुरक्षित हैं। प्रैगनैंट औरतों पर वे न जाने कितने टैस्ट करती होंगे। उनके पास आधुनिक तकनीकें हैं, उन्हें साफ़ पता चल जाएगा कि वे किस जोड़े के बच्चे हैं।’


‘वेद, यू आर पैरानोइड। हमारे पास और कोई चारा नहीं है। मैं कल परिषद के पास फिर जाती हूँ और अगर अधिकारी मेरी नहीं सुनते तो वादा करो कि हम अपनी एक गुप्त वेबसाइट खोलें लेंगे और देखना कितने ही लाचार लोग आ जुड़ेंगे हम से।’ वेद चुप रहा पर उसके दिल और दिमाग में ज़ोरदार बहस चल रही थी कि ऋचा की इस सनक में उसका साथ दे या नहीं। वह उसका दिल नहीं दुखाना चाहता था।


‘इस झगड़े में पड़ने से तो अच्छा है कि हम स्पर्म-बैंक की सहायता स्वीकार कर लें।’ ‘तुम भी क्या बात करते हो, तुम्हीं ने तो कहा था कि स्पर्म से पैदा हुए बच्चे अपने थोड़े ही होंगे। वे गोरे लगेंगे।’ ऋचा तड़ाक से बोली!


‘आँखों और बालों का रंग, क़द काठी तो हम चुन ही सकते हैं।’


‘और वे चाहे मेरे गर्भ में किसी का भी स्पर्म इंजैक्ट कर दें।’


‘ऋचा, तुम जानती हो कि सौ फ़ीसदी ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि बच्चे में तुम्हारे भी तो जींस होंगे।’ वेद ने उसे समझाने का प्रयत्न किया।


‘इस बात की तुम कोई गारंटी दे सकते हो क्या?’ ऋचा वेद के साथ विवाद की मनोस्थिति में नहीं थी।


परिषद चाहती थी कि उनके स्पर्म बैंक का उपयोग अधिक से अधिक हो। अधिकतर एशियन जोड़े स्पर्म प्रैगनैंसी के ख़िलाफ़ थे। परिषद ऋचा को मुफ़्त में स्पर्म देने के लिए भी तैय्यार थी पर तब वेद को लगता था कि जब उसका स्पर्म अच्छा ख़ासा स्वस्थ था तो वे विदेशी स्पर्म क्यों ख़रीदें?


युवक युवतियों को गर्भ निरोधक गोलियाँ बचपन से ही उपलब्ध थीं पर फिर भी उनका प्रयोग आम नहीं था। परिषद ने लोगों के मन में ऐसा डर बैठा दिया था कि जब तक वे बच्चे के लिए गम्भीर और प्रतिबद्ध न हों, गर्भ धारण न किया जाए। त्वचा की कई बीमारियाँ आज भी लाइलाज थीं। एक्ज़ीमे से ग्रस्त व्यक्ति को कड़ी निगरानी के अन्दर बच्चा पैदा करने की इज़ाज़त इस शर्त पर मिल सकती थी कि दम्पति पूरा ख़र्चा उठाएंगे, जो केवल पैसे वालों के बस की ही बात थी, जिन्हें बाकी के नियम भी पालन करने होंगे। पहले गर्भ को गिरवाना होगा और दूसरे गर्भ के दौरान शोधकर्ता की हर आज्ञा का पालन करना होगा।


वेद रिसर्च-सैंटर में काम करता था, जहाँ मिश्रित जोड़ों और उनके बच्चों पर रिसर्च की जा रही थी। पाकिस्तानी और अफ़्रीकी मूल के जोड़ों पर प्रतिबन्ध लगाने के नियमों पर विचारों के आदान-प्रदान के लिए आज सुबह एक मीटिंग बुलाई गई थी, जिसकी वजह से वह ऋचा के साथ नहीं जा सका था।


सुबह सुबह ऋचा ख़ूब ज़ोर शोर से तैय्यार हुई। ज़री वाली फ़िरोज़ी नई कुर्ती, टाइट जींस और कानों में चाँदी के लम्बे-लम्बे बुन्दों से सजी धजी ऋचा परिषद के दफ़्तर में बड़ी उम्मीद से बैठी थी जैसे कि वह अधिकारियों को अपनी स्मार्टनैस से ही रिझा लेगी। सरकार और समाज सुरक्षा परिषद ठीक ही तो चाहतीं थीं कि इस देश के हर व्यक्ति और हर चीज़ को उत्तम, श्रेष्ठ और पूर्ण होना चाहिए।


मौसम ख़ुशगवार था और होता क्यों नहीं। बादल और बारिश अब मौसम-विभाग के हाथ में जो थे। बारिश का प्रयोजन अधिकतर रात को ही होता था ताकि लोगों की दिनचर्या में बाधा न आए। कतारों में बनी समरूप क्यारियों में उत्तम श्रेणी के फूल खिल रहे थे। मजाल था कि उनमें से एक फूल की एक भी पत्ती पीली हो। फूलों को छू लेने पर भी अहसास नहीं होता था कि वे असली थे कि नकली। पेड़ों की ऊँचाई, चौड़ाई और घनता सब एकरूप थी। मजाल था कि एक पेड़ अगले पेड़ से थोड़ा सा ऊँचा हो या घास का एक तिनका भी सिर उठा ले। मखमली सड़कों पर लगता था कि कार में नहीं, उड़नखटोले में बैठे हों। ऋचा के कदम बहकने लगे और अचानक वह एक बहुत पुराना गीत गुनगुना उठी, ‘मौसम है आशिकाना।’


दूर से आती हुई बस देखी तो बिना गंतव्य स्थान देखे ऋचा भाग के उसमें जा बैठी। परिषद भवन के दो अड्डे पहले ही बस को रद्द कर दिया गया तो ऋचा को बहुत ग़ुस्सा आया। बस या ट्रेन में पाँव भर रख देने से 20 पाउंड ठुक जाते थे। परिवहन विभाग और परिषद के सभी भवनों के पास लोगों की पहचान के चिप्स थे। कोई ब्लैकलिस्टेड व्यक्ति कहीं कदम भी रख दे तो सीधे पुलिस को पता लग जाता था।


अपने को संयत करती हुई ऋचा परिषद भवन में घुसी तो उसका मूड यकायक बदल गया। शायद इस मनहूस इमारत में ही कुछ था जो लोगों को दबोच लेता था। जैसे ही वह निर्धारित किओस्क पर पहुंची, उसने देखा कि एक जोड़ी निर्दई आँखें उसे घूर रही थीं। ऋचा को लगा कि इस गोरे से कोई आशा रखना बेकार था। फिर भी वह मुस्कराई और सकरात्मक बने रहने का प्रयत्न करती रही।


‘महाशय, आप तो जानते ही हैं कि मेरे पति ने जी तोड़ मेहनत की है, रात और दिन एक कर दिया। उनका आई क्यू भी अब बढ़कर पाँच हो गया है।’ भोली सी सूरत बनाकर वह अपनी पलकें झपकाती हुई अच्छी अंग्रेज़ी में बोली।


‘इससे तो यही सिद्ध होता है कि उसका दिमाग़ इससे अधिक दबाव नहीं झेल सकता।’ पार्षद ने अपनी नज़रें फ़ाइल पर गड़ा लीं।


‘पर महाशय, उनके व्यक्तित्व में कोई कमी नहीं है, वह बहुत हैंडसम हैं। फिर मेरा आई क्यू भी तो सात है।’ ऋचा को लगा कि न चाहते हुए भी वह गिड़गिड़ा उठी थी।


‘आप मेरा और अपना दोनों का समय बर्बाद कर रही हैं, आप मुझे अधिक परेशान करेंगी तो मुझे आपके दस्तावेज़ पर ‘अविवेकी’ की मोहर लगानी पड़ेगी, फिर आपको यहाँ आने की अनुमति नहीं दी जाएगी।’ पार्षद ने उसे निर्दयता से झिड़का।


‘महाशय क्या कोई सूरत नहीं है?’ उसने एक आख़िरी बार पूछा।


‘नहीं, यदि कानून में कोई ढील दी गई तो हम आपको सूचित कर देंगे।’


‘ऐसे जीवन से तो मर जाना ही बेहतर है!’ उसकी आँखें आँसुओं से भर आईं।


‘आत्महत्या-परामर्श परिषद अगली इमारत में है, वहाँ से आपको रजिस्ट्रेशन फ़ार्म मिल जाएगा।’ इस्पात कवचित पार्षद की शीशे जैसी आँखें ऋचा के पीछे खड़े एक गोरे जोड़े की ओर घूम गईं। ऋचा का समय समाप्त हो गया था।


‘ब्लडी रेसिस्ट,’ ऋचा ने गाली देकर अपनी भड़ास निकालनी चाही पर उसका सीना जैसे एक चट्टान हो गया था। उसने जल्दी से बाहर आकर ख़ुली हवा में साँस ली तो कुछ राहत मिली। कैसे बेग़ैरत हो गए हैं ये सरकारी अफ़सर? किसी की भावनाओं से क्या ऐसे खेला जाता है? एक बच्चा पैदा करने के लिए भीख माँगती फिर रही है। पैदा उसे करना है, देखभाल उसे करनी है, तो ये कौन होते हैं निर्णय लेने वाले? आत्महत्या के लिए भी उसे इनकी इज़ाज़त चाहिए। अभी इन सीढ़ियों से गिर कर कोई आत्महत्या कर ले तो क्या कर लेगी परिषद? वेद का जीना हराम कर देगी और उसके दूर-दूर के रिश्तेदारों की दस्तावेज़ों में ये बात दर्ज कर दी जाएगी कि ऋचा के दिमाग़ में खलल था और अच्छा ही हुआ कि उसे बच्चा पैदा करने की इज़ाज़त नहीं दी गई। वैसे भी इन चौड़ी और छोटी छोटी सीढ़ियों से गिरकर तो हड्डी भी नहीं टूटेगी।


नई सरकार ने एसिसट्ड सुइसाइड्स की उम्र घटाकर 75 साल कर दी थी, जो पहले अस्सी हुआ करती थी।


‘अरे ऋचा, तुम अभी तक इस परिषद के चक्कर लगा रही हो क्या?’ मीना और उसका पति मनोहर बाहर सीढ़ियों पर ही खड़े थे। डेढ़ साल पहले उन्हें एक बच्चा पैदा करने की इज़ाज़त दी गई थी। तो क्या वे एक और बच्चे की तैय्यारी में हैं। ऋचा ने मन ही मन में सोचा कि कुछ लोग कितने भाग्यवान होते हैं।


‘कुछ नहीं मीना, इस बार भी वेद का आई क्यू पाँच ही रहा और उन्हें फिर फ़ेल कर दिया गया।’


‘डेढ़ साल पहले तो परिषद ने मनोहर को पचास प्रतिशत अंकों पर ही पास कर दिया था!’


‘यू आर लक्की, अब औसत बढ़ा दी गई है।’ ऋचा ने कहा।


‘उन्होंने शायद वेद की चार्मिंग पर्सैनिलिटि के नम्बर नहीं जोड़े होंगे।’


‘जोड़े थे पर काउंसिल के हिसाब से मैं मामूली शक्ल सूरत की हूँ तो हिसाब बराबर हो गया न?’ ऋचा ने कहा।


‘मनोहर की बहन रीना को तो तुम जानती ही हो, उसकी शक्ल सूरत भी मामूली है पर उसे तो फट से पास कर दिया गया था!’ ऋचा ने सोचा कि वेद के सामने मीना को तो शायद वह बदसूरत ही लगती होगी।


‘गोरे की बीवी है न भई और उस पर वह परिषद में ऐक्चुयरी के पद पर काम कर रहा है!’ मनोहर बड़े गर्व के साथ बोला।


’मैंने सुना है कि रीना ने लगी लगाई नौकरी छोड़ दी!’ ऋचा ने बात बढ़ाते हुए पूछा।


‘बेचारी क्या करती? विक्रम को इतना होमवर्क मिलता है कि रीना को पूरी शाम उसके साथ बैठना पड़ता है।’ मनोहर ने बताया।


’विक्रम ज़रा मैथ्स में पिछड़ गया था तो स्कूल से मैमो आ गया कि यदि उसका औसत 60% से कम हुआ तो उसे परिवार परिषद अपनी देखरेख में ले लेगी।’


’बच्चे की परमिशन मिल भी जाए तो ज़िन्दगी कौन सी ख़ुश्गवार हो जाती है, ऋचा। मीना ने एक लम्बी साँस भरी।


’हेनरी की तनख़्वाह पर घर चलाना मुश्किल हो रहा है पर कोई करे तो क्या करे? ‘हाई आई क्यू’ होते हुए भी वह घर पर बैठी है।’ मनोहर ने कहा।


’कैसी बेदर्द हो गई है हमारी सरकार, ऋचा! तुम बताओ कैसी हो? वेद कहाँ हैं?’


‘सुबह उन्हें दफ़्तर में कोई ज़रूरी काम था। कह रहे थे दफ़्तर से आधी छुट्टी लेकर मुझे यहीं मिलेंगे, तुम सुनाओ, तुम यहाँ कैसे?’


मीना की रुलाई छूट गई और ऋचा को लगा कि उसने ऐसा क्या कह दिया। मीना सिसक रही थी और मनोहर उसे आलिंगन में लेकर चुप कराने लगा।


‘आपको शायद नहीं मालूम, अर्जुन नार्मल नहीं हुआ था। पैदा होते ही परिवार परिषद ने उस पर रिसर्च करनी शुरु कर दी कि इतनी सावधानी के बावजूद ऐसा कैसे हुआ।’ अनजाने में ऋचा ने उनके ज़ख़्म हरे कर दिया थे पर वह क्या जानती थी।


‘हे भगवान!’ ऋचा की आँखों में भी पानी भर आया। इन दोनों के दुख के सामने उसे अपना दुख कहीं बौना लगा।


‘हमने सोचा था कि हम टैस्ट तो पास कर ही चुके हैं, हमें दूसरे बच्चे की इज़ाज़त के लिए अधिक इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा लेकिन अब एक ऐबनौर्मल बच्चे के माँ-बाप होने के नाते हमें ढेर सारे टैस्ट और कराने होंगे।’ मनोहर ने बताया।


‘जैसा भी था हमारा अर्जुन, हम पाल लेते। हमें तो वह बिल्कुल एबनौर्मल नहीं दिखता था। अब तो परिषद हमें बस टाल रही है।’ मीना फिर सिसक उठी।


‘चलो छोड़ो, हमने वादा किया था कि जो हो गया हम उसकी बाबत नहीं सोचेंगे।’


‘सौरी डार्लिंग।’ एक दूसरे को सांतवना देते हुए मीना और मनोहर दोनो रो पड़े।


‘ये लो वेद भी आ पहुंचे, चलो कहीं बैठकर चाय पीते हैं,’ ऋचा ने बात बदलते हुए कहा।


‘अरे वाह, लगता है कि सदियों के बाद मिले हों। कहाँ रहे तुम लोग?’ मीना और मनोहर को देखकर वेद बड़ा ख़ुश हुआ। ऋचा ने थोड़े शब्दों में वेद को उनकी आपबीती सुनाई।


‘ये सरकार क्या अपनी मर्ज़ी से कुछ भी कर सकती है? आज हम अपनी मर्ज़ी से बच्चे नहीं कर सकते, कल ये कहेंगे कि हम क्या खाएं, क्या पहनें, कब उठें, कब बैठें, ये तानाशाही कब तक चलेगी?’ वेद ग़ुस्से और बेबसी से बोला।


‘वेद, ज़रा धीरे बोल, कोई सुन लेगा तो तुझे यहीं पर धर लिया जाएगा।’ मनोहर ने इधर-उधर देखते हुए कहा।


’हाँ ऋचा, सुना है सड़कों पर हुए माइक्रोफ़ोन और कैमरे लगे हैं, जो सब देखते सुनते हैं।’ मीना बोली।


‘हमने चाहा था कि मर जाएं तो वो भी न हुआ।’ ऋचा हताश होती हुई बोली।


’सचमुच ये गाना कितना फ़िट बैठता है आज के समय पर, चल सुना दे ऋचा, तेरा गाना सुनकर दिल को कुछ तो सुकून मिलेगा।’


‘इस शोर में? वेद, आज जब मैंने उस पार्षद से कहा कि इस जीवन से तो अच्छा है कि आत्महत्या कर ली जाए तो जानते हो उसने मुझे क्या जवाब दिया?’


‘ऋचा, तू पागल तो नहीं हो गई, तूने पार्षद से कुछ उल्टा सीधा तो नहीं कह दिया?’ ऋचा के कन्धों को झकझोरते हुए मीना ने पूछा।


‘हाँ, मैं पागल हो गई हूँ या हो जाऊँगी। उस सड़े ब्लडी बास्टर्ड ने पता है मुझसे क्या कहा। आत्महत्या-परामर्श परिषद अगली इमारत में है, वहाँ से आपको रजिस्ट्रेशन फ़ार्म मिल जाएगा।’ ऋचा की आँखों के घमंडी आँसू अब भी बहने को तैय्यार नहीं थे। ग़ुस्से से उसका बदन गैस भरे ग़ुब्बारे की तरह हिलने लगा।


‘गुड ग़ौड, अब तक तो उसने आपकी फ़ाइल पर ‘सुसाइडल’ का नोट लगाकर ऊपर पहुंचा दिया होगा।’ मनोहर ने घबराकर कहा।


’अब वे तुम्हें बच्चे की इज़ाज़त हरगिज़ नहीं करने देंगे।’


‘वैसे भी मुझे इनसे कोई उम्मीद नहीं है, मीना। तुम नहीं जानतीं कि वेद की टयूशन के लिए हमने कैसे पैसा इकट्ठा किया, रात-रात भर बैठ कर इसने उत्तर रटे, फिर भी वह फ़ेल कर दिया गया। अब तो टैस्ट के नाम पर हम दोनों ही भड़क उठते हैं।’ ऋचा ने निराश होते हुए कहा तो चिंतित वेद उसे आलिंगन में लेकर सांत्वना देने का प्रयत्न करने लगा।


‘मैंने तो सोचा था कि वेद इतना हैंडसम है कि उसे तो 100% मार्क्स तो यूँ ही मिल जाएंगे।’ मीना को वेद कुछ ज़्यादा ही हैंड्सम लगता था। ज़रा सी देर में वह दो बार इस बात का ज़िक्र कर चुकी थी। शायद वह सोचती हो कि ऋचा के मामूली नैन नक्श वेद की अर्ज़ी पर पर शनि की तरह भारी पड़ रहे थे।


ऋचा को याद आया जब वेद और वह पहली बार चहकते हुए परिवार परिषद भवन में घुसे थे। उन्हें विश्वास था कि अधिकारी उन्हें देखते ही फट से बच्चा पैदा करने की इज़ाज़त दे देंगे। वेद का मनमोहक और कसरती बदन देख कर लोग उसे ठिठक के खड़े निहारते रह जाते थे। वह स्वयं भी ख़ूबसूरत न सही, लेकिन आकर्षक थी और पढ़ाई-लिखाई में हमेशा अव्वल आती थी। उसे अपने ऊपर गर्व हुआ करता था।


परिषद ने उनसे ढेर सारे दस्तावेज़ माँगे – वंशक्रम, शिक्षा, व्यक्तित्व (जिसमें आई क्यू भी शामिल था), स्वास्थ्य, पेशा, घर, आमदनी, आपसी पारिवारिक और सामाजिक सम्बन्ध। इन दस्तावेज़ों को भरते हुए उन्हें कई बार लगा कि छोड़ो, इतनी मुसीबत कौन ले। तीन हफ़्ते लगे पर इन दोनों ने हिम्मत नहीं हारी। पहले टैस्ट में वेद का ‘आई क्यू’ तीन था। ऋचा ने सोचा कि चलो कोई बात नहीं, व्यवसाई वेद को आई क्यू के लिए तैय्यार किया जा सकता था पर वह तो टयूशन के नाम से ही चिढ़ गया था। ऋचा और वेद की माँ कितनी मुशकिल से वेद को रास्ते पर लाई थीं। तीसरे टैस्ट में उसका ‘आई क्यू’ पाँच था। सिर्फ़ एक नम्बर से वह फ़ेल कर दिया गया था।


‘शायद ये लोग चाहते ही नहीं कि हम लोग बच्चे पैदा करें। रईसज़ादों को धड़ाधड़ बच्चे पैदा करने की छूट है। इन्हें तो बस ब्लू ब्लड ही चाहिए, बाकी जाओ जहन्नुम में।’ ऋचा को चुप देखकर मीना ने कहा।


मीना और मनोहर का घर एक पौश इलाके में था, जहाँ के घर अल्ट्रा मौडर्न थे। घर अपने निवासियों, परिवार के सदस्यों और मित्रों को पहचानते थे। घर के बाहर या अन्दर कदम रखते ही बिजली, गैस, पानी आदि स्वयँ ही स्विच औन और औफ़ हो जाते थे। कुकर के पास जाओ तो चूल्हा जलने लगता था और पतीला हटाते ही औफ़ हो जाता था। शाम होते ही पर्दे बन्द हो जाते और सुबह खुल जाते। ऋचा के घर में तो वही बीसवीं सदी के यन्त्र थे। जो ताली बजाने पर ही स्विच औन और औफ़ होते थे; जिनका आजकल के लोग मज़ाक उड़ाते। सन 2000 के आस-पास जन्में लोग अविकसित देशों में जाकर बसना पसन्द करते थे। कम से कम वहाँ उनकी इज़्ज़त तो थी। मीना के भैय्या और भाभी भी पोलैंड जा बसे थे और मज़े में थे। उनके चार बच्चे थे।


‘एशियंस की जनसंख्या कम करने का ये अच्छा उपाय है। अब तो ये खुल्लमखुल्ला कह रहे हैं कि अपने देश वापिस चले जाओ।’ मनोहर बोला।


‘अगर कोई वापिस जाना चाहे तो वे तो एक लाख पाउंड तक देने को भी तैयार हैं।’ मीना ने कहा।


ऋचा जब पहली बार फ़ार्म लेने आई थी तो ग़लत इमारत में चली गई थी। जच्चा-बच्चा भवन में पचासियों जोड़े चहक रहे थे, जिनकी सेवा को आतुर एक गोरे के अधीन बहुत से अश्वेत कर्मचारी इधर-उधर दौड़ रहे थे। बड़े बड़े सोफों में धंसी नई माताओं के चेहरे ख़ुशी से चमक रहे थे। ऋचा को लगा कि जैसे वह सपना देख रही हो। जब वेद और वह माँ-बाप बनेंगे तो उनकी भी इतनी ख़ातिर होगी। यकायक उसे लगा कि लोग उसे घूर रहे थे। ‘मैडम, आप शायद ग़लत जगह आ गईं हैं।’ एक सेवक ने आकर उसे परिषद भवन का रास्ता बताया था।


‘सुना है ऋचा, जब बच्चों की संख्या कम हो जाती है तो ये बाकी के आवेदकों को थोड़ी ढील दे देते हैं, तू हिम्मत नहीं हार।’ मीना ने सोच में डूबी ऋचा का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहा।


‘जब कभी ये छूट मिलेगी, हमारी उम्र ज़्यादा हो गई होगी!’ ‘ऋचाजी, एक बात कहूँ, आप बुरा तो नहीं मानेंगी?’ मनोहर अचकचाता सा बोला। ऋचा ने ‘न’ में सिर हिलाया।


‘बच्चा चाहिए तो तुझे तो एक दम टिपटौप होना पड़ेगा।’ मनोहर की जगह मीना बोली। ऋचा हैरान थी कि आज जब वह इतना सज-धज के आई थी तो भी मनोहर और मीना को वह स्मार्ट क्यों नहीं लग रही। इस प्रघात से ऋचा सीढ़ी पर ही ढेर हो गई।


‘अच्छे दिन नहीं रहे तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे।’ मीना ने उसके पास ही बैठते हुए कहा।


’ऋचाजी, अगर आप अपनी नाक पर उगा ये मस्सा कटवा दें तो शायद आपकी पर्सनैलिटी के कुछ प्वाइंट्स बढ़ जाएं।.. ये बस एक आइडिया है।’ झिझकते हुए मनोहर ने कह तो दिया पर उसकी उलझन और बढ़ गई।


‘ऋचा, ये ठीक कह रहे हैं। हमें जिन्हें इसकी आदत है, उन्हें ये बुरा नहीं लगता पर जो तुझे पहली बार या कभी-कभी देखते हैं न, ये मस्सा उनके हलक से नहीं उतरता होगा... ये हमें लगता है, हाँ।’ मीना ने मनोहर की ओर इशारा करते हुए कुछ यूँ कहा कि ये उन दोनों कि राय थी।


‘यह एक बड़ा ख़र्चा है मीना, कर भी लूँ तो क्या ज़रूरी है कि हमारे कुछ प्वाइंट्स बढ़ जाएंगे।’ वेद झेंप जाता इसलिए ऋचा ये न कह सकी कि प्वाइंट्स तो वेद के कम थे, उसके मस्सा कटवाने का क्या फ़ायदा? मीना और मनोहर की जान में जान आई कि ऋचा ने उनकी बात अन्यथा नहीं ली थी।


’ऋचाजी, हमने सुना है कि प्लास्टिक सर्जरी करवाने के लिए सरकार सहायता देती है।’ मीना ने बताया।


‘अच्छा, फिर तो मैं इस मस्से को हटवाने के बारे में सोच भी सकती हूँ।’ हालांकि मस्सा ऋचा के चेहरे का एक अहम फ़ीचर था और ऐसा बुरा भी नहीं लगता था।


‘ऋचाजी, आप चाहे जो भी करना पर सुसाइड सैंटर के बारे में कभी भूले से भी नहीं सोचना। मेरे एक दोस्त ने इमोशनल होकर फ़ार्म भर दिया था, आज तक भुगत रहा है। उसके शरीर पर वे तब तक परीक्षण करते रहे जब तक उसका दिमाग़ बिल्कुल ख़राब नहीं हो गया।’


‘हाँ ऋचा, उसका शरीर सूख के काँटा हो गया है। कभी हंसता है तो कभी रोता है और कभी बेसुरी आवाज़ में गा-गा कर पूरे साइकाएट्रिक वार्ड की नींद हराम करता है।’ मीना ने जोड़ा।


‘और आत्महत्या की इज़ाज़त उसे अभी भी नहीं मिली, कहते हैं कि क्यू बहुत लम्बी है।’ मनोहर बोला।


‘क्यू व्यू की बात नहीं है, उन्हें तो मुफ़्त में शरीर चाहिए अपनी रिसर्च के लिए।’ वेद ने कहा।


‘सुनो, मुझे लगता है कि आपके पीछे खड़ा वह आदमी हमारी बातें सुन रहा है।’ घबराई हुई मीना फुसफुसाई।


‘तुम तो मीना हर एक पर शक करने लगी हो।’ वेद ने उसे टालते हुए कहा हालांकि वह भी चौकन्ना हो गया था।


‘नहीं, मैं सच कह रही हूँ, पहले वह ऊपर की सीढ़ी पर था, अब आपके पीछे है, अपने चेहरे के आगे अख़बार फैलाए वह हमारी ही बातें सुन रहा है।’


‘चल वेद, हम लोग बाहर कैफ़े में जाकर चाय पीते हैं। छुट्टी पर हैं न आप दोनों?’ डरे हुए से कैफ़े में आ बैठे। न जाने कोई उनके पीछे ही न लगा दिया गया हो। कुछ भी सम्भव था। देश में किस्म-किस्म की बातें फ़ैली हुई थीं। चाय और केक और्डर कर के उन्होंने एक सरसरी नज़र से कैफ़े का मुआयना किया कि कहीं कोई कैमरा या माइक न छिपा हो और फिर एक कोने में बैठ गए।


‘मुझे एक तरकीब सूझी है।’ वेद फ़ुसफ़ुसाया तो ऋचा ने उसे ऐसे देखा कि वह अब कौन सी नई बात कहने जा रहा था। वेद जब कभी मुँह खोलता तो उससे काम की बात कम ही निकलती थी। ऋचा ने सोचा कि मनोहर और मीना कैसे एकस्वर होकर बोलते थे। एक दूसरे की बात का कभी खंडन नहीं करते।


‘काउंसिल बहुत चालाक है, उसे लोगों के सारे मंसूबों के बारे में पता है।’ मनोहर ने किंचित मुस्कुराते हुए कुछ यूँ कहा कि जैसे वेद को कोई निराली चाल सूझ ही नहीं सकती थी।


‘एक नए नियम के अनुसार ये ज़रूरी हो गया है कि मियाँ बीवी दोनों ही कंडोम पहन कर सम्भोग करें। ये नहीं कह सकते कि कंडोम फट गया था और ‘बाइ एक्सीडैंट’ कोई प्रैगनैंट हो गया।’ मीना ने वेद और ऋचा को देखते हुए यूँ कहा कि जैसे उसे पता था कि वेद के दिमाग़ में क्या तरकीब थी।


‘और यदि कोई बाइ एक्सीडैंट’ प्रैगनैंट हो भी जाए तो पन्द्रह हफ़्तों के अन्दर उसे अपना एबौर्शन करवाना पड़ेगा।’ मनोहर ने वेद के अगले सवाल का जवाब भी दे दिया था। वेटर चाय लेकर आ गया था, सब चुपचाप अपनी अपनी प्लेटों में केक रखने लगे और चाय बनाने लगे।


‘अरे, तुमने आज पेपर्स में देखा, हाउस औफ़ लौर्ड्स के तीन रिश्वतख़ोर पार्षद पर्मिट दिलवाने के चक्कर में पकड़े गए!’ ऋचा ने बात बदलते हुए कहा।


‘इन्हें तो कोर्ट में ले जाने का भी कोई फ़ायदा नहीं है, हम टैक्सपेयर्स के धन से ही वे मुकदमा लड़ेंगे और अपने विशेषाधिकार के बल पर छूट भी जाएंगे!’ मीना ने झुंझलाते हुए कहा।


‘मेरा दोस्त पीटर कह रहा था कि परिषद रेसिस्टस पार्षदों से भरी पड़ी है।’ मनोहर ने कहा।


‘क्यों न हो, ब्रिटिश नैशनल पार्टी के लोग ही तो चला रहे हैं सरकार और परिषद।’ वेद बोला।


‘फिर तो मिल गया हमें पर्मिट।’ ऋचा पूरी तरह हताश हो चुकी थी।


‘पीटर शायद ठीक ही कह रहा होगा। देखा नहीं हाउस उफ़ लौर्ड्स में कैसे-कैसे बदसूरत लोग भरे पड़े है, उनका आई क्यू क्या हमारे से ज़्यादा होगा? उन्हें तो धड़ाधड़ पर्मिट मिल जाते हैं।’ मीना ने कहा।


‘प्राइम मिनिस्टर नैश ने कहा तो है कि अब सबके लिए एक ही नियम लागू होगा...’ वेद बोला।


’ये बातें सिर्फ़ इलैक्शन जीतने के लिए ही हैं।’ मनोहर ने वेद की बाट काट दी।


‘अच्छी आई क्यू, पैसा और एक बड़ा सा घर होने के बावजूद लोगों को बच्चा करने का हक नहीं है और इन बदसूरत ब्लूब्लड वालों को कोई रोक-टोक नहीं है!’ मीना ने कहा।


‘इनके लिए तो 20% कोटा आरक्षित है!’ मनोहर ने कहा।


‘श श श... सुनो, हमारे पीछे रखे हुए इस बड़े से पौधे में क्या तुम्हें तार दिखाई दे रहे हैं? हो सकता है कि हमारी बातें रिकार्ड की जा रही हों।’ डरी हुई मीना इधर-उधर देखते हुए बोली।


‘मीना, तुम तो सचमुच बहुत ही डरपोक हो, ये क्रिसमस लाइट्स हैं। वैसे भी हम हिन्दी में बात कर रहे हैं, उन्हें क्या समझ आएगा?’


‘ओह तो तुम समझते हो कि समाज सुरक्षा परिषद में कोई हिन्दी नहीं बोलता?’ मीना ने हाथ मटकाते हुए पूछा। सब चुप हो गए।


‘वहाँ हमारे लोग भरे पड़े हैं। काम करवाने के लिए तो हम इंटैलिजैंट हैं, लेकिन बच्चे पैदा करने के लिए इन्हें हमारी आई क्यू कम लगती है!’ ऋचा ने कहा।


‘अच्छा चलो, यहाँ भी कब तक बैठा जा सकता है। लोगों को शक हो सकता है कि इतनी देर से चार लोग क्या बात कर रहे हैं।’ वेद ने कहा।


‘दूर न होता तो घर चल के आराम से बात कर सकते थे।’ मनोहर ने उठते हुए कहा। ‘चलो, थोड़ी देर बस स्टौप पर बैठकर बात करते हैं।’ वेद ने सुझाया।


‘वहाँ तो कैमरे भी लगे हैं।’ ऋचा ने उसकी बात काटते हुए कहा।


‘किसी पब में चलें? शोर-शराबे में हमारी बातें किसी को सुनाई नहीं देंगी!’ मनोहर ने कहा और सब सामने वाले ‘अगली डकलिंग’ में जा बैठे पर वहाँ तो कोई भी नहीं था। ‘लंच का समय हो गया है और मुझे तो भूख भी लग आई है, चलो फ़िश ऐण्ड चिप्स खाते हैं!’


‘बीयर तो ले नहीं पाएंगे, कैलोरीज़ ज़्यादा हो जाएंगी!’


‘और्डर करके देखते हैं,’ मनोहर का मन बीयर पीने का था। क्रैडिट कार्ड रिफ़्यूज़ नहीं किया गया लेकिन दुकानदार ने उन्हें एक स्लिप पकड़ा दी। उन्हें सावधान किया गया था कि वे बीयर, फ़िश और चिप्स ले सकते थे इस शर्त पर कि वे सब एक घंटा दौड़ लगाएं या आधा घंटा तैरें। लोगों की सेहत के मामले में परिषद बहुत कठोर थी। सिगरेट, शराब या मोटापे से ग्रस्त मरीज़ों को अपने इलाज का पूरा ख़र्चा उठाना पड़ता था। इसके अलावा ट्रेन, बस और हवाइ जहाज़ से यात्रा करने के लिए भाड़ा भी अधिक देना पड़ता था।


’हल्का सा खाना और्डर करके वे बाहर लगे बैंचों पर जा बैठे। उड़ती नज़र इधर-उधर डाल कर उन्हें लगा कि यहाँ बात की जा सकती थी।


जब तक उनके सैंडविचेस आए, आस-पास के दफ़तरों से बहुत लोग भी लंच के लिए पब में आ बैठे और चर्चा चल पड़ी एक मिस जेड स्मिथ की, जिसने एक विधवा का ढोंग रचकर काउंसिल के स्पर्म बैंक से एक बड़े वैज्ञानिक हैनरी विलियम्स के स्पर्म से गर्भ धारण कर लिया था। हर तरफ़ शोर मचा था कि काउंसिल के किसी अधिकारी की सहायता के बिना ऐसा होना सम्भव नहीं था। ख़ैर, जब तक ये बाद सामने आई, जेड पाँच महीने के गर्भ से थी और उसका गर्भ गिराना ख़तरे से खाली नहीं था। इस हालत में उसे कोर्ट में खींचना और भी दंगा फ़साद खड़ा कर सकता था।


एक दूसरा समूह जैक पैटर्सन की बात कर रहा था, जिसने बेहोशी की दवा शराब में पिलाकर करोला लाइल से बलात्कार किया। करोला ने ये बात छै महीनों तक छिपाए रखी। जब परिषद को इस बात की सूचना मिली तो उन्होंने जींस-बैंक के ज़रिए जैक को झट से हिरासत में ले लिया पर करोला उस पर मुकदमा चलाने को तैय्यार नहीं हुई। जैक लेकिन करोला ने कहा कि बच्चे को पालने के लिए उसे किसी की ज़रूरत नहीं थी। परिषद भी नहीं मानी। करोला का बच्चा परिषद ने छीन लिया और जैक को एक उदाहरण के तौर पर रिसर्च-सैंटर में कैद कर दिया गया ताकि अन्य लोग ये न सोचें कि ऐसी ढील से फ़ायदा उठाया जा सकता था।


‘लोग इतने भयभीत हैं कि बात करते हुए भी डरतें हैं।’


‘अब देखो ‘राइट टु हैव बेबीस चैरिटि’ ने विरोध किया तो उनके सदस्यों पर कितने ज़ुल्म ढाए। उनके नेता टोनी वुड का तो आज तक कुछ पता नहीं चला।’


’इस अत्याचार का अंत कैसे हो?’ ऋचा बोली।


‘अत्याचार! वे तो समझते हैं कि वे देश की भावी पीढ़ी को परफ़ैक्ट बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं और हम जैसे लोग उनके आड़े आ रहे हैं!’ मीना ने कहा।


‘उनके मैंनिफ़ैस्टो में साफ़ लिखा है कि 2050 तक कोई ग़रीब नहीं होगा और न ही कोई बीमार और बेकार।’


‘वाट अबाउट ख़ुशी? और फिर ज़रूरी तो नहीं कि तमाम हिदायतों के बाद बच्चे ख़ूबसूरत, स्वस्थ और ब्रेनी ही होंगे। क्या गारेंटी है?’ ऋचा ने कहा।


‘जो बच्चे परफ़ैक्ट नहीं होते, जैसे कि हमारा अर्जुन .....’ मीना फिर सिसकने लगी। तभी एक हूवर तश्तरी आई और उनके पैरों के आस पास सफ़ाई करती निकल गई। चुप होकर सबने अपने पाँव ऊपर उठा लिए! हो सकता है कि इस छोटे से हूवर में कैमरा और रिकोर्डिंग मशीन फ़िट हो!


‘आपने नोट किया, ऋचाजी, कि सड़्कों पर अब एक भी सफ़ाई कर्मचारी नहीं नज़र आता, सारा काम इन रोबौट्स के ज़रिये हो रहा है!’ मनोहर बोला।


‘हाँ, शहर के बाहर इन्होंने जो किबुट्ज़ बनाए हैं, वहाँ अक्षम, अपूर्ण और बदसूरत लोगों से रातों रात सफ़ाई करवाई जाती है ताकि इनका शहर दिन में परफ़ैक्ट दिखे!’ ऋचा ने बताया।


‘सुना है कि एक दब्बु कौम बनाई जा रही है। जो केवन मैनुअल लेबर के लिए ही पैदा की जाएगी। भारी और मज़बूत बदन वाली इस कौम का दिमाग़ कमज़ोर होगा। इस कौम के बीमारियों के जींस भी डौरमैंट यानि कि सुप्त कर दिए जाएंगे ताकि चौबीसों घंटे इन्हें रगड़ा जा सके।’


’हे भगवान, कहाँ हो तुम? ऋचा बोली।


तुमने अख़बारों में पढ़ा ही होगा कि लोगों की सहुलियत के लिए परिषद ने कैंसल राइज़ में एक “आत्महत्या सहायता योजना” का केन्द्र खोला है।’


’हाँ, हार्ल्स्डन आदि इलाकों में जहाँ आत्महत्या की डिमांड कहीं ज़्यादा है, सुरक्षा परिषद ने दो नए केन्द्र खोलने का प्रस्ताव रखा है।’


‘पूरे लन्दन में एक केन्द्र क्या भाड़ झोंकेगा जब कि सुरक्षा परिषद चाहती है कि सुईसाइडल लोगों को जल्दी से जल्दी सहायता दी जाए।’


’वहाँ कौन सी क्यू कम होगी और न जाने कितने कानून!’


‘सुना है कि जो लोग कोशिश करके हार जाते हैं या पकड़े जाते हैं, उन्हें क्यू में और भी पीछे धकेल दिया जाता है।’


‘ऐसा क्यों, ऐसे लोगों को तो सहायता की अधिक ज़रूरत है।’ वेद ने पूछा ‘वे अपने साधन ऐसे लोगों पर क्यों बर्बाद करेंगे जो अपने निश्चय पर टिके भी नहीं रह सकते?’


‘वैसे भी सुरक्षा परिषद डरपोक हिन्दुओं को घास नहीं डालती। हम लोग आत्महत्या को पाप जो मानते हैं?’ ऋचा ने बताया।


‘और पलक झपकते अपना निश्चय बदलते हैं।’


‘ये केन्द्र केवल उन लोगों के लिए हैं जिनकी अर्ज़ी मंज़ूर हो गई हो। नए आवेदनों के लिए सुरक्षा परिषद के भवन में ही जाना पड़ेगा।’


‘मैं तो कहता हूँ कि वापिस अपने देश चलें।’ वेद ने अपना वही पुराना राग छेड़ दिया। ’सब कुछ बेचकर भी हम इतना पैसा नहीं जुटा पाएंगे कि इंडिया जाकर सैटल हो सकें।’ मनोहर बोला।


’रिपैट्रिएशन के लिए भारत सरकार अब हर आदमी का एक मिलियन माँग रही है। चलो वो भी किसी तरह दे दो, पर फिर एक घर भी तो चाहिए और जानते हो दिल्ली, मुम्बई में घरों की कीमतें क्या हैं और वो भी हम जैसे ‘फ़ौरन रिटरंड के लिए?’ मीना ने बताया।


‘और यहाँ से जाकर हम किसी ऐसी वैसी जगह तो रह नहीं सकते। एक अच्छी कौलोनी में एक अच्छा अपार्टमैंट लेकर ठीक ठाक ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए हमारे पास काफ़ी पैसा होना चाहिए।’ मनोहर बोला।


’अगर हम चारों मिलकर अपना पैसा पूल करें तो ये सम्भव हो सकता है।’ वेद ने कहा।


‘दो बच्चे पैदा करके हम उन्हें आसानी से पाल पोस भी सकते है!’ ऋचा को आशा की एक छोटी सी किरण नज़र आई।


’ लेकिन पहले ठीक से सोच लो कि कितने दिन चलेगा ये भाईचारा। चारों एक दूसरे के कन्धों पर चौबीस घंटे चढ़े रहेंगे तो हमें जो आदत हो गई है एक ‘प्राइवेसी’ की, वो कैसे निभेगी?’ मीना ने कहा।


‘मैंने तो सुना है कि भारत सरकार भी इंग्लैंड के तरीके आज़माने की तैय्यारी में लगी है। लोगसभा में जम के बहस चल रही है कि झुग्गी झोंपड़ी में रहने वालों को बच्चे पैदा करने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए।’ मनोहर बोला।


’ठीक ही तो है। उन्हें लगता होगा कि बाकी के देशों की पूर्णता की इस दौड़ में कहीं हमारी पीढ़ियाँ गंवार ही न कहलाएं।’ वेद ने कहा।


‘ये हिटलरशाही कहाँ जाकर रुकेगी? धरती पर स्वर्ग उतारने चले हैं जबकि लाखों दिलों में करोड़ों नर्क पल रहे हैं।’ ऋचा ने कहा।


एकाएक बाहर खलबली मच गई। कहीं पास से ही नारों की आवाज़ सुनकर कई लोग बाहर निकल आए। फ़ैमिलि प्लैनिंग सैंटर के सामने एक जमघट लगा था। कोई बीस एक लोग झंडे और पोस्टर्स लिए नारे लगा रहे थे, ‘डाउन विद जौन नैश।’ जौन नैश समाज सुरक्षा परिषद का निदेशक था, जिसने बच्चे पैदा करने और गोद लेने के नियमों को इतना सख़्त कर दिया था कि लोग तिलमिला उठे थे।


‘चलिए अब उठते हैं, कहीं किसी को शक हो गया कि हम कोई साज़िश कर रहे हैं तो जो थोड़ा बहुत मौका है वह भी हाथ से निकल जाएगा।’ मनोहर बोला।


‘चलो इनके साथ मिलकर हम भी शोर मचाते हैं, कोई तो सुनेगा हमारी आवाज़।’ ऋचा ने कहा तो बाकी के सब अनिश्चित से उसे देखने लगे।


‘अर छोड़ो, ये गोरे तो छूट जाएंगे, हम बेकार में धर लिए जाएंगे।’ मनोहर बोला।


’ऋचा, तुम्हें पता है न कि विद्याधरन पर पुलिस ने कितने अत्याचार किए, उसने तो बस वेबसाइट के ज़रिये ही आवाज़ उठाई थी।’ मीना ने मनोहर का समर्थन करते हुए कहा। ‘मुझे तो लगता है कि बिना हमारे कड़े विरोध के कोई नहीं सुनेगा और इनकी तानाशाही बद से बद्तर होती चली जाएगी।’ ऋचा ने बुझे मन से कहा।


‘वैसे इन गोरों की दाद देनी चाहिए कि ये हमारे लिए ये जोखिम उठा रहे हैं। नहीं तो इन्हें क्या पड़ी है कि अपना समय बर्बाद करें। एक हम है कि कायर से छिपे बैठे हैं, डर के मारे फुसफुसाते भर हैं।’ वेद ने कहा तो ऋचा ने बड़े स्नेह से उसे देखा कि पहली बार उसके पति ने उसका समर्थन किया था।


’ये गोरे केवल शोर मचाते हैं और बहस करते हैं पर आख़िर में होता वही है जो ये सरकार चाहती है।’ मनोहर अपनी बात पर अड़ा रहा।


‘इन गोरों ने ही गांधी जी का सन्देश दुनिया भर में पहुंचाया था और फिर सारा देश उनके पीछे हो लिया था। ये शर्म की बात है कि हम अपनी आवाज़ को तब तक दबाए रखते हैं जब तक कि कोई बड़ी हस्ती आकर उसे नहीं ललकारे।’ ऋचा ने कहा तो इस बार मीना ने भी सिर हिलाकर उसका समर्थन किया।


‘ये भारत नहीं है और यहाँ हमारी संख्या केवन दो प्रतिशत है।’ मनोहर ने सबको सावधान करना चाहा।


‘वही तो, अगर हम इन थोड़े से गोरों का साथ दें तो इस तानाशाही के ख़िलाफ़ हम ये जंग जीत सकते हैं।’ ऋचा अपने को रोक नहीं पा रही थी।


‘एक बार फिर सोच लो; बच्चे के लिए हमारा आवेदन कूड़ेदान में फेंक दिया जाएगा’ मनोहर ने उन्हें रोकने की एक आख़िरी कोशिश की।


‘तुम्हें अब भी आशा है कि हमारे आवेदन उनकी फ़ाइलों में हैं? जिस तरह से परिषद के अधिकारी ने आज मुझे सुइसाइड सैंटर का रास्ता बताया, मैं तभी जान गई थी कि हमारे आवेदन पर कोई ऐक्शन नहीं लिया जाएगा।’


‘तो चलो, ज़िन्दगी में अब बचा ही क्या है?’ मीना ने ऋचा का हाथ पकड़ लिया और वे चल दीं। मनोहर और वेद भी उनके पीछे हो लिए।


जल्दी ही उनके हाथों में भी झंडे और पोस्टर्स पकड़ा दिए गए। भीड़ की आवाज़ में एक नया जोश भर गया।


कुछ ही मिनटों में ही पुलिस आ पहुंची। अपनी गाड़ियों में बैठे बैठे ही उन्होंने पिचकारियों से प्रतिवादियों पर अश्रु गैस की बौछार कर दी। आँखे मिचमिचाते हुए लोगों को खदेड़कर पुलिस वैन में बैठा दिया गया।


जलती हुई आँखों से जब कुछ साफ़ दिखने लगा तो इन चारों ने देखा कि उनके अलावा सिर्फ़ एक अफ़्रीकन औरत ही थी जिसे गिरफ़्तार किया गया था; वह मुस्करा रही थी।


ये चारों भी मुस्कुराने लगे।


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Divya_Mathur

|| दिव्या माथुर ||


E-mail : divyamathur1974@gmail.com

दिव्या माथुर, वातायन-यूके की संस्थापक, रौयल सोसाइटी ऑफ़ आर्ट्स की फ़ेलो, आशा फ़ाउंडेशन की संस्थापक-सदस्य, ब्रिटिश-लाइब्रेरी की 'फ़्रेंड', पद्मभूषण मोटुरी सत्यनारायण सम्मान, वनमाली कथा सम्मान और आर्ट्स-काउन्सिल औफ़ इंग्लैंड के आर्ट्स-अचीवर जैसे अनन्य पुरस्कारों से अलंकृत, कई विश्वविद्यालयों द्वारा सम्मानित हैं। नेहरु केंद्र-लन्दन में वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी, विश्व हिंदी सम्मेलन-2000 की सांस्कृतिक उपाध्यक्ष, यूके हिन्दी समिति की उपाध्यक्ष और कथा-यूके की अध्यक्ष रह चुकी हैं। आपका नाम ‘इक्कीसवीं सदी की प्रेणात्मक महिलाएं’, आर्ट्स कॉउंसिल ऑफ़ इंग्लैण्ड की 'वेटिंग-रूम’, ‘ऐशियंस हूज़ हू', 'सीक्रेट्स ऑफ़ वर्ड्स इंस्पिरेशनल वीमेन' जैसे ग्रंथों में सम्मलित है। बहु-पुरस्कृत लेखिका, अनुवादक और सम्पादक के रूप में आपके आठ कहानी-संग्रह, आठ कविता-संग्रह, एक उपन्यास, शाम भर बातें (दिल्ली विश्विद्यालय के बीए-औनर्स पाठ्यक्रम में शामिल) और छै सम्पादित संग्रह प्रकाशित हैं। साहित्य अकैडमी-शिमला, जयपुर लिटरेचर फ़ेस्टिवल, विश्वरंग-भोपाल, कोलंबिया-न्यू-यॉर्क, हिंदी विश्विद्यालय-वर्धा जैसे कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों द्वारा आमंत्रित की जा चुकी हैं। दूरदर्शन द्वारा आपकी कहानी पर एक टेली-फ़िल्म बनाई है। डा निखिल कौशिक द्वारा निर्मित ‘घर से घर तक का सफ़र: दिव्या माथुर’ को विभिन्न फिल्म-फेस्टिवल्स में शामिल किया जा चुका है।



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