व्यंजना

बसंत-आनन्द

शैली


मत्त हो रहा बसंत, साथ-साथ है अनंग,

आम्र मंजरी के शर, *पुष्प-धनु, भ्रमर रोद,

प्रेम-प्रीति, स्नेह-राग व्याप्त हो रहे दिगन्त

पुष्प-पुष्प पर भ्रमर गूँज रहे हो विभोर

बह रही मलय पवन, गीत गा रहे विहंग

नृत्य कर रहे मयूर, कोकिला करे विनोद

शिरीष और पलाश के वृक्ष सजे रंग-रंग

यह पतंग, वह पतंग, व्योम सजी बद्ध डोर

नमोशिवाय मंत्र संग, ढोल, झांँझ और मृदंग

मग्न हो रहे मलंग, भक्ति सिक्त साँझ-भोर

प्रज्वलित है होलिका, धूम्र युक्त दिव्य-गंध

विकीर्ण रंग और अबीर, धूम मची ओर-छोर

गोप, कृष्ण-राधिका, रास रचें संग-संग

फाग की फुहार में, आबाल-वृध्द सराबोर

पेय-मधुर, मधुर-अन्न, थाल भरे चित्रगंध

जोगिरा-कबीर के, मंद-दीर्घ मधुर बोल

हास-परिहास, व्यंग, मदिर भंग की उमंग

रंग सिक्त पंथ मध्य हो रही हँसी ठिठोल

रंग ले उड़ी पवन, विचर रही दिग्दिगंत

नृत्य अंग-अंग है, प्रमोद की तरंग है,

फाल्गुन अतीत है, प्राप्त प्रथम चैत्र है

वर्ष यह व्यतीत है, पक्ष मात्र शेष है

संग नवरात्रि, नव वर्ष का प्रवेश है

कामदेव का धनुष फूलों का होता है और पंचशर यानी बाण, नील कमल, मल्लिका, अशोक वृक्ष के फूल, शिरीष पुष्प और आम की मंजरी के होते हैं


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Shaili

|| शैली ||


परिचय


परिचय

नाम - शैली

लखनऊ, उत्तर प्रदेश

बहुत सी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन। हिन्दी, अंग्रेजी भाषा के साझा संस्करण में प्रकाशित रचनायें। अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक मित्र मंडल, वसुधैव कुटुम्बकम, कलम मेरी पहचान आदि मंचों में समीक्षक, और मंच संचालक।

अनुवादक - SwahiliSpace.

काव्य संपादन- bharatdarshan.co.nz


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