व्यंजना

साहित्य - प्रवासी साहित्य - एक विहंगम दृष्टि

- डॉ. स्नेह ठाकुर


साहित्य साहित्य होता है चाहे वह किसी देश या काल का हो. साथ ही साहित्य देश और काल से परे भी होता है. जहाँ देश, काल का साहित्य पर प्रभाव अवश्यम्भावी है वहीं साहित्य कालातीत भी होता है, सार्वभौमिक भी होता है.


जहाँ सभी साहित्य कालजयी नहीं होता है वहीं साहित्य पर एक बात और यह लागू होती है कि साहित्य की अनेकानेक अनगिनत विचारधाराएँ हैं और उसके पाठक भी अनगिनत हैं. प्रत्येक पाठक की रुचि साहित्य के हर क्षेत्र में नहीं होती. जहाँ साहित्य की भिन्न-भिन्न विचारधाराएँ हैं, वहीं पाठक की भी भिन्न-भिन्न रुचियाँ हैं. जो साहित्य एक पाठक को लुभाता है आवश्यक नहीं कि वही दूसरे पाठकों को भी उसी प्रकार आनंदित कर आलोड़ित करे. अत: प्रवासी साहित्य को भी उसी दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिये. जहाँ वह कुछ पाठकों को अच्छा लगेगा, स्तरीय लगेगा या उच्च स्तरीय लगेगा वहीं कुछ को नहीं भी. इसका मापदण्ड पाठक व आलोचक - दोनों के द्वारा ही स्थापित होगा. और यह भी सम्भव है कि दोनों के दृष्टिकोण में अन्तर हो. पाठक अपना मापदण्ड चुनें और आलोचक अपना. तथापि जहाँ तक साहित्यकार का प्रश्न है वह अपनी मन:स्थिति प्रकट करता है. साहित्यकार पर देश, काल की परिस्थितियों का प्रभाव अवश्य पड़ता है और वह इन सबको स्वयं में पचा, अन्तर में उनका विवेचन कर, अपनी मनोदृष्टि से उसे प्रस्तुत करता है.


साहित्य साहित्यकार की दिमागी ऐय्याशी नहीं है. साहित्य में साहित्यकार की सम्पूर्ण विवेकधर्मिता, अनुभव, सम्वेदनशीलता, उसका सम्पूर्ण जीवन-यथार्थ प्रतिबिम्बित होता है. साहित्य सुख-दु:ख, उत्थान-पतन, समस्या-समाधान की गाथा है. साहित्य साहित्यकार द्वारा अनुभूत हुये सामाजिक कार्यकलापों, विचारधाराओं के मंथन से उत्पन्न हुये 'क्यों' और यथाशक्ति उसका समाधान 'इसलिये' ढूँढने की प्रक्रिया है. 'क्यों' से आरम्भ होकर सम्भवत: 'इसलिए' पर समाप्त होने वाली वस्तु का नाम साहित्य है. प्रश्नों के जंगल काटकर उनके उत्तर, उनके समाधान की खेती करना, जीवन का यथार्थ, उसकी सार्थकता पहचानने के प्रयास की उपलब्धि ही साहित्यकार का लक्ष्य होना चाहिए. साहित्य जीवन से छनकर आता है, जीवन से प्राप्त होता है और जीवन साहित्य से गौरवान्वित होता है.


जीवन के यथार्थ का वर्णन, कल्पना के अश्व पर मुक्त गगन में विचरण, दोनों का मंगलमय सामंजस्य, धरा के किसी भी क्षेत्र को यथार्थवादी व साथ ही आल्हादकारी बना देता है. साहित्य विश्व के यथार्थ की व्याख्या करता है और जीवन को आनन्द के उच्चतम शिखर परमानंद तक पहुँचाने की क्षमता रखता है. किसी भी देश के महान साहित्यकारों के साहित्य ने ही उस देश को वह उच्चता प्रदान की है जिसके शीर्षस्थ पर वह आज बैठा है. विश्व के निर्माण में हरएक देश के महान साहित्यकारों का महत् योगदान है. उसके हास में, रुदन में, पीड़ा में, करुणा में, ज्ञान-विज्ञान में, उसकी हर अभिव्यक्ति में, विश्व-व्यापी ज्ञानमयी, सम्वेदनाओं को जगाने वाली, कल्याणकारी अनुभूति भरी हुई है, जिसके प्रति हमें आभार की भावना से अभिभूत होना है न कि "आभार" से "आ" उपसर्ग निकाल कर केवल उसे "भार" बनाना है. व्यास और वाल्मीकि जैसे ऋषियों ने सकल विश्व को ऐसा विचार-दान दिया जो न केवल भारत की अमूल्य थाती बना वरन् जिसके साहित्य ने विश्व को अनुगुंजित किया. साहित्य देश, काल की सीमा से परे है, यह प्रमाणित कर दिया.


जैसे वीरों के लिए कहावत है कि वे अपना मस्तक सदा हथेली पर लिए घूमते हैं, वास्तव में वैसे ही साहित्यकार भी अपनी उँगलियों के पोरों पर अपने मस्तक के सभी विचार धारण करते हैं और उन्हें अपनी कलम द्वारा समाज से परिचित कराते हैं. साहित्यकार तो बस यह देखता है कि उसका मस्तक यथार्थ-रूप से उसकी कृति में उतरा है या नहीं. वह एक स्वस्थ विचाराधीन परिधि में सृजन करता है. उसके पास सबसे बड़ा शस्त्र उसकी कलम है -


एक अदद छोटी-सी

महज़ चार-छ: इंच की

न रूप की न रंग की

पर है बड़े काम की

क्या ही कमाल की

बिन मोल की, अनमोल

यह कलम.


करती है पुरातन सुरक्षित

इतिहास के पन्नों पर

लिखती है भविष्य

मानव के मानस पर

महत्वहीन-सी दिखने वाली

नाचीज़, कुछ भी न लगने वाली, सब कुछ, सर्वोच्च

यह कलम.


इसकी सुई की नोंक-सी मुखाकृति

कर देती है बड़े-बड़ों का मुख बंद

कोरे कागज़ को रँगने वाली

श्वेत पर श्याम की लड़ियाँ पिरोने वाली

है बड़ी ही प्रभावशाली

चबबाती है चने भारी-भरकमों से

बिन वज़न की, वज़नवाली

यह कलम.


है इसकी शक्ति अपरम्पार

बना देती है राजा से रंक

और रंक से महान्

बन जाती है किसी के लिए पतवार

और छोड़ देती है किसी को बीच मँझधार

शक्तिहीन-सी लगने वाली, सशक्त

यह कलम.

कभी चढ़ाती है आसमान की ऊँचाइयों पर

विहंगमित गगन पक्षी-सी

पर कब गिरा दे धरा पर

डोर कटी पतंग-सी

छूने गहराइयाँ पाताल की

जानती है केवल यही

सामान्यता की प्रतिमूर्ति

पर हर दाँव-पेचों से भरी

यह कलम.


है यह ऐसा हथियार

नहीं इसका सानी कोई

कभी बन जाती है तलवार

करती है ऐसा वार

हो जाता है दुश्मन क्षत-विक्षत

पर दिखती नहीं एक भी रक्त-बूँद टपकती

कभी दागती है सीने पर गोली-सी

और कभी बन जाती है अणु बम

हिला देती है मानव मन

दहला देती है धरती गगन

तुच्छ-सी दिखने वाली, महान्

यह कलम.


गुलाब का उपवन है

तो काँटों का सघन वन है

साहित्य, कला की खान है

तो विज्ञान की जान है

अकिंचन का धन है

बुद्धिजीवियों की सम्पत्ति है

गंधहीन-सी महसूस होने वाली

सुगंधों से अभिभूत, सुवासित

पूँजीविहीन दैन्य-सी दिखने वाली

कुबेर की सकल पूँजी है

यह कलम.


कभी रुलाती है तो कभी हँसाती है

रोष के थपेड़ मार झंझावत लाती है

करुणा से कातर हो, ममता के अंक में छुपाती है

जीवन में षटरस का मज़ा चखाती है

स्वादहीन, बेस्वाद लगने वाली, स्वादों से परिपूर्ण

यह कलम.


है जितनी ही निर्मम

उतनी ही निर्मल

न किसी की सगी

और न किसी से दुश्मनी

करती नहीं है लगा-लिपटी

अपनी ही बात

कहती है निरपेक्ष

और तब बन जाती है वंदनीय

यह कलम, आराध्य, पूज्यनीय यह कलम.


लेखक का सबसे बड़ा गुण संवेदनशीलता है चाहे वह किसी भी देश का हो, किसी भी देश में हो, या प्रवासी हो. दूसरों के सुख-दु:ख को अनुभूत करने की क्षमता और सम्प्रेषणीयता अच्छे लेखक की अनिवार्यता है. कोई भी साहित्य, कहीं का भी साहित्य, देश काल की परिस्थितियों से बनता है, उससे अछूता नहीं रह सकता. विषय-वस्तु पर सामाजिक, सामयिक परिस्थितियों का प्रभाव अवश्यम्भावी है. हर देश की समस्याएँ उनकी परिस्थितियों से, उनके वातावरण से उत्पन्न होती हैं. यद्यपि समस्याएँ सर्वदेशीय, सर्वकालिक हैं पर हर देश की समस्याओं का स्वरूप देश काल की स्थितियाँ निर्धारित करती हैं. अत: उनमें केवल सामयिक सामाजिक अन्तर होता है. साहित्य का ताना-बाना देश काल की परिस्थितियों से ही बुना जाता है. उसकी गठन उससे ही होती है. यह अपरिहार्यता है. क्या देश काल का प्रभाव पड़े बिना साहित्य लिखा जा सकता है?


आपका समाज, आपका रहन-सहन, आपकी आयु का विकास आपके व्यक्तित्व के विकास की एक ऐसी अवस्था है जो आपके व्यवहार में परिलक्षित होती है, होनी भी चाहिये. आप समाज से कटकर नहीं रह सकते. समाज का प्रभाव आप पर न पड़ना अस्वाभाविक है. आपके व्यक्तित्व के विकास की यह माँग है.


कोई भी साहित्यकार - गद्यकार या कवि, जब तक समाज में रहते हुए समाज की वर्तमान समस्याओं को परिलक्षित नहीं करेगा तब तक वह उस समाज का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता. ऐसी स्थिति में न वह समाज के साथ है और न समाज ही उसके साथ. समाज एक महासमुद्र की भाँति है जिसमें मानव-रूपी जलयान कभी अपनी अबाध गति से चलते रहते हैं तो कभी दिशा-भ्रष्ट हो भटक जाते हैं. दिशाहीन होने पर स्थिरता से वहाँ खड़ा "लाइट-हाउस" उन्हें दिशा प्रदान करता है, विध्वंस होने से बचा लेता है. साहित्यकार भी समाज-रूपी समुद्र में स्थापित प्रकाश-स्तम्भ है. समाज भी अपने साहित्यकार से दिशा-निर्देश की अपेक्षा रखता है. समाज की माँग है कि साहित्यकार तात्कालिक परिस्थितियों का आकलन कर, यथोचित् मूल्यांकन कर, उससे ऊपर उठ, साहित्य का निर्माण करे.


अब आती है बात प्रवासी साहित्य की. तो साहित्य साहित्य होता है. क्या साहित्य का वर्गीकरण न्यायोचित् है? आवश्यक है? सरलीकरण के लिए वर्गीकरण करना एक बात है पर उसे मज़बूती से एक खेमे में बाँधना एक अलग बात है.


यदि कोई क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, दलित आदि समस्याओं को अनुभूत कर, उससे अभिभूत हो उन पर लिखता है तो वह दलित साहित्य माना जायेगा या केवल साहित्य? यदि कोई कवि नारी की सम्वेदनाओं को अनुभूत कर नारी विषयक कविता लिखता है तो क्या वह नारी साहित्य है या केवल साहित्य? साथ ही ऐसी स्थिति में शंकर जी की तरह अर्द्धनारीश्वर की स्थिति में पहुँचना महानता नहीं होगी क्या!


और यदि हम वर्गीकरण कर ही रहे हैं तो हम अपने को प्रवासी साहित्य, नारी साहित्य, दलित साहित्य आदि तक ही क्यों सीमित रखें, क्यों न क्षत्रिय साहित्य, ब्राह्मण साहित्य, वैश्य साहित्य, जातिभेद साहित्य, रंगभेद साहित्य आदि में विभाजित होते चले जायें?


प्रवासी साहित्य पर आरोप लगाया जाता है 'नॉस्टेल्जिया' का, विषाद, उदासी, खिन्नता, रोने-धोने का, भूतकाल को तरजीह देने का. तो प्रवासी साहित्य पर 'नॉस्टेल्जिया' का जो आरोप लगाया जाता है उन आरोपों के प्रति दो प्रश्न उभरते हैं - एक यह कि क्या ऐसी सोच वाले व्यक्तियों ने सम्पूर्ण प्रवासी साहित्य को पढ़ा है? और क्या ऐसे आलोचकों ने हर प्रवासी साहित्यकार की हर रचना में बस 'नॉस्टेल्जिया' ही पाया है? कुछ रचनाओं में यह सम्भव है और स्वाभाविक भी है. कोई भी साहित्यकार जिस देश, काल में पला-बढ़ा है उससे प्रभावित हुये बिना नहीं रह सकता और यह प्रभाव उसके प्रवासी काल में तुलनात्मक प्रवृत्ति के रूप में यदा-कदा परिलक्षित होना स्वाभाविक है.


एक और बात विचारने की है कि क्या प्रवासी साहित्यकार से यह अपेक्षा न्यायसंगत, तर्कसंगत है कि वह अपने पुराने अनुभवों को अपने जीवन की स्लेट से पूर्ण रूप से धो-पोंछ कर, सभी पुराने प्रसंगों, संदर्भों को मिटा कर प्रवासी साहित्य की रचना करे! यदा-कदा रचना की संदर्भित विषय-वस्तु पर या तुलनात्मक विषय-वस्तु पर 'नॉस्टेल्जिया' का प्रभाव तो दिखेगा ही. व्यक्ति उससे अपने को काटकर नहीं रह सकता. संस्कृति की जड़ें आपको पकड़ती हैं, जकड़ती हैं.


और फिर यदि प्रवासी साहित्य को 'नॉस्टेल्जिया' साहित्य की संज्ञा दी जाती है तो जब भारत में साहित्यकार अपने बचपन की बातें, अपने देश, काल की पुरानी बातें वर्णित करते हैं तो उन्हें क्या कह कर परिभाषित किया जायेगा? क्या उसे भी 'नॉस्टेल्जिया' साहित्य की श्रेणी में रखा जाएगा?


अब आती है बात भाषा की. जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है कि साहित्य पर देश, काल की परिस्थितियों का प्रभाव अवश्यम्भावी है, वहीं यह भी सत्य है कि साहित्य उस देश की भाषा के प्रभाव से भी अछूता नहीं रह पाता. प्रवासी साहित्यकार जहाँ तक सम्भव होता है (अपवाद सम्भव हैं) हिन्दी का प्रयोग करता है, उसमें कभी-कभी आंचलिक भाषा का भी छौंक देता है पर साथ ही साथ विशिष्ट परिस्थितियों में उस देश के कुछ विशेष शब्द जो हिन्दी में नहीं हैं, उनका समावेश रचना की अनिवार्यता बन जाता है.


एक बात और है. किसी भी प्रवासी साहित्यकार की रचनाधर्मिता को उसकी सम्पूर्णता में ही देखा जाना चाहिये. अच्छे से अच्छे साहित्यकार की हर रचना कालजयी नहीं होती. साहित्यकार हर सृजन की प्रसव-पीड़ा शिद्दत से महसूस करता है पर वह यह भी जानता है कि हर प्रसव-पीड़ा का परिणाम एक जैसा नहीं होता. अत: प्रवासी साहित्यकार की एक-आध रचना पढ़कर उसे ख़ारिज करना न्यायसंगत न होगा. सम्भवत: दुर्भाग्यवश कहीं आपके हाथ में उनकी कम वज़नी रचना न पड़ गयी हो.


जहाँ कुछ बड़े महान् साहित्यकारों की सृजनता 'पुलाव' की तरह है जिसके चावल का हर दाना एक जैसा है, वहीं सामान्यत: कुछ साहित्य थोड़ा खिचड़ी-सा भी होता है जहाँ चावल का कोई दाना थोड़ा कड़क तो कोई दाना थोड़ा नरम.


एक बार गोकुलेश्वर जी ने फ़िराक़ साहब के सन्दर्भ में कहा था कि एक बार वे अपने एक मित्र के पीछे जूता लेकर दौड़े जा रहे थे. पूछने पर कि माज़रा क्या है, वे बोले 'यह मेरे कम वज़नी शेर पर भी दाद पर दाद दिये जा रहा है.' तो यदि फ़िराक़ साहब का कोई शेर कभी कम वज़नी हो सकता है तो प्रवासी साहित्य में भी कभी हल्कापन आ सकता है. हाँ! यह भी न्यायोचित् न होगा कि आप बारम्बार साहित्यकार को 'संशय-लाभ' देकर स्वयं को यंत्रणा का भागी बनाते रहें.


बस न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठ प्रवासी साहित्य पर निर्णय देने में अत्यधिक जल्दबाजी न कर, कुछ धैर्यपूर्वक उसका यथोचित् मूल्यांकन ही प्रवासी साहित्य का न्यायोचित् प्राप्य है.


प्रवासी साहित्य की एक समस्या यह भी है कि वह भारत में या विश्व के विभिन्न कोनों में पहुँच नहीं रहा है, उपलब्ध नहीं हो रहा है. प्रवासी साहित्य की सीमित उपलब्धता के कारण उस पर सीमित प्रतिक्रिया ही सम्भव हो सकती है, जो हो रही है.


कहा जाता है कि प्रवासी साहित्य भारतीय साहित्य की तरह समृद्ध नहीं है. यह सच है. पर साथ ही यह भी उतना ही सत्य है कि भारतीय साहित्य के समय का अन्तराल प्रवासी साहित्य की अपेक्षा तुलना में अति विस्तृत है. अत: इस विस्तार को दृष्टि में रखते हुये दोनों साहित्यों की समृद्धता की परस्पर तुलना स्वयं में तर्कसंगत नहीं है.


प्रवासियों द्वारा लिखे साहित्य का निरपेक्ष भाव से अध्ययन-मनन हो, किसी विशेष विचारधारा के अधीन होकर नहीं; और उस स्थिति में प्रवासी साहित्य का मूल्यांकन हो, तभी मूल्यांकन सार्थक होगा.



.....................................







Sneh_Thakur

|| डॉ. स्नेह ठाकुर ||


डॉ. स्नेह ठाकुर

Awarded by The President of India

Post-Doctoral Fellowship Awardee

Founder, Editor, Publisher “Vasudha” Poetess & Author

16 Revlis Crescent

Toronto, Ontario M1V 1E9, Canada

ई मेल : dr.snehthakore@gmail.com

वेबसाइट : http://www.Vasudha1.webs.com

दूरभाष 416-291-9534


संस्थापक-सम्पादक-प्रकाशक 'वसुधा' हिन्दी साहित्यिक पत्रिका (जनवरी २००४ से), डायरेक्टर - इंटरनेशनल आर. सी. यूनिवर्सिटी, बेलग्रेड (कैनेडा चैप्टर), फैलो : रिसर्च फाउंडेशन इंटरनेशनल - यूएनओ से सम्बद्ध, संरक्षक : हिन्दी सेंटर - नई दिल्ली, चेयर पर्सन कैनेडा : वर्ल्ड फोरम ऑफ डायलॉग (विश्व संवाद), डायरेक्टर : वीकनेक्ट, कम्यूनिटी सर्विसेस, ऑन्टे. कैनेडा, सहयोगी सम्पादक एवं संयोजक : विश्व हिन्दी साहित्य का इतिहास, सदस्य संपादकीय बोर्ड - डॉ. लक्ष्मी मल्ल सिंघवी 'दिग्दर्शन ग्रंथ समिति', 'प्रवासी टुडे' विदेश सम्पर्क - कैनेडा, संस्थापक/अध्यक्ष सद्भावना हिन्दी साहित्यिक संस्था, सदस्य स्कारबरो सीनियर्स राइट कार्यकारिणी समिति, परामर्श सदस्य कैनेडा : 'शोध संचार बुलेटिन', परामर्श सदस्य कैनेडा : 'अक्षर-वार्ता', सदस्य स्कारबरो आर्ट्स काउन्सिल, लाइसम क्लब, वीमेन्स आर्ट्स् एसोसिएशन ऑफ कैनेडा (१९९९-२००५), लाइवली पोएट्स सोसायटी (१९९७-२००३), कार्यकारिणी सदस्य विश्व हिन्दू परिषद् (२०००-२००७), विशिष्ट सदस्य इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ पोएट्स, डायरेक्टेर कैनेडियन काउन्सिल ऑफ हिंदूज (२००३-२००५), को-चेयर इंडियंस इंडिपेंडेंस डे सेलिब्रेशन मारखम २००५, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा की पत्रिका “प्रवासी जगत” के सम्पादक मण्डल में मनोनीत, वैश्विक समन्वयक वैश्र्विक हिन्दी सम्मलेन, कार्यवाहक अध्यक्ष (मानद) रिसर्च फाउंडेशन (इंटरनेशनल) महिला सशक्तिकरण विंग, मानद कुलपति अंतर्राष्ट्रीय रोमा सांस्कृतिक विश्वविद्यालय अनुसन्धान केंद्र टोराण्टो कैनेडा, प्रणेता विचारक मंच, परामर्श मण्डल सदस्य - भाषा ज्ञान संवाद.


नाटक, काव्य, कहानी, निबंध, गीत, भजन, ग़ज़ल, रिपोरताज, उपन्यास, शोध-ग्रंथ, जीवनी आदि का हिंदी और कुछ अँग्रेजी में लेखन. दिल्ली प्रेस की सरिता के लिए 'सागर पार भारत' स्तम्भ भी लिखा.


साहित्य की अनेक विधाओं में लेखन


उपलब्धियाँ :


राष्ट्रपति माननीय प्रणब मुखर्जी द्वारा राष्ट्रपति भवन में २०१६ में "हिन्दी सेवी सम्मान २०१३"


१०वें विश्व हिन्दी सम्मेलन २०१५, भोपाल, भारत में गृह मंत्री श्री राज नाथ सिंह द्वारा "विश्व हिन्दी सम्मान" जिसका उद्घाटन माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने किया था.


‘वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकार्ड, लंदन, यू.के.’ में नामांकित


'अवध रत्न अवार्ड २०१५' सम्मान


संसदीय हिन्दी परिषद् द्वारा “राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान २०१८”


'कैकेयी चेतना-शिखा' उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी म. प्र. द्वारा अखिल भारतीय 'वीरसिंह देव' पुरस्कार २०१२


'इंटरनेशनल वीमेन एक्सलेन्स अवार्ड 2014' यूनाइटेड नेशन्स से सम्बद्ध संस्थाओं द्वारा सम्मानित


अखण्ड भारतीय उत्थान समिति एवं विधि भारती परिषद् द्वारा “साहित्य रत्न” २०२०


लिम्का बुक रिकॉर्ड होल्डर पत्रकारिता-कोष में नाम प्रकाशित


कैनेडा की फेडरल गवर्नमेंट के मल्टीकल्चरिज़्म एण्ड हेरिटेज़ डिपार्टमेंट द्वारा 'अनमोल हास्य क्षण' पुस्तक हेतु अधिकतम अनुदान से सम्मानित १९९५


यू.एन. सम्बद्ध रिसर्च फाउंडेशन इंटरनेशनल द्वारा 'इंटरनेशनल वीमेन सम्मान'


'एडिटर्स च्वाइस अवार्ड्स्' से 'दि नेशनल लाइब्रेरी ऑफ पोएट्री' सम्मानित


'साहित्य भारती सम्मान', दिल्ली से सम्मानित


मानद फ़ेलोशिप : यूएनओ से सम्बद्ध रिसर्च फाउंडेशन इंटरनेशनल, दिल्ली द्वारा


नागरी लिपि परिषद् द्वारा "नागरी सम्मान"


कोंसुल जनरल माननीय श्री दिनेश भाटिया द्वारा सम्मानित


'बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी' द्वारा सम्मानित


'विद्याश्री न्यास' बनारस द्वारा सम्मानित


8वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन 2007, न्यूयार्क में 'विशिष्ट अतिथि सम्मान'


'द संडे इंडियन्स' द्वारा 'हिन्दी विश्व की 25 श्रेष्ठ प्रवासी महिला लेखिकाएँ' में चयन


प्रवासी भारतीय दिवस, 2008, दिल्ली, भारत में 'आमंत्रित अतिथि'


साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित एवं श्री हिमांशु जोशी द्वारा सम्पादित आप्रवासी कहानीकारों के कहानी संकलन 'प्रतिनिधि आप्रवासी हिंदी कहानियाँ' में एकमात्र कनेडियन लेखिका


'अक्षरम् प्रवासी साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान'


'द संडे इंडियन्स' द्वारा '21वीं सदी की श्रेष्ठ 111 हिन्दी लेखिकाएँ' में चयन


हिन्दी अकादमी के विश्व के 23 प्रवासी हिन्दी कहानीकारों के प्रतिनिधि संकलन 'देशांतर' में एकमात्र कनेडियन लेखिका


'स्कारबरो आर्ट्स् : आउट स्टैंडिंग वॉलंटियर एप्रीशिएशन'


'साहित्य अकादमी' दिल्ली द्वारा कहानी पाठ के लिए आमंत्रित


'विश्व हिन्दी सेवा सम्मान'


'नारी अस्मिता समिति सम्मान'


'प्रवासी हिन्दी सेवी सम्मान'


'लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा सम्मानित'


'मोहन शोध संस्थान लखनऊ द्वारा सम्मानित'


'कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र द्वारा सम्मानित'


'चेतना साहित्य परिषद, लखनऊ से सम्मानित'


'मेरा साहित्य विश्वविद्यालयों में एम.फिल एवं पीएच.डी. शोध का विषय'


'चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के एम.ए. पाठ्यक्रम में चयनित'


'चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से दो बार सम्मानित'


'बीज वक्ता : अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन, जमशेदपुर, भारत'


टोराण्टो कैनेडा के संसद परिसर में आयोजित 'दि वर्ल्ड ऑन दि स्ट्रीट फ़ेस्टिबल' के दीर्घकालीन इतिहास में, हिन्दी साहित्यकारों में से, अपनी पुस्तक से पढ़ने वाली एकमात्र हिन्दी लेखिका


'वर्ष 2003 के पुरस्कार के लिए मनोनीत कवि'


'एम.पी.पी. माननीया लॉरा एलबनीज़ द्वारा सर्टिफिकेट ऑफ एप्रीसिएशन'


'साउथ एशियन इन ऑन्टेरियो' द्वारा सम्मानित


एम.पी. माननीय जिम कैरिगियानिस द्वारा 'सर्टिफिकेट ऑफ एप्रीसिएशन'


'नमस्ते कैनेडा द्वारा सम्मानित'


'फिलेडेल्फिया प्रिकली पोएट्री द्वारा सम्मानित'


'हिन्दी साहित्य सभा द्वारा सम्मानित'


'नैशनल एसोशिएशन ऑफ इंडो-कनेडियन्स द्वारा ‘एक्सीलेन्स इन कम्युनिटी स्पिरिट एवार्ड'


'हैबीटैट एंड आरकोप कंसल्टिंग कैनेडा द्वारा ‘एप्रीसिएशन एवार्ड'


'पैनोरामा इंडिया द्वारा सम्मानित'


'कोंसुल जनरल माननीय श्री दिव्याभ मनचन्दा द्वारा सर्टिफिकेट ऑफ एप्रीसिएशन'


'एम.पी. माननीय माइक सलीवान द्वारा सर्टिफिकेट ऑफ एप्रीसिएशन'


'इंडो/भारतीय-कनेडियन सीनियर क्लब द्वारा सर्टिफिकेट ऑफ एप्रीसिएशन'


राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक एवं ललित कला संस्थानों द्वारा सम्मानित


प्रकाशित पुस्तकें :


दशानन रावण (उपन्यास, पृष्ठ सं. ५९१), २०१९


कैकेयी : चेतना-शिखा (उपन्यास, साहित्य अकादमी म.प्र. द्वारा अखिल भारतीय 'वीरसिंह देव' पुरस्कार सम्मान, चतुर्थ संस्करण, पृष्ठ सं. २००), २०१९


लोक-नायक राम (उपन्यास, चतुर्थ संस्करण, पृष्ठ सं. ४३२), २०१८


कैकेयी : चेतना-शिखा (उपन्यास, साहित्य अकादमी म.प्र. द्वारा अखिल भारतीय 'वीरसिंह देव' पुरस्कार सम्मान, तृतीय संस्करण, पृष्ठ सं. २००), २०१७


नाकंडा अम्माँ (अध्यात्मिक जीवनी, चतुर्थ संस्करण, पृष्ठ सं. २४८), २०१७


लोक-नायक राम (उपन्यास, तृतीय संस्करण, पृष्ठ सं. ४३२), २०१७


नाकंडा अम्माँ (अध्यात्मिक जीवनी, तृतीय संस्करण, पृष्ठ सं. २४८), २०१७


नाकंडा अम्माँ (अध्यात्मिक जीवनी, द्वितीय संस्करण, पृष्ठ सं. २४८), २०१७


श्रीरामप्रिया सीता (उपन्यास, पृष्ठ सं. ४६४), २०१७


नाकंडा अम्माँ (अध्यात्मिक जीवनी, पृष्ठ सं. २४८), २०१७


लोक-नायक राम (उपन्यास, द्वितीय संस्करण, पृष्ठ सं. ४३२), २०१६


कैकेयी : चिन्तन के नव परिदृश्य - सन्दर्भ : अध्यात्मरामायण (शोध-ग्रंथ, पृष्ठ सं. १८४), २०१५


लोक-नायक राम (उपन्यास, पृष्ठ सं. ४३२), २०१५


कैकेयी : चिन्तन के नव आयाम - संदर्भ : तुलसीकृत श्रीरामचरितमानस (शोध-ग्रंथ, पृष्ठ सं. १६८), २०१४


कैकेयी : चेतना-शिखा (उपन्यास, साहित्य अकादमी म.प्र. द्वारा अखिल भारतीय 'वीरसिंह देव' पुरस्कार सम्मान, द्वितीय संस्करण, पृष्ठ सं. २००), २०१३


चिन्तन के धागों में कैकेयी - संदर्भ : श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण, शोध-ग्रंथ, पृष्ठ सं. १५७), २०१३


आज का समाज (सामाजिक लेख-संग्रह, पृष्ठ सं. १८८), २०१३


कैकेयी : चेतना-शिखा (उपन्यास, राष्ट्रपति भवन पुस्तकालय में संग्रहित, पृष्ठ सं. २००), २०१२


अनोखा साथी (कहानी संग्रह, पृष्ठ सं. ९४), २०११


काव्याञ्जलि (काव्य संग्रह, पृष्ठ सं. ९१), २०११


काव्य-धारा (संकलन, सम्पादन, सहभागिता एवं प्रकाशन, पृष्ठ सं. १०२), २०१०


उपनिषद् दर्शन (ईशोपनिषद्, दार्शनिक और आध्यात्मिक, पृष्ठ सं. २४१), २०१०


संजीवनी (स्वास्थ्य सम्बन्धी निबंध संग्रह, पृष्ठ सं. २२३), २०१०


काव्य हीरक (संकलन, सम्पादन, सहभागिता एवं प्रकाशन, पृष्ठ सं. ९९), २००९


बौछार (संकलन, सम्पादन, सहभागिता एवं प्रकाशन, पृष्ठ सं. ९८), २००८


पूरब-पश्चिम (आप्रवासी सम्बंधित आलेख संग्रह, पृष्ठ सं. ९५), २००८


काव्य-वृष्टि (संकलन, सम्पादन, सहभागिता एवं प्रकाशन, पृष्ठ सं. ९८), २००७


अनुभूतियाँ (काव्य संग्रह, पृष्ठ सं. ८८), २००६


The Galaxy Within (A collection of English poems, P.Ns. 70) 2005


जज़्बातों का सिलसिला (काव्य संग्रह, पृष्ठ सं. ११२), २००३


हास-परिहास (हास्य कविताएँ, पृष्ठ सं. १३६), २००३


आत्म गुंजन (अध्यात्मिक-दार्शनिक गीत, पृष्ठ सं. ९६), २००१


जीवन निधि (काव्य संग्रह, पृष्ठ सं. ११०), २००१


आज का पुरुष (कहानी संग्रह, पृष्ठ सं. ९४), २०००


दर्दे-जुबाँ (नज़्म व ग़ज़ल संग्रह, ८८) १९९९


जीवन के रंग (काव्य संग्रह, पृष्ठ सं. ८०), १९९७


अनमोल हास्य क्षण (नाटक संग्रह, मल्टीकल्चरिज़्म एण्ड हेरिटेज़, फेडरल गवर्नमेंट, कैनेडा द्वारा अधिकतम अनुदान से सम्मानित, पृष्ठ सं. १२७), १९९७


कैनेडा और अमेरिका के सार्वजनिक और विश्वविद्यालय के पुस्तकालयों एवं कैनेडा के राष्ट्रीय पुस्तकालय आदि में पुस्तकों के चयन के अतिरिक्त, टोराण्टो डिस्ट्रिक्ट स्कूल बोर्ड द्वारा भी इनमें से कुछ पुस्तकें 'इंटरनेशनल लैंगुएजेज़ फॉर कंटीन्यूइंग एजुकेशन' के पाठ्यक्रम के लिए चयनित


नव प्रभात - टोराण्टो विश्वविद्यालय के दक्षिण एशियाई अध्ययन विभाग के लिए बनाई गई सीडी हेतु हिन्दी गीतों की रचना


पंजाबी भाषा में कुछ रचनाएँ अनूदित


शीघ्र प्रकाश्य :


मारुति नन्दन


विश्व हिन्दी साहित्य का इतिहास


East-West (A collection of essays on Immigrants in English)


निम्नांकित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित :


अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निबंध, कहानी, कविता, रिपोरताज आदि 'सरिता', 'गृह शोभा', 'सुषमा', 'मुक्ता', 'सुमन सौरभ', 'कादंबिनी', 'भाषा सेतु', 'समरलोक', 'ऋचा', 'पहचान ', 'गुर्जर राष्ट्र वीणा', 'दीप ज्योति', 'आधुनिक एवं हिन्दी कथा साहित्य में नारी का बदलता स्वरूप', 'नौतरणी', 'प्रतिनिधि आप्रवासी हिंदी कहानियाँ', 'गगनाञ्चल', 'लेखनी', 'बाल सखा', 'राष्ट्र भाषा', 'पुरवाई,' 'विचार दृष्टि' 'नया सूरज', 'युद्धरत आदमी', 'विश्व हिन्दी पत्रिका २०११, २०१४ एवं २०१६, 'अक्षरम् स्मारिका २०१२', 'अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद', 'प्रभात ख़बर', 'गर्भनाल', 'द गौरसंसटाइम्स', 'विराट भारत', 'देशांतर', 'समय', 'राजभाषा मंजूषा', 'हिndi', 'देसी गर्ल्स', 'हिन्दी भाषा', 'सन स्टार', 'आधुनिक साहित्य', 'ज्ञानोदय', 'साक्षात्कार', 'अलख इंडिया', ‘प्रवासी जगत’, ‘विश्व स्नेह समाज’, ‘प्रवासी साहित्य विशेषांक’, ‘दीपशिखा’ आदि में प्रकाशित.


सरिता के लिए 5 वर्ष तक, १९९२ से १९९६ तक 'सागर पार भारत' स्तम्भ लिखा.


अमेरिका में, 'शैडोज़ एण्ड लाइट', 'पोट्रेट्स ऑफ लाइफ़', 'दि एबिंग टाइड', 'बेस्ट पोएम्स ऑफ दि नाइंटीज़', 'दि नेशनल लाइब्रेरी ऑफ पोएट्री', 'दि पोएट्स कॉर्नर', 'दि सैण्ड्स ऑफ टाइम', 'विश्व विवेक', 'विश्वा' एवं 'सौरभ' में प्रकाशित


राष्ट्रीय व स्थानीय रूप से रचनाएँ, 'हिन्दू धर्मा रिव्यू', 'काव्य किंजल्क', 'अंतर्राष्ट्रीय हिंदी स्मारिका', 'प्रवासी काव्य', 'संगम', 'सेवा भारती', 'नमस्ते कैनेडा', 'मेधावनी', 'हैलो कैनेडा', 'काव्य-वृष्टि', 'बौछार', 'काव्य-हीरक', 'काव्य-धारा', 'मोमेंट्स', आदि में प्रकाशित


अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन के लिये यॉर्क विश्वविद्यालय के बर्टन सभागार में अभिनीत नाटक 'कविवर की दुर्दशा' का लेखन, प्रस्तुतिकरण, मंचन, निर्देशन एवं अभिनय


चल-चित्रों में अभिनय, साहित्यिक और सांस्कृतिक संगोष्ठियों का आयोजन


अकादमिक डिग्री : मास्टर्स ऑफ आर्ट्स् और बैचलर ऑफ एजुकेशन


ललित कला में छात्रवृत्ति


मानद डॉक्टर उपाधि


पोस्ट-डॉक्टरल फ़ेलोशिप


तैल व अन्य माध्यमों के चित्रों का स्कारबरो आर्ट्स् काउन्सिल, ब्लफ़ गैलरी, सीडर रिज़ क्रिएटिव सेन्टर, वीमेन्स आर्ट्स् एसोसिएशन ऑफ कैनेडा, टोराण्टो क्षेत्रीय पुस्तकालय और एजिनकोर्ट संदर्भ पुस्तकालय आदि एवं कैनेडा के अन्य क्षेत्रों में प्रदर्शन. श्री एल्विन कर्लिंग (उस समय के ऑन्टेरियो प्रोवेंशियल पार्लियामेंट स्पीकर) के १९९९ कैलेंडर में कला-चित्र सम्मिलित


शिक्षण : भारत, इंग्लैंड और कैनेडा.


मान्यता प्राप्त दुभाषिया, अधिकृत अनुवादक और भाषांतरकार


अधिकृत सांस्कृतिक दुभाषिया और अनुवादक


अन्य विवरण :


जन्म स्थान : चित्रकूट, भारत


जन्म तिथि : १५ जुलाई


प्रवासी आवास :


१९६५ - १९६७, लंदन, इंग्लैंड


१९६७ से आज तक कैनेडा


साहित्य की अनेक विधाओं में विभिन्न विषयों पर पुस्तकें प्रकाशित


लगभग ३० वर्षों से, १९९१ से सरिता में रचनाएँ प्रकाशित


सरिता के लिए १९९२ से १९९६, ५ वर्षों तक 'सागर पार भारत' स्तम्भ भी लिखा


जनवरी २००४ से, संस्थापित-सम्पादित-प्रकाशित 'वसुधा' हिन्दी साहित्यिक पत्रिका द्वारा भारत व विश्व के साहित्यकारों एवं पाठकों को जोड़ने का प्रयास


'सद्भावना हिन्दी साहित्यिक संस्था' की स्थापना द्वारा २००३ से साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन द्वारा हिन्दी के प्रचार, प्रसार, उन्नयन में अनवरत कर्मठतापूर्वक संलग्न. संस्था के अन्तर्गत चार काव्य-संकलनों का संकलन, सम्पादन, सहभागिता एवं प्रकाशन


चित्रकला प्रदर्शिनियों द्वारा भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार


साहित्य, कला एवं चित्रकला के क्षेत्र में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मान


अभिरुचि : लेखन, पठन, नाट्य-मंचन, चित्रपट, चित्रकला एवं भ्रमण. नाट्य लेखन-मंचन, चलचित्र अभिनय से जुड़ाव


.....................................