व्यंजना

प्रो. शकुन्तला बहादुर-

नव- वर्ष - १ जनवरी को ?


यू.एस.,योरोपीय देशों में ये कैसा आया नव-वर्ष ?

है उदास सी धरती लगती,नहीं प्रकृति में दिखता हर्ष।

ठिठुर रहे सब शिशिर शीत से,

सूरज भी न निकला डर से।

ऊँचे - ऊँचे वृक्ष बड़े हैं ,

पत्रहीन निर्वस्त्र खड़े हैं ।

बग़िया लगती मुरझाई सी,

मन में भरती बहुत उदासी।

सब कहते हैं “हैप्पी न्यू इयर”,

हम तकते हैं कहाँ ? किधर ?

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भारतीय नव-वर्ष आएगा ,

सब ख़ुशियों को संग लाएगा।

नव पल्लव से वृक्ष सजेंगे,

उपवन में जब फूल खिलेंगे।

जब बसन्त ऋतु आ जाएगी,

फूलों को महका जाएगी ।

हवा बासन्ती लगेगी बहने,

प्रकृति लगेगी फिर से सजने।

चमक उठेगा सूर्य भी नभ में,

नव उल्लास भरेगा मन में ।

चिड़ियों का कलरव गूँजेगा,

जन जन मस्ती से झूमेगा ।

होली में जब रंग बरसेंगे ,

आपस में सब गले मिलेंगे।

फ़सल अन्न की कट जाएँगी,

कृषक के घर ख़ुशियाँ आएँगी ।

चैत्र मास तब आ जाएगा,

नयी चेतना संग लाएगा ।

शान्ति मिले और लाए हर्ष,

नहीं कहीं भी हो संघर्ष ।

सबका ही होवे उत्कर्ष,

सुखद सदा हो ये नव वर्ष।।

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अस्मिता


अप्रिय सदा अभिमान मुझे,

प्राणों से भी प्रिय स्वाभिमान।

मुझे मिले सम्मान नहीं पर

रक्षित रहे आत्मसम्मान।।

मिथ्या गौरव नहीं चाहिये,

मुझे हो जीने का अधिकार।

चाहे मुझे मिले न आदर,

क्यों दे कोई तिरस्कार?

चाहे सुयश कभी न पाऊँ,

अपयश रहे सदा ही दूर।

नहीं प्रशंसा की इच्छा पर

निन्दा मन को करे न चूर।।

निज कुटिया ही प्यारी मुझको,

भव्य भवन की चाह नहीं।

मुझको प्रिय स्वदेश ही अपना

यह विदेश का स्वर्ग नहीं।।

संतति की ममता ही मुझको

खींच यहाँ ले आयी है।

स्वस्थ सुखी ये रहें सदा

बस यही मुझे सुखदायी है।।

मर्यादा में रहें सदा ही,

सादा जीवन उच्च विचार।

मातृभूमि को कभी न भूलें,

चाहें विश्व बने परिवार।।

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shakuntala

|| प्रो. शकुन्तला बहादुर ||


लखनऊ में शिक्षा और शिक्षण।


वि.विद्यालय से संस्कृत मे एम.ए.।


सर्वाधिक अंकों का पदक प्राप्त।


महिला कालेज के प्राचार्या पद से सेवानिवृत्त। १९६२-६४ तक जर्मनी की फ़ेलोशिप पर वहाँ शोध कार्य एवं विदेशी छात्र-छात्राओं को हिन्दी एवं संस्कृत का शिक्षण।


कैलिफ़ोर्निया


shakunbahadur@yahoo.com



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