व्यंजना

महापात्र

- डॉ. प्रभाकर शुक्ल


शाम के सात बज रहे थे. बनारस स्टेशन पर इस समय ज़्यादा भीड़ नही थी, कारण नई दिल्ली जाने वाली शिवगंगा एक्सप्रेस का समय बदल गया था. केवल कुछ ही मुसाफिर बेंचो पर बैठे थे जो दूर से आये थे और उन्हें ट्रेन के समय परिवर्तन का ज्ञान नही था. उन्ही मे एक थी वह लड़की जो शांत भाव से ग्रेनाइट के चबूतरे पर बैठी पत्रिका पढ़ने मे तल्लीन थी. उसका एयर बैग उसके बगल मे ही था जो शायद ज़्यादा भारी नही था.अचानक उसे लगा जैसे कोई बैग को उठा रहा है. उसने पत्रिका को आँखों के सामने से हटाया तो देखा कोई लड़का बैग ले जा रहा था.


वह ज़ोर से चिल्लाई और उठकर दौड़ी तो वह लड़का भी भागने लगा. तभी आगे बेंच पर बैठे एक युवक ने भागते आ रहे लड़के के आगे अपना पैर फैला दिया, लड़का टकरा कर गिर गया और उसके हाथ से बैग भी छूट गया.तब तक लड़की वहां पहुँच चुकी थी.


लड़की ने झुककर पहले अपना बैग उठाया फिर चिल्लाई,"चोरी करके भाग रहा था." पर लड़का तब तक कई लोगों के बीच घिर चुका था. उसकी नाक से खून बह रहा था. किसी ने उसे 2 थप्पड़ रसीद कर दिया और बोला इसे पुलिस को सुपुर्द करना होगा. लड़की को उसकी हालत और उम्र देखकर दया आ रही थी. उसने पूछा,"क्यों ये काम करते हो?आज चोट लगी कल पुलिस की बेंत पड़ सकती है, गोली भी लग जाये तो क्या भरोसा? "


लड़का भीड़ मे घिरा चुपचाप सर झुकाये खड़ा था. लड़की ने फिर पूछा, "घर मे कौन है?"


अब लड़के ने सर उठाया और डरे भाव से बोला, "माँ बीमार है.बाप नही है." लड़की ने अपने रुमाल से उसके नाक का खून पोंछा और 100 रूपये का नोट देकर कहा,"हो सके तो ये सब छोड़ देना.कोई भी काम करना पर ग़लत नही."


लोग शोर मचाने लगे,"दया मत दिखाइये, साले को पुलिस लॉक अप मे जाने दें."


लड़की ने बड़े शांत स्वर मे कहा,"घटना मेरे साथ हुयी है, मुझे कोई केस नही करना है." यह कहकर उसने लड़के को जाने का इशारा किया. लड़का सरपट वहां से निकल गया. ट्रेन भी प्लेटफार्म पर लग रही थी. लोग ट्रेन की ओर चल पड़े. लड़की का कोच पीछे था वह भी अपना बैग उठाकर चल पड़ी. थोड़ी देर बाद वहां पुलिस का एक कांस्टेबल प्रगट हो गया पर वहां ना भुक्तभोगी थी ,ना मुल्ज़िम, ना गवाह.


नई दिल्ली स्टेशन पर काफी भीड़ थी पर लड़की को कोई परेशानी नही हुयी. उसकी घनिष्ट सीनियर एकता उसे लेने आयी थी जो वहां एक साल से आई ए एस प्रतियोगिता के लिए कोचिंग कर रही थी.पी जी होम पहुँच कर जल्दी से तैयार होकर उन्हें 11 बजे ग्रेटर कैलाश पहुंचना था जहाँ वह कोचिंग इंस्टिट्यूट था.एकता ने पहले वहां उसके एडमिशन की प्रक्रिया पूरी करायी फिर उसे कैंटीन मे छोड़कर अपने क्लास मे चली गयी. श्वेता नाम था उस लड़की का जिसे अभी 2 घंटे अकेले बैठकर काटना था. उसका क्लास 2 दिन बाद शुरू होना था.चाय स्नैक्स का आर्डर देकर वह कोने के एक टेबल पर बैठ गयी और कोचिंग से मिले पेपर्स देखने लगी. तभी उसके सामने एक नवयुवक आकर बोला, "आप वही हैँ ना जिसका बनारस स्टेशन पर चोर बैग लेकर भाग रहा था और आपने उसे छोड़ दिया था."

श्वेता ने नज़र उठाकर अजनवी इंसान को देखा फिर बोली, " हाँ, मैंने उसे माफ कर दिया था क्योंकि वह अबोध बालक था पेशेवर चोर नही."


"ऐसे ही इनकी आदत बिगड़ती है और ये पैशवर हो जाते है."वह बोला.


"ज़रूरी नही है. सभी मुज़रिम पेशेवर नही होते, मज़बूरी या दबाव भी कारण होते हैँ. हाँ कभी-कभी लोग सनक मे या शौकिया भी जुर्म करते हैँ पर उनकी गिनती कम होती है."श्वेता बड़े रूखे ढंग से बोली.


"छोड़िये, मै तो बस आपको यहाँ देखकर यूँ ही आ गया. मेरा नाम प्रवेश मिश्रा है, जौनपुर का रहने वाला हूँ. आपका?"


वह नवयुवक बोला जो अभी भी टेबल के पास खड़ा था.


श्वेता ने एक नज़र उसकी ओर डाली फिर बोली,"मैंने ना तो आपका नाम पूछा ना आप कहाँ के रहने वाले हैँ? खैर, जब आप ने पूछा है तो बता देती हूँ क्योंकि अब यहीं रहना है तो रोज़ ही मिलना होगा तो फिर अपरिचय क्यों रह जाये? मेरा नाम श्वेता पाण्डेय है और मै बनारस के बगल मे चंदौली की रहने वाली हूँ. यहाँ आने का प्रयोजन जो आपका है वही मेरा भी है. इज़ इट ओके? "


"आप लगता है नाराज़ हो गयी.अभी तक मुझे बैठने के लिए भी नही कहा".


"आइ एम सॉरी. आप बैठिये यहाँ, मुझे कोई एतराज़ नही. फिर आप तो मेरे पड़ोस के जनपद के निकल गए ."


युवक कुछ सामान्य हो गया और बैठते ही खाने- पीने के लिए पूछा तो श्वेता ने ज़वाब दिया कि जब आप आये तभी मै स्नैक्स और चाय ले चुकी थी आप अपने लिए मंगा लें.


"क्या आप मेरा साथ नही देंगी?"युवक का प्रश्न था.


"नही,एक बार ही काफी.है "श्वेता ने तुरंत जबाब दिया.


उसकी चाय आ गयी तो वह चुस्की लेते हुए मुस्कुराने लगा फिर श्वेता की ओर देखकर बोला, " आपको पता है कि जौनपुर की फेमस चीज क्या है? नही ना, तो जान लीजिये, इमरती. प्रतियोगी परीक्षा के लिए यह भी ज़रूरी है."


बहुत देर के बाद श्वेता के चेहरे पर भी हलकी सी मुस्कुराहट आयी और बोली,"जौनपुर की मूली भी बहुत मोटी होती है."


"आपको कैसे पता?" आश्चर्य से वह बोला.


बड़े निर्विकार भाव से वह बोली,"प्रतियोगी परीक्षा के लिए यह भी ज़रूरी है." अबकी बार दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े.तभी एकता आ गयी और अजनवी युवक की ओर बिना कोई ध्यान दिए उससे चलने का इशारा किया.श्वेता भी बगैर कुछ कहे उठकर चल दी. प्रवेश उनके बिना कुछ कहे चले जाने पर आश्चर्य से देखता रहा फिर मुस्कुराता हुआ चाय की अंतिम चुस्कियों मे खो गया.


एक ही कोचिंग मे होने के कारण परिचय मित्रता और फिर प्रगाढ़ता मे परिवर्तित होता चला गया.श्वेता वैसे तो कम बोलती और गंभीर रहती पर प्रवेश उसे हंसाने की कोई कोशिश बाकी नही रखता.एक बार प्रवेश ने बताया कि वह कान्यकुब्ज ब्राह्मण है और उसके पूर्वज कान्य कुब्ज प्रदेश जो आज का कन्नौज है के मूल निवासी थे. श्वेता ने कहा कि मै तो सिर्फ ब्राह्मण जानती हूँ इससे ज़्यादा कुछ नही. तब प्रवेश बोला कि ब्राह्मणों के कई वर्ग हैँ और हर प्रदेश मे अलग-अलग. जैसे कश्मीर मे कौल, पंडिता, पंजाब मे जेटली, भारद्वाज, गुजरात मे मेहता, त्रिवेदी तो बंगाल मे गाँगुली, भट्टाचार्य, बैनर्जी. श्वेता ने उसकी बात काटते हुए ने कहा कि इससे क्या फर्क पड़ता है और अब ये सब कौन देखता है?


प्रवेश बोला कि ये सब जानना चाहिए . कभी कान्यकुब्ज श्रेष्ठ ब्राह्मण माने जाते थे क्योंकि वो ना दान लेते थे ना पुरोहित का काम करते थे, केवक गुरुकुल चलाकर जीविकोपार्जन करते थे.पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपेयी कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे. श्वेता ऊबकर खड़ी हो गयी और बोली कि बस करो ये ज्ञान का प्रवचन,इससे हमारा क्या मतलब है?


प्रवेश मुस्कुरा कर बोला प्रतियोगी परीक्षा के लिए यह भी ज़रूरी है."


श्वेता इतनी ज़ोर से हंसी कि पास मे बैठे लोग चौंक कर उनकी ओर देखने लगे. एक साल बीतने को था. प्रतियोगी परीक्षा का समय नज़दीक आ रहा था. श्वेता और प्रवेश जी जान से तैयारी मे जुटे हुए थे. कोचिंग के अलावा छुट्टी के दिन वे कभी बिरला मंदिर तो कभी अक्षरधाम मंदिर निकल जाते और वहां पूरा दिन अध्ययन और आपस मे सवाल-जबाब मे निकल देते.उम्मीद यही थी कि पहले प्रयास मे ही सफलता हासिल हो जाये. पर यू पी एस सी का इम्तहान उनके सर के ऊपर से निकल गया. पहला अनुभव और प्रतियोगी परीक्षा के प्रश्नों की असीमता ने उन्हें निराश कर दिया. विचार मे आया कि आई ए एस के साथ पी सी एस मे भी हाथ आजमाया जाये. अभी काफी समय था. फिर से दोबारा नये ढंग से कार्य योजना बनाकर तैयारी शुरु हो गयी. दिन-रात पढ़ाई और कुछ सोचने का अवसर ही नही था. हाँ इस प्रयास ने उन्हें अत्यधिक करीब ला दिया. आत्मीयता का बोध अंदर गहरे तक समा गया. ऐसा लगता मानो वे एक दूसरे को सालों से जानते हैँ.शायद इसे ही स्नेह का अंकुरण कहते हैँ.नज़दीकियां, संबंधों मे प्रगाढ़ता और अपनत्व का भाव इंसान को इतना करीब ला देता है कि पता ही नही चल पाता.अब उन्हें एक दूसरे कि फ़िक्र भी होने लगी थी.आखिर पी सी एस परीक्षा के लिए उनका भगीरथ प्रयास रंग लाया और उनकी मेहनत सार्थक सिद्ध हो गयी.प्रवेश की मेरिट बहुत अच्छी आयी थी, श्वेता की कुछ नीचे थी पर दोनों का चयन होना तय था.


उम्मीद के अनुसार ही प्रवेश का चयन डिप्टी कलेक्टर के पद पर तो श्वेता का पुलिस उपाधीक्षक पद पर हो गया. आई ए एस की पुनः तैयारी का संकल्प लेकर दिल्ली से विदा लेने की प्रक्रिया शुरू हो गयी.पहले उन्हें घर पहुंचना था फिर सूचना मिलने के बाद तैयारी के साथ ट्रेनिंग के लिए जाना था.दोनों की ट्रेन एक ही थी पर चेहरे पर उदासी की बदली छायी हुयी थी.


ट्रेन मे बैठने के बाद प्रवेश ने बहुत गंभीर स्वर मे कहा,"श्वेता अब तो हमारा सरकारी सेवा मे चयन भी हो गया है तो क्या हम सदैव के लिए एक हो सकते हैँ?"


श्वेता कुछ क्षण सोचने का नाटक करने लगी फिर बोली, "शायद हाँ." प्रवेश के चेहरे पर खुशी की अभूतपूर्व चमक आ गयी.वह बोला,


"थैंक यू श्वेता. तुमने मेरे मन की अभिलाषा को साकार कर दिया.तुम्हारे सिवा मै कुछ और सोच भी नही सकता हूँ."


श्वेता भी मगन होकर बोली, "ठीक है, पहले ट्रेनिंग और ज्वाइनिंग तो हो जाये."मगर प्रवेश अधीर होकर बोला "क्या तुम अपने पिताजी से मेरे घर जाने और बाबूजी से बात करने को कहोगी?"


"देखती हूँ, दरअसल मै अपने पिताजी से बचपन से बहुत डरती हूँ पर अब बात करुँगी." रात हो चुकी थी और ट्रेन अपने गंतवय की ओर अग्रसर थी. दोनों अपने बर्थ पर सपनो की दूसरी दुनिया मे खो चुके थे.


जौनपुर स्टेशन पर प्रवेश को उतरना था पर दोनों ऐसे ग़मगीन थे मानो बरसों के साथी बिछुड़ रहे हों. ट्रेन के चले जाने तक प्रवेश प्लेटफार्म पर ही खड़ा रहा. श्वेता के नयन ख़ुशी और ग़म दोनों से लबरेज़ थे.


घर आकर श्वेता ने अपने मन की बात पहले माँ को बताई फिर माँ ने पिता से बात की.श्वेता के पिता मुरलीधर पाण्डेय के माथे पर संकोच की ऐसी रेखा खिंची हुयी थी जो उनके पावों को रोक रही थी. वह निर्णय नही कर पा रहे थे कि प्रवेश के गांव उसके बाबूजी से मिलने कैसे जाएँ? दरअसल वह महापात्र पंडित थे जिन्हे बाकी ब्राह्मण अच्छा नही मानते . महापात्र मृतक कार्य और श्राद्ध आदि संपन्न कराते हैँ और मृतात्मा के नाम पर दान भी स्वीकार करते हैँ.कुलीन ब्राह्मण ना उनसे रिश्ता रखते हैँ ना रिश्ता करते हैँ. इसलिए उन्होंने बेटी से अपने संकोच को जाहिर कर दिया. श्वेता ने प्रवेश को सारी बात बता दी. प्रवेश ने महापात्र वाली बात का ज़िक्र नही करने और सिर्फअपना गांव और ब्राह्मण कुल बताने को कहा. उसका विचार था कि अब लोग अंतर्जातीय और दूसरे धर्म मे भी विवाह कर रहे है. हम एक शिक्षित और जिम्मेदार नागरिक होकर क्यों इन रूढ़ीवादी सोच का समर्थन करें?


सैयदराजा के रहने वाले हैँ.तब तक सबके लिए मिठाई और पानी आ गया. मिश्रजी ने जलपान करने का अनुरोध किया. पर मुरलीधर ने कहा कि मै लड़की का बाप हूँ आपका अन्न जल कैसे ग्रहण कर सकता हूँ,मुझे क्षमा करे.फिर बताया कि वह सकलडीहा बाज़ार मे ही रहते हैँ. मामाजी का अगला सवाल था कोई और रिश्तेदार आस पास जिसे शायद मै जानता हूँ.? मुरलीधर ने अपने बड़े भाई शशिधर का नाम बताया जो सैयदराजा मे रहते है. मामाजी चौंक कर खड़े हो गए और बोले, "शशिधर को मै जानता हूँ वो तो महापातर है. मतलब तुम भी महापातर हो.हद हो गयी . इनकी हिम्मत कैसे हो गयी जीजाजी आपके दरवाजे पर पैर रखने की? हम लोग क्या इतना गिर गए हैँ कि महापात्रों मे रिश्ता करेंगे?" अब मिश्राजी उठ खड़े हुए. चेहरा तमतमा रहा था. बोले,"अभी निकल जाइये यहाँ से.अधम आदमी तेरी इतनी औकात कैसे हो गयी कि एक कान्यकुब्ज ब्राह्मण के ड्योढ़ी पर पहुँच गया


वह भी रिश्ता लेकर.यहाँ किसकी मरनी हुयी है ? अपना मिठाई का यह झोला उठा और चला जा यहाँ से. कहाँ कहाँ से चले आते है बेगैरत लोग".


मुरलीधर घबराकर खड़े हो गए.बाकी लोग भी खड़े हो गए थे मानो मिश्रजी का अगला जो हुक्म होगा उसे बजाने के लिए तैयार.


मुरलीधर पाण्डेय के लिए अब वहां एक क्षण भी रुकना अपमान की पराकाष्ठा होती. वह मिठाई वाला झोला उठाकर झटपट चल पड़े. उनका बदन कांप रहा था मानो शरीर का खून निचुड़ गया हो पर वह पूरी ताकत से लम्बे-लम्बे डग बढ़ाये जा रहे थे.कभी -कभी अपमान का घूँट पीना भी मज़बूरी हो जाती है.इसके अलावा और कोई रास्ता भी नही था.


मुरलीधर बुझे मन से घर पहुंचे तो काफी रात हो गयी थी . श्वेता सो चुकी थी, पत्नी ने खाना के लिए पूछा तो बोले बहुत खा लिया, पेट भर गया, केवल पानी दे दो.पानी लाकर पत्नी आतुर दृष्टि से उन्हें देखने लगी मानो पूछना चाहती हो कि क्या हुआ. पर उनका गंभीर चेहरा देखकर हिम्मत नही पड़ रही थी.मुरलीधर ने पानी पीकर स्वयं कहा कि जाओ सो जाओ सुबह बात करेंगे.चुपचाप खटिया पर लेट गए पर आँखों मे नींद कहाँ थी? आँखें छत की ओर टकटकी लगाए स्थिर थी.दिमाग़ मे प्रश्नों का झंझवात चल रहा था.वह अपने से सवाल कर रहे थे कि अगर कर्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था है तो उसमे नीच-ऊंच की दीवार क्यों है? जूता बेचने वाला छोटा नही है पर जूता सिलने वाला मोची हेय है.मल-मूत्र कि जाँच करने वाला डॉक्टर सम्मानित है पर नाली- सीवर साफ करने वाला अछूत है. कर्मकांडी पंडित कि इज़्ज़त है पर मृतक कर्म करने वाला ब्राह्मण महापात्र है.आज भी सामाजिक कुरीतियाँ हावी हैँ और वर्ग विशेष उपेक्षित है.कोई बोलने वाला नही है. धर्म के ठेकेदार शबरी और केवट की बात तो करते हैँ पर जब अपना वास्ता पड़ता है तो भीष्म पितामह को भी भूल जाते हैँ. आदिकाल से तो नही था यह भेद भाव फिर कब और किसने इसे जन्म दिया.


चाय के समय जब पत्नी ने जौनपुर की बात पूछी तो मुरलीधर की बोलते हुए आवाज़ भारी हो गयी और आँखों मे आंसू आ गए. सारी बात बताने के बाद बोले कि जीवन मे इतना अपमान कभी नही हुआ जितना वहां जाकर हुआ.श्वेता से पूछा कि क्या प्रवेश को मेरे जाने की बात नही बताई थी? जब उसने कहा कि सब कुछ बताया था तो कुछ पलों के लिया वहां सन्नाटा पसर गया. कुछ देर बाद मुरलीधर बोले कि हम लाख ऊँचा मुकाम हासिल कर लें पर कहलायेंगे निम्न ब्राह्मण ही.लोग महापात्र का छुआ पानी भी नही लेते तभी तो उन्होंने मेरी मिठाई को स्वीकार नही किया और चले जाने को कहा. श्वेता का चेहरा तमतमा गया और वह उठकर अपने कमरे मे चली गयी.तुरंत मोबाइल पर प्रवेश को कॉल किया और कहा कि इसीलिए तुम कन्यकुब्ज ब्रह्मण की महिमा बखान रहे थे ताकि बाकी लोगों को नीचा दिखाया जा सके. क्यों मेरे पिताजी को अपने घर रिश्ता लेकर जाने को कहा? बेइज़्ज़त करने के लिए हम ही बचे थे? पहले से अपने बाबूजी को कॉन्फिडेंस मे क्यों नही लिया?


प्रवेश चुपचाप सारी बात सुनता रहा एक बार भी बीच मे प्रतिकार नही किया. फिर बोला कि आखिर क्या किया उन्होंने?


जब श्वेता ने चिल्लाते हुए बताया कि उन्होंने मेरे पिताजी को घर से चले जाने को कहा और जो मिठाई वह ले गए थे उसे भी स्वीकार नही किया. प्रवेश एक मिनट तक मौन रहा फिर गंभीर आवाज़ मे बोला "मै वहां नही था,शहर गया था. मै बाबूजी से पूछूंगा". श्वेता बिफर गयी और बोली कोई ज़रूरत नही अब इसकी. समझ मे आ गया समाज का दोहरा चेहरा.हाँ हम महापात्र हैँ पर मेरे पिताजी ने अपने उसी कर्म और श्रम से मुझे पढ़ा-लिखाकर इस काबिल बनाया. तुम्हारे बाबूजी ने उन्हें हेय दृष्टि से देखा पर मेरे लिए मेरे पिता महान हैँ. इतना कहते- कहते वह टूट गयी और सिसकने लगी. उधर से प्रवेश कि आवाज़ आ रही थी कि श्वेता प्लीज मुझे थोड़ा वक़्त दो सब ठीक हो जायेगा. पर श्वेता ने यह कहकर फोन काट दिया कि सॉरी अब कोई बात नही हो सकती.


उसने तुरंत मोबाइल से सिम निकाल दिया और फूट-फूट कर रो पड़ी. पिताजी- माँ कमरे मे आ गए और बोले कि बेटा दुखी होने की कोई ज़रूरत नही है, जहाँ तेरा रिश्ता लिखा होगा वहां होकर रहेगा. भगवान के यहाँ देर हो सकती है पर अंधेर नही.


अगले ही दिन श्वेता ने बाज़ार जाकर दूसरा सिम ले लिया. वह इतनी समझदार और सुलझी हुयी थी कि माँ- बाप को उसे ढाढ़स देने कि ज़रुरत ही नही पड़ी. उसने इतना ही कहा कि अब वह उन बातों को भूल जाएगी और घर मे भी उसकी कोई चर्चा ना हो.


2 हफ्ते बाद पुलिस ट्रेनिंग पर जाना था. घर से निकलने पर तमाम इंतजाम करने थे.वह माँ के साथ खरीददारी और तैयारी मे जुट गयी.


श्वेता की पहली पोस्टिंग पुलिस उपअधीक्षक के रूप मे बहराइच मे हुयी.सीधे साधे घर की युवती को पहली बार अपराध और अपराधियों को जानने का मौका मिला. वह रात मे भी निडर होकर सिपाहियों को लेकर गस्त करती.उसका काम करने का तरीका अलग था.पेशेवर मुजरिमों से तो वह सख़्ती से पेश आती पर युवा लड़कों और पहली बार अपराध करने वालों को सलाखों के पीछे डालने के बाद उनकी कौंसिलिंग भी करती. इसका नतीजा भी मिला.2 लड़के ज़मानत पर छूटने के बाद उससे मिलने आए और फिर कभी इस दलदल मे ना गिरने की कसम खाई.


श्वेता पुलिस की वर्दी मे होते हुए भी सामाजिक रूप से भी सक्रिय रहती. रामलीला हो या मुहर्रम, एक दिन पहले जाकर वह मानिंद लोगों से मिलकर सौहाद्र और शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए बात करती.जुलुस मे पूरे समय आगे-आगे चलती तो रामलीला मे देर रात तक मौजूद रहती. उसकी वजह से दरोगा सिपाही भी मुस्तैद रहते. कप्तान साहब भी उसकी बहुत प्रसंशा करते. पर साल बीतने के पहले ही उसका ट्रांसफर हो गया. उसके जाने का लोगों को इतना दुःख था कि वहां पहली बार किसी पुलिस अधिकारी की सार्वजनिक रूप से शानदार विदाई हुयी .


दूसरी तैनाती का शहर जौनपुर था. श्वेता के मन मे इस नगर को लेकर बहुत दर्द था. पर ड्यूटी के चलते टीस ज़्यादा हावी नही हो सकी.वह पूर्ववत अपने ढंग से काम मे लिप्त रहती. एक दिन सुबह-सुबह वायरलेस पर खबर आयी कि 4 किलोमीटर दूर गाँव मे दो पक्षो मे भयंकर रूप से मारपीट हुयी है.वह फ़ौरन 2 थानों की फ़ोर्स के साथ मौकाये वारदात पर पहुँच गयी. पुलिस को देखते ही लोग भागने लगे जिनमे से 6 लोग गिरफ्त मे आ गए पर एक बुजुर्ग और एक नवयुवक ज़मीन पर लहूलुहान हालत मे बेहोश पड़े थे.श्वेता ने उन्हें तुरंत 2 सिपाहियों के साथ अपनी जीप से जिला अस्पताल भिजवाया और पूरे गाँव की घेराबंदी कर दी.जिन लोगों ने हमला किया था वो आपस मे पट्टीदार थे और ज़मीन का बहुत पुराना मामला कोर्ट मे विचाराधीन था जिसमे घायल पक्ष की जीत सुनिश्चित थी. दबिश मे जब कोई और नही मिला तो श्वेता ने सबके दरवाज़े पर पुलिस बैठा दिया क्योंकि गाँव मे तनाव का वातावरण बढ़ गया था और पीड़ित पक्ष की ओर से भी महिलाओं और बच्चों पर बदले की नीयत से हमला होने का सुराग मिल रहा था.


अस्पताल मे भर्ती बुजुर्ग की हालत बहुत ख़राब थी. अत्यधिक रक्तस्त्राव के कारण वह होश मे नही थे. हाथ और पसली की हड्डी भी टूट गयी थी.युवक को भी काफी चोटें आयी थी पर डॉक्टरों के अनुसार वह खतरे से बाहर था. बुजुर्ग व्यक्ति गाँव के दबंग पंडित थे जिनका बड़ा दबदबा था. ग्राम प्रधान भी उनका ही आदमी था. अस्पताल मे भीड़ लग गयी थी पर जब डॉक्टर ने 2 बोतल खून के इंतजाम की बात कही तो काफी लोग खिसक लिए. घायल व्यक्ति का खून A+ था और खून तुरंत चढ़ाना ज़रूरी था वरना उनकी जान भी जा सकती थी.5-6 लोगों ने अपना टेस्ट कराया तो एक A+ का आदमी मिल गया. खून चढ़ने के बाद कुछ सुधार हुआ पर होश नही आया. एक बोतल की और सख्त ज़रुरत थी. श्वेता वहां मौजूद थी, उसने डॉक्टर को बताया की उसका ब्लड ग्रुप A+ है और वह रक्तदान के लिए तैयार है.डॉक्टर ने जब उसका खून निकलवाया तो श्वेता के चेहरे पर संतुष्टि का भाव था पर लोगों मे एक पुलिस वाले कीओर से खून देने पर बड़ा कौतूहल था.सब उसकी हाथ जोड़ कर प्रशंसा कर रहे थे.


दूसरा बोतल चढ़ने से मरीज़ की हालत मे काफी सुधार हुआ और रक्तचाप भी नार्मल हो गया पर घायल व्यक्ति से किसी को मिलने नही दिया जा रहा था.ग्राम प्रधान और क्षेत्रीय एम. एल. ए. को भी बाहर रोक दिया गया.


अस्पताल मे 2 दरोगा और 10 कांस्टेबल की ड्यूटी लगी थी पर श्वेता भी रात भर वही रही .सुबह आँखें बोझिल हो रही थी और वह अपने क्वार्टर जाने को सोच रही थी कि एक सिपाही ने आकर बताया कि मरीज़ के बेटे आये हैँ और अपने को संभल का डिप्टी कलेक्टर बता रहे हैँ.किसी अधिकारी का आगमन वह भी पीड़ित के पुत्र के रूप मे सुनकर श्वेता ने उन्हें तुरंत बुलाने का आदेश दिया पर जिस व्यक्ति ने प्रवेश किया उसे देखकर श्वेता का चौंकना लाजिमी था क्योंकि वह प्रवेश पाण्डेय था जिसके सानिध्य और बाद मे विरक्ति ने श्वेता के जीवन का नज़रिया ही बदल दिया.प्रवेश भी उसे बावर्दी देखकर चौंक गया पर उसे तुरंत समझ मे आ गया कि वह यहाँ ड्यूटी पर है.


फिर अचानक बड़े तैश मे पूछा


"कैसे हुआ ये? कौन लोग थे? कितने लोग पकड़े गए?"


श्वेता ने बिना कुछ बोले एक दरोगा को इशारा किया और वह सारे वाकिए की जानकारी देने लगा.श्वेता बाहर निकली और अपने ड्राइवर को गाड़ी लाने का इशारा किया.जीप आते ही बिना पीछे देखे वह अपने क़्वार्टर के लिए निकल गयी.प्रवेश तब तक अस्पताल के गेट पर आ चुका था.


प्रवेश को सारी घटना का पता चल गया और यह भी कि श्वेता ने उसकी अनुपस्थिति मे बाबूजी को अपना खून दिया और रात भर अस्पताल मे रही.पुलिस ने मुखबिरों का ऐसा जाल फैलाया कि 2 दिन के अंदर ही सारे हमलावार पकड़े गए. प्रवेश श्वेता का शुक्रिया अदा करने उसके ऑफिस पहुंचा.श्वेता ने पूरी औपचारिकता से उसका स्वागत किया और कॉफी पिलायी. बाबूजी का भी हालचाल पूछा और मीटिंग मे जाने कि बात कहकर उठने लगी. प्रवेश उससे और भी कुछ कहना चाहता था पर उसे मौका ही नही मिला. तीसरे दिन वह कप्तान साहब से मिलने गयी और 7 दिन की छुट्टी के लिए आवेदन किया. चूंकि अपराधी पकड़े जा चुके थे और चार्ज शीट भी बन चुकी थी इसलिए कप्तान साहब उससे खुश थे, फ़ौरन छुट्टी ग्रांट कर दी. श्वेता को घर आये काफी दिन हो गए थे, माँ और पिताजी की बहुत याद आ रही थी. प्रवेश से भी वह बचना चाहती थी. एक घंटे के अंदर वह अपने क्वार्टर से निकल गयी.


10 दिन बाद प्रवेश अपने बाबूजी को अस्पताल से डिस्चार्ज कराकर घर ले आया.


उसने बाबूजी को सब कुछ बता दिया.पंडित रामानुज मिश्र को आत्म ग्लानि होने लगी.


उन्होंने श्वेता से मिलने कि इच्छा जताई पर श्वेता अभी घर से लौटी नही थी. उसने अपनी छुट्टी बढ़वा ली थी. प्रवेश को भी जाना था.15 दिन बाद फिर आने और श्वेता से मिलवाने की बात कह कर वह भी चला गया.


श्वेता ने ड्यूटी ज्वाइन की तो पता चला कि रामानुज मिश्र के यहाँ से कोई 2 बार आया था, वह उससे मिलना चाहते थे. श्वेता ने खबर भिजवा दिया कि वह आकर मिल सकते हैँ. अगले ही दिन मिश्रजी 4 लोगों के साथ बोलेरो गाड़ी से उसके ऑफिस पहुँच गए. मिलते ही हाथ जोड़कर धन्यवाद कहा. श्वेता ने बिना किसी सम्बोधन के कहा कि जो मेरा फर्ज़ है वही मै सबके लिए करती हूँ.मिश्रजी कुछ और कहना चाहते थे पर श्वेता ने कहा कि घटना की पुनरावृति ना हो इसलिए पट्टीदारों की जो ज़मीन कब्ज़ा किये हुए हैँ उसे आपसी सुलह से सुलझा लें. इस बात पर मिश्रजी सन्न रह गए. उन्हें उम्मीद नही थी कि यह बात उसे मालूम होगी.उनका मूड किरकिरा हो गया और वह वहां से निकल गए.


4 साल बीत गए. श्वेता का ट्रांसफर लखनऊ हो गया और प्रवेश का भी. अब अक्सर मीटिंग मे भेंट हो जाती थी.एक दिन प्रवेश ने पूछा कि अभी तक शादी क्यों नही किया. श्वेता ने कहा कि अब मुझे शादी मे कोई रूचि नही है. फिर पूछा कि तुम्हारे कितने बच्चे हो गए. प्रवेश खिलखिला कर हंस पड़ा. बोला, "शादी ही नही हुयी तो बच्चे कहाँ से आएंगे?लेकिन अभी भी किसी का इंतज़ार है."


श्वेता ने भी हंस कर पूछा, "किसका? कौन है जो अभी तक इंतज़ार करा रही है?"


"वही जो सामने होकर भी इंतज़ार करवा रही है."प्रवेश ने मुस्कुराते हुए कहा.


श्वेता ने भी ज़बाबी मुस्कुराहट के साथ कहा


"अच्छा है, तब तो रिटायरमेंट तक इंतज़ार करना होगा."


प्रवेश बोला "अंतिम यात्रा तक इंतज़ार कर सकता हूँ ." श्वेता उठ कर खड़ी हो गयी और प्रवेश के ओठों पर अपना हाथ रख कर बोली "अशुभ बात क्यों बोलते हो?."


श्वेता कि आँखें अनायास भींग गयीं. प्रवेश के ओंठ भी कुछ कहने के लिए आतुर थे तभी सामने के मंदिर से शंख बजने की ध्वनि आने लगी. दोनों के चेहरे पर बहुत दिनों के बाद ख़ुशी की चमक दिख रही थी.



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Prabhakar_Shukla

डॉ. प्रभाकर शुक्ल


डॉ. प्रभाकर शुक्ल

वाराणसी

जन्म: वाराणसी

शिक्षा: हिंदी में “विशारद”, एम बी बी एस, स्नातकोत्तर डिप्लोमा ज़रा रोग

विधाएँ: कविता, कहानी, लेख, नाटक साक्षात्कार, संस्मरण

प्रकाशन: सरिता, मुक्ता, नवनीत, कहानीकार, सोवियत भूमि, नूतन कहानियाँ, साहित्य

गुंजन, सृजन से, शमशेर, सदीनामा, क़िस्सा।

सम्पादन: पूर्व मुख्य संपादक “आपका स्वास्थ्य”

संप्रति: परामर्श चिकित्सक (फिजिशियन) वाराणसी