व्यंजना

फूलों वाली फ्रॉक

- सुरेश बाबू मिश्रा


नौ बजने वाले हैं। राघव दफ्तर जाने की तैयारी कर रहा है। उसकी पत्नी जमुना ने उसकी कटोरी में दाल डालते हुए कहा, “मुनिया होली पर नई फ्रॉक के लिए बहुत जिद कर रही है।“


“होली तीन तारीख की है। पहली को वेतन मिल जाएगा तभी ला देंगे।“


“उसकी सभी सहेलियों के कपड़े आ गए हैं। इसलिए उसने कल से मेरी नाक में दम कर रखा है। कितने दिन से तो बहलाते आ रहे हैं उसे। बेचारी की फ्रॉक बिल्कुल फट भी तो गई है।“


“क्या करें जमुना, हर महीने तो कोई न कोई समस्या आ खड़ी होती है। पैसे ही नहीं बचते हैं।“ राघव ने गहरी श्वास लेते हुए कहा।


“ऐसा करो मेरे पास कुछ रुपये जुड़े हुए रखे हैं। उनसे मुनिया के लिए फ्राॅक ला दो। जब वेतन मिल जाए तो मुझे दे देना।“


“ठीक है।“ राघव बोला।


दफ्तर से लौटते समय राघव बाजार की ओर चल दिया। बाजार में होली की गहमा-गहमी थी। चारों तरफ भारी चहल-पहल थी। लोग होली के लिए कपड़े और सामान खरीद रहे थे।


रेडीमेड कपड़ों की दुकान पर खरीदने वालों की भीड़ लगी हुई थी। औरतें और आदमी अपने बच्चों के लिए नए-नए डिजाइन के कपड़े खरीद रहे थे।


राघव एक दुकान पर रुक कर दुकान में टंगी फ्राॅकों को देखने लगा। उसकी नजर एक फूलों वाली फ्राॅक पर जाकर अटक गई। लाल रंग की बड़े-बड़े फूलों वाली वह फ्राॅक राघव को बहुत अच्छी लगी।


राघव ने दुकानदार से कहा, “वह फूलों वाली फ्राॅक दिखाना जरा।“


“वह फ्राॅक एक हजार रुपये की है।“ दुकानदार एक नजर राघव पर डालते हुए बोला।


“दिखाओ तो सही“


दुकानदार ने अनमने भाव से फ्रॉक राघव के हाथ में थमा दी।


राघव ने फ्राॅक को उलट-पलट कर देखा। फ्राॅक हर दृष्टि से अच्छी थी। राघव ने अपनी जेब में हाथ डाला। उसने रुपयों को गिनकर देखा। उसकी जेब में सिर्फ आठ सौ रुपये थे फिर भी वह साहस करके दुकानदार से बोला, “आठ सौ रुपये में नहीं दोगे भाई?“


“हमारे यहाँ रेट एक है। मोल-तोल नहीं होता है।“


दुकानदार फ्राॅक राघव के हाथ में से लेता हुआ बोला।


राधव ने उसके बाद और दो-तीन फ्राॅकें देखीं। मगर उस फूलों वाली फ्रॉक के सामने उसे और कोई फ्राॅक जची नहीं। इसलिए मन ही मन पहली तारीख को वही फ्रॉक खरीदने का इरादा कर वह घर की ओर चल दिया।


घर जाकर राघव ने सारी बातें अपनी पत्नी जमुना और मुनिया को बताईं। वह बोला, “उस फूलों वाली फ्राॅक में अपनी मुनिया बिल्कुल गुड़िया जैसी लगेगी।“ नन्हीं मुनिया यह खबर अपनी सहेलियों को देने के लिए घर से बाहर निकल पड़ी।


दिन एक-एक करके बीतते जा रहे हैं। पहली तारीख नजदीक आती जा रही है। राघव दफ्तर आते-जाते समय दुकान पर टंगी उस फ्रॉक को एक नजर जरूर डाल लेता है।


आज पहली तारीख है। दफ्तर के सब लोग आज खुश हैं। आज वेतन मिलने वाला है, लोग अपनी-अपनी टेबल के काम को फुर्ती से निपटा रहे हैं जिससे जल्दी घर जा सकें। राघव भी उत्साह से बाबू लोगों को मेजों पर फाइलें आदि पहुँचा रहा है। दो बजने वाले हैं। सभी को जरी से कैशियर के लौटने का इन्तजार है।


तभी कैशियर बाबू आ गए। उनके आते ही सब लोग उनकी ओर लपक पड़े। “बिल में आबजैक्शन लग गया है। वेतन कल मिल पाएगा।“ कैशियर बाबू मुँह लटकाए हुए बोले। सबके चेहरे उतर गए। बुझे मन से सब लोग अपनी-अपनी टेबल पर जाकर बैठ गए।


दूसरे दिन साहब ने राघव को दोपहर में किसी काम से बाहर भेज दिया। जब तक वह लौटा, वेतन बंट चुका था और आफिस बन्द हो चुका था।


राधव ने जैसे-तैसे रात काटी और सुबह होते ही कैशियर बाबू के घर पहुँच गया। कैशियर बाबू उसे घर पर ही मिल गए। उन्होंने राघव को होली की चाय पिलाई और उसका वेतन उसे दे दिया। वेतन लेकर राघव बाजार की ओर चल पड़ा।


आज होली थी। सभी लोग होली मना रहे थे। बाजार लगभग बन्द-सा ही था। इक्का-दुक्का दुकानें ही खुली हुई थीं। यह संयोग ही था कि राघव को जिस दुकान से फ्रॉक खरीदनी थी, वह दुकान खुली हुई थी और वह लाल फूलों वाली फ्रॉक ज्यों की त्यों टंगी हुई थी।


राघव दुकानदार से बोला, “वह लाल फूलों वाली फ्रॉक उठाना भाई।“


“वह फ्राॅक एक हजार रुपये की है। एक भी पैसा कम नहीं होगा।“ राघव को पहचान कर दुकान अनमने भाव से बोला।


आज राघव की जेब में रुपया था। इसलिए उसके स्वर में दृढ़ता थी। वह बोला, “पहले फ्राॅक उठाओ तो सही।“


दुकानदार ने फ्राॅक उतार कर राघव को थमा दी।


राघव ने रुपये गिनकर दुकानदार को दे दिये और फ्राॅक लेकर घर की ओर चल पड़ा।


फगुआ हवा वातावरण को मस्त बनाए हुए थी। चारों ओर होली का उल्लास छलका पड़ रहा था। गलियों और सड़कों पर होली का हुड़दंग था। लोग टोलियों में नाचते-गाते इधर-उधर घूम रहे थे और एक-दूसरे के रंग-गुलाल लगा रहे थे।


राघव भी आज बहुत खुश था। अपनी मनचाही फ्राॅक लिए वह उत्साह से घर की ओर बढ़ा चला जा रहा था। वह मन ही मन सोच रहा था कि इतनी सुन्दर फ्राॅक पाकर मुनिया कितनी खुश होगी। कल्पना में वह फ्राॅक पहने मुनिया को नए-नए रूपों में देखने लगा।


तभी राघव को सामने से होली खेलने वाले लड़कों का एक झुंड आता दिखाई पड़ा। सबके हाथों में पिचकारियाँ, गुब्बारे और रंग से भरी बाल्टियाँ थीं। राघव ने उन लोगों से बचकर निकलना चाहा मगर लड़कों ने उसे चारों ओर से घेर लिया।


राघव के न-न करते लड़कों ने उसे रंग से सराबोर कर दिया।


छीना-झपटी में फ्राॅक छूटकर एक लड़के की बाल्टी में जा गिरी और बाद में लड़कों के पैर से कुचल कर टुकड़े-टुकड़े हो गई।


राघव चीखता-चिल्लाता रहा मगर उसकी आवाज-“होली है भाई-होली है, बुरा न मानो होली है“, के शोर में दबकर रह गई।


लड़के राघव के साथ रंग खेलकर आगे बढ़ गए थे।


राघव कुछ क्षण तक वहीं खड़ा फ्राॅक के टुकड़ों को देखता रहा था। उसे लग रहा थ, जैसे लड़कों ने फ्राॅक को नहीं उसके अरमानों को कुचल दिया है। भीड़ के हुड़दंग ने क्षण भर में ही उसकी कोमल कल्पनाओं को बुरी तरह रौंद डाला था।


उसने मन ही मन हिसाब लगाया कि सबकी उधारी चुकाने के बाद तनख्वाह में से सिर्फ दो-तीन हजार रुपये बचेंगे जिनसे पूरे महीने का खर्च चलाना है। इस छोटी-सी धनराशि में से उसे दोबारा एक हजार रुपये की फ्राॅक खरीदने की हिम्मत नहीं पड़ी और खाली हाथ ही बुझे मन से घर की ओर चल दिया। होली के सारे रंग अब उसके बदरंग हो चुके थे।


उधर इस सबसे बेखबर नन्ही मुनिया अपनी कल्पना के आधार पर अपनी सहेलियों को फ्राॅक की सुन्दरता के बारे में बता रही थी। नन्हीं सहेलियाँ आश्चर्य से आँखें फैला-फैला कर उसकी बातें सुन रही थीं और उसके भाग्य पर ईर्ष्या कर रही थीं।


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|| सुरेश बाबू मिश्रा ||


सुरेश बाबू मिश्रा

बरेली (उ.प्र.)

शिक्षा: एम.ए. (भूगोल, अंग्रेजी), बी.एड.

पद: सेवा निवृत्त प्रधानाचार्य, राजकीय इंटर कॉलेज, बरेली।


>> प्रकाशित कृतियाँ:

थरथराती लौ,लहू का रंग,बलिदान की कहानियाँ,आविष्कार की कहानियाँ,साकार होते सपने,संघर्ष का बिगुल,उजाले की किरन,जानलेवा धुआँ,ज़मीन से जुड़े लोग।


>> सम्पादन:

वाणी एवं सृजन (वार्षिक पत्रिका)


>> पूर्व में प्राप्त पुरस्कार/सम्मान आदि का विवरण:

“कथादेश“नई दिल्ली द्वारा आयोजित अखिल भारतीय हिन्दी लघुकथा प्रतियोगिता-2017 में द्वितीय पुरस्कार (लघुकथा, “समाधान” हेतु)।

“प्रेरणा अंशु“दिनेशपुर उत्तराखंड द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता में सांत्वना पुरस्कार (लघुकथा, “सोता रहा पुलिसिया” हेतु)।

शब्दांगन सामाजिक एवं साहित्यिक संस्था बरेली द्वारा पांचाल साहित्यशिरोमणि सम्मान।

रोटरी क्लब ऑफ़ बरेली साउथ द्वारा रुहेलखण्ड कहानी गौरव सम्मान।

मानव सेवा क्लब बरेली द्वारा-कहानी श्री सम्मान-2015

श्रीमदार्यावर्त विद्वत परिषद, प्रयाग द्वारा-सम्मानपत्रम्।

इनवर्टिस यूनिवर्सिटी द्वारा रुहेलखण्ड रत्न अवार्ड-2015

श्री सिद्धिविनायक ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूशन्स द्वारा पांचाल रत्न अवार्ड-2014

भारतीय पत्रकारिता संस्थान, बरेली उत्तर द्वारा साहित्य श्री सम्मान-2016

भारतीय सेवक समाज द्वारा नीरज वाला स्मृति सम्मान।

हिन्दी साहित्य परिषद द्वारा कथा श्री सम्मान-2018

>>> उपलब्धियाँ:

लेखन एवं प्रकाशन 1984 से निरंतर जारी;

देश के विभिन्न समाचारपत्रों एवं पत्रिकाओं में लगभग 150 कहानियाँ एवं लेख प्रकाशित;

आकाशवाणी रामपुर एवं बरेली से कहानी, वार्ता एवं नाटक प्रसारित;

दूरदर्शन बरेली से वार्ता, परिचर्चा एवं साक्षात्कार का प्रसारण।

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