हिंदी साहित्य के कहानियों की दुनिया में रामनगीना मौर्य जी का बड़ा नाम है। जिस तरह से देश के प्रसिद्ध पत्र- पत्रिकाओं में इनकी कहानियां बेहद पसंद की जाती रही है , उसी तरह से श्री मौर्य का नया कहानी संग्रह "आगे से फटा जूता" काफी लोकप्रियता बटोर रहा है। सचमुच इसमें उपलब्ध कहानियां एक से बढ़ कर एक हैं और गागर में सागर का काम कर रही है। मौर्य जी की कहानियों का प्रवाह आदि से अंत तक पाठक के चित्त को बांधे रखता है। घटनाओं का सजीव चित्रण मन को मोह लेता है। इस संग्रह में मौर्य ने आम जन से जुड़ी हुई कहानियों को बड़े ही सुंदर रूप में पिरोया है। एक छोटी-सी घटना कथात्मक विस्तार लेते हुए अपनी छाप बनाती हुई दिख रही है। कहानियों का परिवेश, उपस्थित परिस्थितियां, सामाजिक सरोकार, यथार्थ का सरल सपाट वर्णन इन कहानियों को महत्वपूर्ण बनाता है।
अगर पुस्तक की कहानियों की बात करें तो पुस्तक की शीर्षक कहानी ' आगे से फटा जूता' में एक बांसुरी वाले की कहानी लिखी गई है, जो अपने गुरु के जूते के प्रति बेहद श्रद्धा का भाव रखता है| उस जूते को उसने आगे से काट रखा है क्योंकि उसके अंगूठे में फ्रैक्चर है। इस फटे जूते के खो जाने से उस पर जो कुछ बीता, उसका बेहद संवेदनशील वर्णन इस कहानी में है। कहानी की मार्मिकता पुस्तक में चार चांद लगाती है।
अक्सर देखा गया है कि मौर्य जी अपनी कहानियों में परिवार के भीतर और बाहर जूझ रहे व्यक्ति के एहसास , अनुभव , और उसकी उहापोह को बड़ी शिद्दत के साथ रेखांकित करते हैं, तभी तो फटे हुए जूते तक की बात करते है। जहाँ अक्सर लेखकों की नज़र नहीं जाती वहां तक मौर्य जी की पैनी नज़र चली जाती है।
पुस्तक की पहली कहानी " ग्राहक देवता" में दुकानदार और ग्राहक की बात कर रहे हैं, जिसमें एक ग्राहक है वो जब भी किसी दुकान पर जाता है तो वहाँ ग्राहकों की भीड़ लग जाती है और खुद उसे अपने सामान खरीदने में घंटों लग जाते हैं । इसमें कहानीकार ने सामान्य-सी घटना को इतनी रोचकता प्रदान की है कि पाठक आद्यांत कथा-रस में डूबा रहता है। घटनाक्रमों के सजीव चित्रण की वजह से कहानीकार प्रतिपल कौतूहल जगाता है तथा सरल-सहज भाषा और शैली कहानियों को यथार्थ के ज्यादा करीब लाती है। अक्सर देखा गया है कि आम जीवन में ऐसे ग्राहकों को काफी सम्मान दिया जाता है जो दुकानदार के लिए 'लकी' साबित होते है। इसमें ऐसे ग्राहक की कहानी है जो दुकान पर फल खरीदने गए हुए हैं और यहाँ भी उनके जाते ही ग्राहकों का तांता लग जाता है।
एक और कहानी 'उठ मेरी जान' की कहानी गौरी के इर्द-गिर्द घूमती है। इसमें कहानीकार ने सामाजिक बुराइयों पर भी चोट किया है। कहानी की गौरी परिवार के भीतर और बाहर जूझ रहे व्यक्ति का एहसास कराती है, जिसकी उपस्थिति स्वयं के परिवार में बेगाने की तरह है। लड़कियों के विवाह के बाद मायके वालों का बदला व्यवहार भारतीय समाज में सर्वसामान्य माना जाता रहा है। मायके से डोली का जाना और ससुराल से अर्थी का उठना एक ऐसा मुद्दा है जो सदियों से गंभीरता से हावी है। समाज के ताना-बाना की शिकार गौरी खुद को सामान्य करने के लिए लेखन और संगीत का सहारा लेती है और उसी के सहारे अपने जीवन की नाव को आगे बढ़ाने को प्रयासरत है।
कहानी 'सांझ - सवेरा ' में हॉस्पिटल और ऑफिस के बीच से उत्पन्न समस्याओं का जिक्र है, जिसमें अक्सर देखा गया है कि कोई भी इंसान परिवार के समस्याओं और ऑफिस के किच - किच के बीच फंस जाता है और तब उसके बाद उसे न ऑफिस का बॉस समझता है और न ही घर में रूठ कर बैठी पत्नी समझने को तैयार होती है। तभी तो स्कूटी पर मौन होकर बैठी पत्नी के साथ घर जाते हुए वह बहुत-सी बातें सोचने लगते हैं। पति- पत्नी के बीच के नोंक- झोंक और एक-दूसरे का साथ देने को बहुत सुंदर तरीके से दर्शाया गया है।
मैंने मौर्य जी की जितनी भी कहानियां पढ़ी है, उसमें यह सबसे ज्यादा बेहतरीन लगी क्योंकि उन्होंने कहानियों में आम-जन से जुड़े मुद्दों और उससे जुड़े पात्रों को सामने रख कर लिखा है। इस संग्रह की कहानियों में पात्रों के मनोभावों को व्यक्त करते वक्त लेखक जैसे उसमें समाहित हो जाते हैं। वह पात्रों के कठिन जीवन-संघर्ष को अभिव्यक्त करते हुए बेहद सूक्ष्म-दृष्टि का प्रयोग करते हैं, जिसकी वजह से सामान्य विषय पर केंद्रित दिखने वाली कहानियां भी कई बार समाज के गंभीर मुद्दों को समेट लेती हैं।
समीक्षक : नृपेन्द्र अभिषेक नृप
मोबाइल नंबर-9955818270
पुस्तक: आगे से फटा जूता
लेखक: रामनगीना मौर्य
प्रकाशन: रश्मि प्रकाशन , लखनऊ
पेज- 132, मूल्य: 220 रूपए