व्यंजना
Sapno

समीक्ष्य पुस्तक : बस्तियों का कारवां (उपन्यास)

लेखक : हरीचरन प्रकाश

प्रकाशक : सेतु प्रकाशन


सपनों की दुनिया का संविधान

- करन वाणी


बस्तियों का कारवां , एक कारवां ही तो है .. कारवां यादों का , कारवां एक वक्त का और उसकी कहानियों का


कहानियां जिनको भुलाया जा चुका है और शायद कोशिश की गई है कि भारत के इतिहास के पटल से इन कहानियों को मिटा दिया जाए।


इन्हीं कहानियों के कारवां को पाठकों के समक्ष लेकर आए हैं हरीचरन प्रकाश ।


सिंधियों की कहानियां और उनके विभाजन का दर्द जिसके साथ है ना सिर्फ़ घर खोने का दुख , पर यह दुख है ज़मीन को खोने का , संस्कृति को खोने का और भाषा को खोने का ।


इस बीच एक संघर्ष जो खुद को जीवित रखने का है और इसी अंतरद्वंद्व का हृदय विदारक चित्रण किया है हरीचरन प्रकाश जी ने इस उपन्यास में


हिंदी विभाजन साहित्य में जहां पंजाब , बंगाल की त्रासदी को जहां स्थान प्राप्त हुआ वहां सिंधी विभाजन की कहानी पर हिंदी कलम सदियों से मौन थी , इसी मौन को तोड़ा है हरीचरन प्रकाश जी ने अपने उपन्यास में


और साहस किया है इन कहानियों को याद दिलाने का , ना सिर्फ़ सिंधीयों को पर सारे भारतवर्ष को जो शायद इन कहानियों को भूल चुका है ।


उपन्यास में जहां दर्द है , वहां संस्कृति की झलक भी नजर आती है , और उसी के साथ लेखक अपने पाठकों को ऐतिहासिक पहलुओं से भी अवगत कराना चाहते है । बड़ी बात है कि इस बीच कहानियों का प्रवाह नहीं टूटता और उसके पात्र चले जा रहे हैं ..


पात्रों का चित्रण इस प्रकार किया गया है कि हर पाठक उसमें से अपनी कहानी ढूंढ सकता है , कम से कम एक सिंधी तो ढूंढ ही सकता है।


संस्कृति की वास्तविकता कुछ और होती है और उसकी अवधारणा कुछ और । जहां संस्कृति सदैव सिद्धांतों के स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान होती है वहीं दूसरी ओर उसकी अवधारणा कुछ धूमिल होती है । इसी भेद को बखूबी दिखाया है , सुगनचंद और लच्छू के माध्यम से।


हर पात्र अपनी एक विचारधारा लिए हुए है , पर हर एक पात्र ढूंढ रहा है एक नई पहचान


शायद ही ऐसा कोई सिंधी होगा जो इस उपन्यास को पढ़े और यह कहे कि मैं इस में अपने आप को ढूंढ न पाया हूं


भारत के सिंधी और उसके सपनों की दुनिया का अगर इस उपन्यास को संविधान कहूं तो अतिशयोक्ति न होगी ।


मैं आभारी हूं हरीचरन जी का जिन्होंने इस उपन्यास को लिखकर हिंदी भाषा में सिंधी विभाजन के इतिहास को अविस्मरणीय बना दिया ।


यह उपन्यास न सिर्फ़ एक ऐतिहासिक उपन्यास है , पर यह एक जीवित सत्य है जो आज भी हज़ारों जिंदगियों की कहानी है , और यह कहानी जब एक जगह एकत्रित होती हैं


तो बनता है कहानियों का कारवां .. बस्तियों का कारवां।



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Prabhakar_Shukla

|| करन वाणी ||


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