व्यंजना

राजनीति

- गौरीशंकर वैश्य विनम्र


शेर था, सियार हो गया।

नशे का शिकार हो गया।


राजनीति स्वामिनी बनी

पैर छू के पार हो गया।


गधे को पिता पुकार कर

पीठ पर सवार हो गया।


नग्न नृत्य मंच पर चला

तीर आरपार हो गया।


दण्ड जब न्याय को मिला

हृदय तार - तार हो गया।


झूठ का दबाव बढ़ रहा

पहाड़ भी कछार हो गया।


दे न सका था गलत का साथ

मित्र तब गँवार हो गया।


घात से फँसा लिया हिरण

बड़ा तीसमार हो गया।


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GauriShankar

|| गौरीशंकर वैश्य विनम्र ||


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