व्यंजना

निषेध

- हरीश करमचंदाणी


निषेध


वह सच बोलता था

लोगों ने उसे सुनना छोड़ दिया

वह सच लिखता था

लोगों ने उसे पढ़ना छोड़ दिया

सच से नाता जोड़ने को कहा सबसे

लोगों ने उससे सम्बन्ध तोड़ दिया

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बेबसी


मेरे भीतर बैठा एक बच्चा

जो कभी खिला रहता था फूल सा

अब रहने लगा है उदास गुमसुम

मैं उससे पूछना चाहता हूँ कारण

पर मेरा गला रुंध गया है

आँखे डबडबा गयी है

मैं किस मुँह से पूछूँ

वह कहीं मुझसे ही न पूछ ले

यही बात

अपने दुःख उसे बताऊँ?

इतना तो निर्मम नहीं हूँ

मैं पाषाण!

तरसता अपनी आँखों में

एक बूंद आंसू के लिये

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हरापन


बहुत रूढ़ हो चुके इस प्रतीक को

फ़िर भी लाना चाहता हूँ अपनी कविता में

कि वह सिर्फ व्याकरणीय अवदान

न बन कर रह जाये

दिखे भी हर तरफ अपने वैभव के साथ

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पिता के लिये


पिता को हम बहुत प्यार करते थे

माँ को जितना करते थे शायद

उससे भी ज्यादा

माँ यह जानती थी और वह भी इस बात से खुश ही होती थी

यह सिर्फ माँ की उदारता भर न थी

उन्हें भी तो पिता से उतना ही प्रेम था

और फिर

पिता थे ही इतने अच्छे

यह बात मेरे पास पड़ौस के बच्चे और रिश्ते के भाई

बहिन सभी मानते थे

यह बात हमारे लिये इतराने को क्या कम थी

एक बार मुझे अपने पास बैठा बोले

देखो तुम्हे अपनी वह किताब और पराग

बहुत पसंद है न तुम्हें,बहुत प्यार करते हो उसे?

मेरे हाँ कहने पर वो बोले मगर कोई उसे ले गया और उसे गुम कर दी या कोई पन्ना उससे फट गया तो इतना दुखी हो जाओगे कि खाना ही न खाओगे?बताओ,ऐसा करना अच्छी बात है

दरअसल ऐसा हुआ था और एक दिन कुछ न खाया गया था मुझसे

कुछ दिन अनमना भी रहा था

पिताजी उसकी ही याद दिला रहे थे

यह ठीक तो नहीं न

मुझे दुलारते हुए बोले

जी,ठीक है आगे से नहीं होगा

शाबास,मेरे बच्चे

खूब प्यार करो सबसे करो

पर मोह मत रखो किसी में भी

कहते कहते उनका स्वर भीग सा गया

मोह मत करना,किसी के लिये भी

अपनी प्यारी से प्यारी चीज़ के लिये भी

मैंने हामी भरी

पिताजी ने मुझे चूमते हुये सीने से लगा लिया

मेरे बालों में कुछ गर्म बूंदे सी गिरी थी

पिताजी मुझे मुस्कराते निहारने लगे थे

कुछ दिनों बाद पिताजी चल बसे थे

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Harish

|| हरीश करमचंदाणी ||


हरीश करमचंदाणी


"लाज लछमी"


D 27,केशव विहार,सौम्य मार्ग,


जवाहर सर्किल के पास,


जयपुर 302017


Mb 9314884876


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