रेखा भाटिया की कविताएं
रंग
कभी आप रंग बिखेरते हो
कभी स्वयं रंगों में डूब जाते हो
जब रंग आत्मा को भिगो जाते
होंठो पर मुस्कान ले आते
जीवन की यात्रा भी कितनी रंगीन
रंगों से रिश्ता देता सुकून कितना
श्वेत में घुल सब उजले हो जाते
बाक़ी रंग कोई न बचता
प्रेम-का रंग भी श्वेत रंग-सा
तुम्हारा अपना कुछ न बचता
तुम घुलकर उसके प्रेम में
खो देते अपना असली रंग
रंग काला नफ़रत का
तुम कर लो कितनी भी कोशिश
घुल-घुल कर तुम्हारा रंग भी
रहेगा काला-काला-सा ही
शाम के सिंदूरी रंग जीवन के
तुम जीवन की यादों का रस लो
तुम हो मुसाफ़िर बहुत दूर चले
हर एक याद हर एक रंग की
उसकी अपनी पहचान, अपना प्रसंग ...
सुबह के सुनहरे-चमकीले रंग में
तुम करो नई शुरुआत जीवन की
कभी काला अँधेरा घिर भी आए
उस रंग का भी अपना एक ढंग है ...
गुलाबी रंग धूप का, ख़ुशी का
लाल तुम्हारी मेहनत का, तिलक का
पीला रंग तो सबको भाए
कान्हा ओढ़ पीताम्बर वस्त्र
नीले नटखट हो जाते हैं
राख मल शिव स्लेटी हो गए
जीवन में कभी सुख, कभी दुःख जैसे
हरा रंग मनभावन
हरियाली धरती सजी है
नीले ,पीले ,गुलाबी ,सफ़ेद,
हरे ,कत्थई ,काले ,नारंगी,
बैंगनी, लाल ,जामुनी कई रंगों के फूल
तितलियाँ और मछलियाँ स्वाभाविक सुंदर
पानी का कोई रंग नहीं वह जिसमें घुले
उसी के जैसा ...
कमाल के रंग बनाए क़ुदरत ने
इनकी अपनी-अपनी गुणवत्ता
लेकिन एक रंग जो दिखता नहीं
लेकिन महसूस होता
सबसे भला है
उस का नाम है मानवता
रंगों का त्यौहार है होली
तुम भी चुन लो रंग अपना
अपनों के साथ , सपनों के साथ
ख़ुशियों के साथ ,उमंगों के साथ
बड़े जतन से उस रंग के साथ
जो दिखता नहीं महसूस होता !
नायिका
उसने हाथ सबसे ऊँचा खड़ा किया
जैसे ही वह खड़ी हुई महफ़िल में
उसके डील-डौल और गहरे रंग पर
सभी हँसने लगे बड़ी ज़ोर से
झेंपकर देखा उसने हँसने वालों को
झेंपते हुए कहा
सपने पूरे करने की
कोई उम्र नहीं होती
आधे पके बाल और उम्र में
उसने उसकी बात न ज़ोर से कही
न जोश में ! पूरे साहस से
धीरज और आत्मविश्वास में कही
उसने इतना ही कहा
वह उठती है सुबह तीन बजे
सबका खाना बनाती है
पाँच बजे जीएटी की बस चलाती
बारह बजे घर पहुँच सिलाई करती
शाम सात बजे से साढ़े नौ तक
कंप्यूटर सीखती है
फिर घर लौटकर
सबके लिए खाना बनाती
महफ़िल में बैठी नायिका
चाँद-सा मुखड़ा उसका
शीशे-सा दमकता बदन
महफ़िल के आकर्षण का बिंदु
अनायास ही पीली पड़ गई
महफ़िल चुप थी
कोई कुछ नहीं बोल रहा था
तालियों की गढ़-गढ़ाहट ने
सबकी बोलती बंद कर दी थी !
अजन्मा श्राप
विरोध की आवृतियाँ बढ़ रही
दुरूह परिस्थिति है
उसका भाग्य मौन हो रहा
उसके गर्भ से जन्म होगा
एक विक्षिप्त सत्य का
वह आगाह कर रही है
वह रोकना चाहती है उसका जन्म
उसे स्वीकारा नहीं जाता !
उसकी आँखों का पानी सूख गया है
आत्मा की नमी सोख लेता है झूठ
वह लड़ रही है आत्मा-हीन समाज से
यह समाज अग्रणी है दुनिया में
वह समझाना चाहती है समाज को
सत्य से परे यह भूल कर रहा है !
न बदला है उसकी योनि से बहता रक्त
न बदला है उसकी छाती से बहता दूध
बहते रक्त और दूध की ख़ातिर
उसे दुगना श्रम करना पड़ रहा।
मौत जब उसे टाला नहीं जा सकता
तभी समझ आता है
जीवन-उत्सव उन अंतिम क्षणों में
उसे भी जीते जी मौत दी जा रही।
वह अभिप्राय सिद्ध करना चाहती है ....
वह अभिशप्त है ऐसा जीवन जीने को
जिस स्वच्छंद समाज में वह रहती है
इसमें किशोरावस्था के छूते ही
स्वच्छंद हो जाते हैं स्त्री और पुरुष
समय से पहले परिपक्व हो जाती है अवस्था
कई मनोविकारों का कारण बन जाती
समय से पहले पके फल विकार वाले होते हैं।
यह समाज स्थिर है लेकिन
सुनिश्चित नहीं एक मत पर
रंग का मत, राजनीति का मत,
धर्म का मत भिन्न हैं
फिर स्त्री अधिकार का हनन ?
उस पर एक मत हो गया समाज।
हर रंग की स्त्री बेरंग हो गई है समाज में
बेरंग स्त्री अधर्मी नहीं है
फँसी है राजनीतिक भँवर में।
इसे जीने के सारे अधिकार प्राप्त हैं
वह अग्रणी है समाज में
लेकिन उसके गर्भ पर अधिकार नहीं है उसका .......
वह तड़प रही है
जैसे पर काटकर जंगल में छोड़ा गया पंछी
जड़ से उखाड़ना चाहती है वह
ये अजन्मा श्राप
जो नारी की स्वछंदता को निगलने
उसके गर्भ से जन्म लेना चाहता
वह लड़ रही है अपने ही समाज से
स्वतंत्रता और स्वच्छंदता का पाठ
पढ़ाने वाला यह स्वच्छंद समाज
आज भी कुंठित मानसिकता का शिकार ...
इस बेरंग स्त्री को भय है ये अजन्मा श्राप
जन्म लेने के बाद कहीं विक्षिप्त होकर
सरेआम स्कूल ,कॉलेज ,मॉल ,
थिएटर ,कॉन्सर्ट में जाकर
गोलियों से सबको भून देगा
उन्नत समाज फिर वही रट दोहराएगा
वह मानसिक रूप से विक्षिप्त था !
(अमेरिका में औरतों का स्वेच्छा से गर्भपात कराने का अधिकार छीना जा रहा है )
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|| रेखा भाटिया ||
परिचय
नाम : रेखा भाटिया
जन्म: इंदौर, मध्यप्रदेश
भारत और दुबई में रहने के बाद वर्तमान में अमेरिका के शार्लिट शहर में रहती हैं।
शिक्षा: देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से गणित, विज्ञान में स्नातक और समाज शास्त्र में स्नातकोत्तर।
प्रकाशन: कई लेख, कविताएँ, लघु कहानियाँ, कहानियाँ, समीक्षाएँ ,वेबदुनिया, विभोम स्वर, शिवना साहित्यिकी पत्रिका, गर्भनाल, हिंदी चेतना, प्रवासी भारतीय, द कोर, सेतु, अनुसन्धान पत्रिका, पुष्पगंधा, माही सन्देश,अभिनव-इमरोज़ , पुरवाई, अनहृद कृति, रचना उत्सव ,आखर-आखर ,वैज्ञानिक , साहित्य सुधा और साहित्य कुञ्ज पत्रिका में प्रकाशित।
प्रकाशित पुस्तकें: प्रथम कविता संग्रह "सरहदों के पार दरख़्तों के साये में " शिवना प्रकाशन के द्वारा प्रकाशित। रचनात्मक सहयोग- विमर्श-नक्काशीदार केबिनेट ,
विमर्श-जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था , अनुसंधान , प्रवासी साहित्य - जोहानासवर्ग ,प्रवासी साहित्यकार :सुधा ओम ढींगरा, मन की तुरपाई - साझा कविता संग्रह, भारत काव्य पियूष - साझा कविता संग्रह , साझा काव्य संग्रह "काव्य कलश "
सम्मान: साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक संघ "प्रणवाक्षर " द्वारा श्रेष्ठ रचनाकार 2023 से सम्मानित।वर्ष 2022 में शार्लिट शहर में बेस्ट कम्युनिटी लीडर सम्मान।"कलश साहित्य सम्मान 2023 " ,वैश्विक हिंदी संस्थान -यू.एस.ए. प्रशस्ति पत्र
सम्प्रति: अमेरिका में शिक्षक ,हिंदी लेखक ,कत्थक डांसर , चित्रकार।
अभिरुचि: लेखन के अलावा चित्रकला, नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी। कई नृत्य कार्यक्रमों की सफल प्रस्तुति, हिंदी में अनेक रेडियो कार्यक्रम प्रसारित हो चुके हैं।अनेकों कविता गोष्ठियों में सक्रीय भागीदारी , कवि सम्मलेन का सफल आयोजन , अनेकों सामाजिक कार्यों में योगदान ,शार्लिट में साहित्यिक ग्रुप का संचालन !
जैन कवि संगम छत्तीसगढ़ शाखा में - सह सचिव
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