व्यंजना

श्यामली का बसंत

-डॉ. हंसा शुक्ला


बसंत का मादक मौसम, प्रकृति ने जैसे धरती का श्रृंगार कर दिया हो, टेसु के लाल फूल और टीकोमा के पीले फूल से सजी धरती ऐसे लग रही थी जैसे दुल्हन ने लाल साड़ी में पीली चुनरी ओढ़ी हो। श्यामली को बसंत यह मौसम सुकून नहीं दे रहा था बल्कि उसे ईर्ष्या हो रही थी। प्रकृति भी कितनी निष्ठुर है जो मौसम के अनुरूप अपना रंग बदल लेती है, इस बदलते मौसम के कारण ही तो जो लोग बेवफा होते हैं उन्हें मौसम की तरह रंग बदलने वाला कहते हैं । श्यामली को लग रहा था उसके जीवन में भी बसंत ने दस्तक दिया था पर उसने कभी दिल का दरवाज़ा खोलकर उसका स्वागत ही नहीं किया। श्यामली तीखे नैन नक्श वाली, छरहरे बदन की ख़ूबसूरत लड़की थी,उसका रंग सांवला था पर गजब की कशिश थी । श्यामली जितनी ख़ूबसूरत थी उतनी ही व्यवहार कुशल थी। पोस्ट ग्रेजुएट होते ही उसने नेट का एग्जाम पास कर कॉलेज में सहायक प्राध्यापक के पद पर सेवायें देने लगी थी। माता-पिता को भी श्यामली जैसी सर्वगुण संपन्न लड़की पर नाज था। नौकरी लगने पर श्यामली के लिए रोज़ नए रिश्ते आते थे, उसके समकक्ष परिवार और नौकरी वाला पर उसके सपनो का राजकुमार प्रथम श्रेणी अधिकारी और हैंडसम लड़का था इसलिए जो रिश्ते आते थे वह श्यामली के पैमाने में खरे नहीं उतरते थे। एक रिश्ता था जिसे श्यामली ने पसंद किया, जो था सौरभ का रिश्ता। सौरभ कॉलेज में ही सहायक प्राध्यापक था, वह अच्छी कद-काठी का मिलनसार, शांत और स्मार्ट युवक था।


श्यामली और सौरभ की शादी तय होने वाली थी कि श्यामली के जीवन में एक नया मोड़ आया वह किसी काम से कलेक्टोरेट गई वहाँ उसकी मुलाकात एडिशनल कलेक्टर रोहित से हुई, उसने श्यामली का काम किया ही नहीं बल्कि उसका नंबर भी लिया। श्यामली और कलेक्टर साहब की एक- दो मुलाकात और हुई दोनों एक-दूसरे को मैसेज भी करने लगे। श्यामली को लगता था के रोहित ही उसके सपनो का राजकुमार है उसने अगली मुलाकात में रोहित से स्पष्ट किया कि घर में मेरी शादी कि चर्चा चल रही है, मैं आपको पसंद करती हूँ अगर आप भी मुझसे शादी करना चाहते हैं तो मैं घर में मम्मी-पापा को आपके बारे में बताऊंगी। रोहित ने आश्चर्य से कहा कि श्यामली तुम मेरी दोस्त हो मैंने तो कभी इस तरह के संबंध के बारे में सोचा भी नहीं, मैं शादी-शुदा हूँ और मेरा तीन साल का एक बेटा है। मैंने तो हमेशा तुमसे एक दायरे में ही बात की, तुम मेरे लिए ऐसे विचार रखती हो मैं सोच भी नहीं सकता था। श्यामली को रोहित की सच्चाई जानकर बहुत दुःख हुआ अपने एक तरफ़ा आकर्षण के कारण उसने रोहित से जो कहा उसे सोचकर वह दुखी और शर्मिंदा थी। माता-पिता भी श्यामली के बदले हुए व्यवहार से दुःखी थे। इस बीच सौरभ के घर से एक-दो बार रिश्ते की बात आगे बढ़ाने का प्रस्ताव भी आया लेकिन श्यामली की कोई प्रतिक्रिया न पाकर सौरभ के घरवाले दूसरी लड़की देखने लगे थे। बसंत पंचमी के दिन सरस्वती माँ की पूजा करके श्यामली मंदिर से निकल ही रही थी कि मंदिर की सीढ़ी पर सौरभ मिल गया उसने श्यामली को बसंत पंचमी की बधाई दी और पूजा कर के आने तक रुकने को कहा


सौरभ आज कुछ ज्यादा ही सौम्य लग रहा था, उसके चेहरे के तेज़ और निश्छल भाव ने श्यामली को उसकी ओर आकर्षित किया, उसने मंदिर से आकर श्यामली को प्रसाद दिया और इधर-उधर की बातें करने लगा। श्यामली ने झिझकते हुये सौरभ से पूछा "क्या शादी के लिए कोई लड़की पसंद आई?" सौरभ ने कहा- "हाँ", श्यामली अंदर से टूटी थी पर मुस्कुराते हुए पूछी "अरे वाह कौन है वह खुशनसीब?" सौरभ ने मुस्कुरा कर कहा- "श्यामली।" श्यामली शरमा गई, झेंपते हुये बोली "मुझे तो लगा तुम्हारी शादी तय हो गई होगी।" सौरभ ने आत्म विश्वास से जवाब दिया।"श्यामली मैंने घर वालों को कह दिया था कि जब तक तुम्हारी ओर से 'ना' में जवाब नहीं आयेगा मैं तुम्हारे हाँ का इंतज़ार करता रहूँगा। मैं और मेरे घरवाले तुम्हारे हाँ का इंतज़ार कर रहे हैं । लेकिन तुम्हें कोई और पसंद हो तो बता देना फिर मैं इंतज़ार नहीं करूंगा।" श्यामली ने मुस्कुराते हुये कहा "बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि सब्र का फल मीठा होता है, सौरभ तुम्हारा यह इंतज़ार भी जाया नहीं जायेगा। घर में शादी की तैयारी शुरू करने कह दो। मैं कॉलेज जा रही हूँ आज लेट हो गई हूँ।"सौरभ कार स्टार्ट करके चला गया, श्यामली को आज बसंत की मादक हवा बहुत अच्छी लग रही थी उसके जीवन का बसंत वापस जो आ गया था और वह बांह पसारकर उसका स्वागत कर रही थी ।


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डॉ. हंसा शुक्ला


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|| डॉ. हंसा शुक्ला||